संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पति, पत्नी, और वो, हत्या तक सिलसिला
18-Nov-2023 4:46 PM
 ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : पति, पत्नी, और वो,  हत्या तक सिलसिला

फोटो : सोशल मीडिया

यूपी के जौनपुर से जुर्म की एक खबर सामने आई है जिसमें एक पत्नी किसी और के साथ प्रेमसंबंध में पड़ी, और फिर प्रेमी के साथ मिलकर उसने पति की हत्या करवाई, और उसी प्रेमी ने लाश ले जाकर दूर फेंक दी। पुलिस को कत्ल की साजिश तक पहुंचने में अधिक वक्त नहीं लगा क्योंकि इन दिनों मोबाइल फोन के कॉलडिटेल्स, फोन की लोकेशन जैसी जानकारी पल भर में निकल आती है, और प्रेमसंबंध या दूसरे किस्म के अंतरंग संबंध वाले लोग जाहिर तौर पर एक-दूसरे के अधिक संपर्क में रहते हैं, और ये जानकारियां आनन-फानन साजिश को उजागर कर देती हैं। अब इसमें से यूपी और जौनपुर को हटा दिया जाए तो यह खबर हिन्दुस्तान की किसी भी छोटे-बड़े शहर से आई हुई हो सकती है, क्योंकि हिन्दुस्तान जैसे देश का शायद ही ऐसा कोई प्रदेश हो जहां साल-छह महीने में ऐसे कुछ मामले न होते हों। पति-पत्नी के बीच, प्रेमी-प्रेमिका के बीच, कत्ल में कुछ भी अनहोनी नहीं रह गई है, कुछ अटपटा नहीं रह गया है। 

अब सवाल यह उठता है कि जब देश के कानून और समाज के रिवाज के मुताबिक तलाक कोई बहुत अटपटी बात नहीं है, हर दिन कुछ तलाक होते ही हैं, और शायद ही कोई तबका तलाक से अछूता रहता हो। ऐसे में लोग आए दिन कातिलों की गिरफ्तारी की खबर भी पढ़ते हैं, और कत्ल जैसे जुर्म में उलझ भी जाते हैं। लोगों से उम्मीद की जाती है कि उन्हें देश की कानून की कम से कम कुछ समझ तो रहे, और सामान्य समझबूझ से परे, अखबारों में आने वाली खबरों को ही कोई देख लें, तो भी उन्हें यह समझ आ जाएगा कि कातिल अधिक वक्त तक नहीं बच पाते। शायद एक फीसदी मामले ही ऐसे रहते होंगे जिनमें कातिलों की गिरफ्तारी में महीना-पन्द्रह दिन से अधिक का वक्त लगता हो। फिर ऐसे में लोग आसपास के लोगों का कत्ल करते हैं, तो उन्हें यह समझ तो रहनी चाहिए कि पुलिस सबसे पहले करीबी लोगों से जांच शुरू करेगी, और ऐसे में आसपास के किसी के विवाहेत्तर प्रेमसंबंध उजागर होते ही हैं, और उसके बाद अगर जुर्म उससे जुड़े हुए हैं, तो पकड़ाना महज कुछ दिनों की बात रहती है। इसलिए अगर ऐसे कातिल करीबी लोगों का कत्ल करके भी अपने आपको महफूज महसूस करते हैं, तो यह उनमें अक्ल की कमी का एक पुख्ता सुबूत रहता है। 

कुछ लोग बहुत पहले से यह बात कहते आए हैं कि प्यार अंधा होता है। ऐसी घटनाओं से यह भी लगता है कि या तो प्यार लोगों की सोचने-समझने की ताकत छीन लेता है, या फिर वे सामान्य समझ भी नहीं रखते, और खतरों का अहसास नहीं होता है। लेकिन यहां पर अपराधी को बचाने की नीयत नहीं है, और इसीलिए हम मुजरिम के पकड़े जाने के खतरे, और सजा पाने की गारंटी पर अधिक बात नहीं करना चाहते। हमारी फिक्र यह है कि अगर लोगों का एक-दूसरे के साथ रहना मुमकिन नहीं रह गया है, तो फिर लोग एक-दूसरे से अलग होकर सिरे से नई जिंदगी क्यों बसाना नहीं चाहते? एक तलाक और दूसरी शादी, इसमें क्या दिक्कत रहती है? हो सकता है कि ऐसे तलाक में कुछ बरस लग जाएं, लेकिन यह तो तय है कि ये बरस उम्रकैद से कम ही होंगे। इसके साथ-साथ ऐसे किसी जुर्म के बाद कम से कम दो-तीन परिवार पूरी तरह से तबाह होते हैं, पत्नी, पति, और प्रेमी, इनमें से जो मारे जाएं, और जो जेल जाएं, सबके परिवार, बच्चे, सबके लिए तबाही का दौर आता है। 

यह सिलसिला इस सामाजिक सोच की वजह से अधिक होता दिखता है कि तलाक अच्छी बात नहीं है। समाज और परिवार दोनों ही तलाक टालते रहने के हिमायती रहते हैं, जो कि एक हिसाब से ठीक भी है कि पति-पत्नी की तनातनी बहुत से मामलों में वक्त के साथ खत्म हो जाती है। लेकिन जब मामला खून-खराबे तक पहुंचने लगे, तो कातिल बनने के बजाय तलाकशुदा बनना बेहतर माना जाना चाहिए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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