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मजदूरों को बचाइए और फिर सोचिए कि...
22-Nov-2023 7:04 PM
मजदूरों को बचाइए और फिर सोचिए कि...

फोटो-साभार, प्रोफेसर वाल्दिया की उक्त संदर्भित पुस्तक। लाल घेरे में राड़ी पर्वत को मैंने चिन्हित किया है।

-महिपाल नेगी

मैं भूगर्भ विज्ञान का विद्यार्थी नहीं रहा हूं लेकिन यदि मुझे फिर से पढऩे का मौका मिले तो मैं भूगर्भ विज्ञान विषय अवश्य चुनूंगा। जब भी हिमालय में किसी क्षेत्र में कुछ बड़ी भूगर्भी हलचल होती है, तो मैं हिमालय के विख्यात भूगर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर के एस वाल्दिया की कोई किताब ढूंढने लग जाता हूं। हिमालय के भूगर्भ के समग्र जानकार रहे हैं प्रोफेसर वाल्दिया।

जब उत्तरकाशी में चार धाम की सुरंग बंद होने से 41 मजदूर फंसे, तब भी मैंने ऐसे ही किया कि इस क्षेत्र के बारे में उन्होंने कुछ कहा हो। मैं चौंक उठा। उनकी पुस्तक‘हाई डैम्स इन द हिमालय’ में उस क्षेत्र के भूगर्भ के बारे में भी कुछ है जहां यह सुरंग बन रही है।

टोंस /श्रीनगर भ्रंस जोकि सक्रिय मानी जाती है, लघु हिमालय की इस पर्वत श्रृंखला ‘राड़ी डांडा’ को यमुना से लेकर गंगा तक काटती है। यमुना को नौगांव के पास तो गंगा को धरासू के पास। इसके ऊपर है राड़ी डांडा। जहां सुरंग बन रही है, टोंस भ्रंस कुछ किलोमीटर दूर है, लेकिन पुस्तक में उनके कुछ मानचित्र प्रकाशित हुए हैं, उससे स्पष्ट होता है की राड़ी श्रृंखला को कुछ स्थानीय फॉल्ट भी काटते हैं।

और ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि भ्रंस और पहाड़ी को दो स्थानीय फॉल्ट उन्हीं जगह उत्तर से दक्षिण काट रहे हैं, जहां सुरंग बन रही है। सुरंग के निकट शेयर जोन की बात एक भूगर्भ विज्ञानी कल ही इस सुरंग स्थल पर सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स को बता रहे थे, संयोग से टी वी पर मैंने भी यह बात सुनी।

प्रोफेसर वाल्दिया की पुस्तक से ज्ञात होता है कि शेयर जोन 2 - 3 मीटर से लेकर 11 - 22 मीटर तक भी फैले हो सकते हैं। जहां सुरंग में भूस्खलन हुआ, क्या वह एक बड़ा शेयर जोन है। और ऐसे कितने और शेयर जोन 4.5 किलोमीटर की सुरंग के निकट होंगे। भू - सक्रियता के कारण शेयर जोन के खुलने का डर रहता है। क्या ब्लास्टिंग और कटिंग से शेयर जोन पर असर नहीं पड़ा होगा? मशीनों से भी भूकंपन तो होता ही है।

क्योंकि ‘राड़ी डांडा’ भी लघु हिमालय श्रृंखला का हिस्सा है, जोकि ‘फिलाइटी क्वार्टजाइटी’ चट्टानों से भरा पड़ा है। चट्टानें भुरभरी और दरारों से कटी फटी है।

ख़ास बात यह भी कि दो दिन पहले  सुरंग में मलवा साफ करने के दौरान जब मजदूरों ने चट्टानों के चटकने की आवाज़ें सुनी, उसका उल्लेख भी प्रोफेसर वाल्दिया की किताब में है। उन्होंने इसे ‘शॉक वेव’ कहा है। यह भी कहा गया है की जकड़े गए भ्रंशों को छेडऩा भी घातक हो सकता है।

लघु हिमालय की कुछ श्रृंखलाओं का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि जो छोटी नदियां-बड़ी नदियों में मिलती हैं, उनका मिजाज भी क्षेत्र की सक्रियता को दर्शाता है। इस क्षेत्र से भागीरथी में मिलने वाली क्रमश: स्यांसू, नगुण, खुरमोला और नाकुरी गाड का मिजाज देखें तो यह सभी तीव्र प्रवणता वाली ढलानों पर वेग से बहती हैं और अब तक भी सामान्य प्रवणता स्थापित नहीं कर पाई हैं।

 राड़ी पर्वत श्रृंखला यमुना और गंगा दोनों का जल ग्रहण क्षेत्र है। सुरंग के ऊपरी क्षेत्र का आधा पानी यमुना में तो आधा गंगा में आता है। सुरंग की डीपीआर बनाने वालों ने प्रोफेसर के एस वाल्दिया या हिमालय के अन्य विख्यात भूगर्भ विज्ञानियों के अध्ययन को पढ़ा और समझा होगा?

अब भी पढ़ें और समझें। यह जो उत्तर-पश्चिम के दो फॉल्ट और बड़े शेयर जोन हैं, इनकी फिर से डिटेल स्टडी कीजिए। 

 

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