विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
गुजरात और उत्तर प्रदेश के बाद मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी की तीसरी प्रयोगशाला बन गया है। इसके पहले उत्तर प्रदेश और गुजरात में भाजपा के दो नए प्रयोग सफल हुए हैं। हालांकि पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भाजपा के तुलनात्मक रूप से हल्के फुल्के प्रयोग विफल भी रहे हैं। जहां तक मध्य प्रदेश का प्रश्न है वह भाजपा के लिए कई मायनों में अहम है। एक तो यह देश के मध्य में स्थित ऐसा बड़ा प्रदेश है जिसकी सीमा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसे प्रमुख और बड़े राज्यों से मिलती है और इन प्रदेशों की भी अच्छी खासी आबादी भावनात्मक रूप से मध्य प्रदेश से जुड़ी है। एक तरह से यह प्रदेश देश का दिल है जहां से पूरे देश की नब्ज बेहतर तरीके से पकड़ी जा सकती है। यहां केन्द्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रमुख विपक्षी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस शुरु से आमने सामने रहे हैं इसलिए विधान सभा चुनावों में जो दल ज्यादा बढ़त लेगा उसका व्यापक मनोवैज्ञानिक असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। प्रधानमंत्री का यहां बार-बार आना और प्रदेश के अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग वर्गों के मतदाताओं को साधने की कोशिश करना इसका प्रमाण है कि यहां का विधान सभा चुनाव कितना महत्त्वपूर्ण है।
मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के अंतर्संबंध पर इतने लेख लिखे जा चुके हैं कि इस पर राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी शोध कर पी एच डी की उपाधि प्राप्त कर सकता है। केन्द्र सरकार में वरिष्ठ मंत्रियों, सांसदों और राष्ट्रीय स्तर पर बड़े पदाधिकारी रह चुके कैलाश विजयवर्गीय सरीखे वरिष्ठ नेताओं को मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव में उतारने का प्रयोग अपने आप में अभिनव है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुद अगला मुख्यमंत्री घोषित करने के दावों के बावजूद केन्द्र द्वारा उन्हें अगला मुख्यमंत्री घोषित नहीं किए जाने को बहुत से राजनीतिक विश्लेषक मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के बीच बढ़ी खाई के रुप में देख रहे हैं तो कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे वर्तमान सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर को दरकिनार करने की रणनीति के रुप में देख रहे हैं।जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतने के लिए विभिन्न राज्यों में तरह तरह के नए और चौंकाने वाले प्रयोग करती है उससे राजनीतिक विश्लेषक भी तरह तरह के कयास लगाने लगते हैं।
गुजरात में नरेंद्र मोदी के बाद पहले आनंदी बेन और उनके बाद कई मुख्यमंत्री बदलने से काम नहीं बना तो लगभग पूरा मंत्रिमंडल ही बदलकर भाजपा ने विधान सभा चुनाव में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी।उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के अचानक मुख्यमंत्री के रुप में सामने लाने से भी एकबारगी तमाम राजनीतिक विश्लेषक चौंके थे। मध्यप्रदेश में भी अमूमन उसी तरह की स्थिति बन रही है। क्या यहां भी तमाम बड़े चेहरों और दावेदारों को दरकिनार कर प्रज्ञा ठाकुर या किसी वैसे ही चेहरे को कमान सौंपी जा सकती है जो महिला आरक्षण मामले पर भी एक कदम आगे चलने का संकेत होगा और हिंदुत्व का भी झंडा ऊंचा कर सकेगा।
मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री का चेहरा आगे बढ़ाकर भाजपा शायद कर्नाटक के उस दाग को भी धोना चाहती है जो कर्नाटक में प्रधानमंत्री के नाम पर लड़े चुनाव हारने से प्रधानमंत्री की छवि को लगा है। भारतीय जनता पार्टी की नजऱ निश्चित रूप से 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। यदि प्रधानमंत्री के नाम पर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा जीतती है तो यह लोकसभा चुनाव में बहुत सहायक सिद्ध होगा लेकिन यदि पांसा यहां भी उल्टा पड़ा तो भाजपा की रणनीति गुड गोबर भी हो सकती है। दस साल के एंटी इंकंबेंसी फैक्टर और विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन द्वारा अडानी समूह की अनियमितताओं और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोपों के कारण भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार के लिए 2024 का चुनाव निश्चित रूप से 2014 और 2019 के चुनाव से कहीं ज्यादा कठिन है। उसी की प्रारंभिक तैयारी एक तरह से मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव में दिख रही है ।