विचार / लेख
![विश्व कप में हार से कम हुआ क्रिकेट का बुखार विश्व कप में हार से कम हुआ क्रिकेट का बुखार](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1700660361_Tvx-_acAATiUY.jpg)
-डॉ. आर.के. पालीवाल
क्रिकेट हमारे लिए पैंट शर्ट और अंग्रेजी भाषा की तरह अंग्रेजों द्वारा भद्र जन का खेल कहकर दी गई सौगात है लेकिन बाजार और सट्टेबाजों ने क्रिकेट को आकाश पर चढ़ाकर हमारे देश की बड़ी आबादी के लिए दाल रोटी की तरह बुनियादी जरूरत बना दिया। इस खेल के नेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों के सरंक्षण में आने से सबसे ज्यादा समय बर्बाद करने वाला क्रिकेट हमारे हॉकी, कबड्डी, रेसलिंग,वॉलीबॉल और फुटबॉल जैसे परंपरागत खेलों के शीर्ष पर बैठ गया है। यह अकारण नहीं है कि अमेरिका, चीन, रूस, जर्मनी, जापान और फ्रांस जैसे विकसित देश क्रिकेट को कतई बढ़ावा नहीं देते। दूसरी तरफ हमारे देश में प्रधानमन्त्री, गृहमंत्री और कई मुख्यमंत्री क्रिकेट को हद से ज्यादा अहमियत देते हैं। यहां तक कि क्रिकेट का मैनेजमेंट भी मंत्रियों के रिश्तेदार करते हैं जिन्हें क्रिकेट का कोई इल्म नहीं लेकिन इसमें पैसा और शोहरत ठूंस-ठूंसकर भरे हैं इसलिए नेताओं के परिजन इस खेल का नियंत्रण चाहते हैं।
आजादी के पहले केवल उच्च मध्यम वर्ग के परिवार अंग्रेजों की नकल करते थे,अब हमारी अधिसंख्य आबादी में अंग्रेजी भाषा से लेकर पहनावे और खेल तक की अंग्रेजियत भरी है। इसी के चलते पिछ्ले दो महीने क्रिकेट के विश्व कप का महीने से ज्यादा लंबा चला बुखार था। सट्टा बाजार, मीडिया और इंटरनेशनल और भारतीय क्रिकेट काउंसिल के प्रचार के कारण देश में क्रिकेट को इतना हाईप मिला है कि इसी खेल की वजह से सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिला और उन्हें क्रिकेट का भगवान कहा गया। अब विराट कोहली उनसे आगे निकल गया, उसके लिए भी भारत रत्न की मांग उठेगी। आजकल जिधर भी नजऱ दौड़ाएं महानगरों से लेकर दूरदराज के गांवों में तरह तरह की गेंदों, तरह तरह की गिल्लियों और तरह तरह के बैट्स से क्रिकेट खेलते युवा और बच्चे मिल जाएंगे। यदि यह विश्व कप हम जीत जाते तो सत्ताधारी दल और मीडिया इसे सालों तक तरह तरह से भुनाता रहता। ऑस्ट्रेलिया ने हमेशा की तरह जबरदस्त प्रदर्शन कर वह मौका छीन लिया।
यह विश्व कप फाइनल कई विवादों को भी जन्म दे गया। देश के लिए दो विश्व कप जीतने वाली टीम के सदस्यों और उनके कप्तान कपिल देव और धोनी को निमंत्रित नहीं किया गया। कपिल देव 1983 की पूरी टीम को भी इस अवसर पर बुलाना चाहते थे। सरकार ने ऑस्ट्रेलिया के पी एम को आमंत्रित किया लेकिन वह अपने घरेलू जांबाजों को भूल गई। यह प्रशासनिक चूक नहीं हो सकती। कुछ दिन पहले 1983 का क्रिकेट विश्व कप जीतने वाली पूरी टीम ने महिला पहलवानों के पक्ष में अपील जारी की थी। निश्चित रूप से सरकार के लिए वह अपील शर्मिंदगी का सबब थी , शायद इसीलिए विजेता टीम के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार हुआ है। कपिल देव और धोनी क्रमश: हमारी पीढ़ी और युवा पीढ़ी के आदर्श खिलाड़ी रहे हैं, उनकी अनुपस्थिति से हम सब भी बेहद निराश हुए हैं।
खेल में हार-जीत होती रहती है। यह सच में दुखद है कि पूरे टूर्नामेंट में अजेय रहने वाली भारतीय टीम अपने देश के मैदान में अपनी जबरदस्त प्रशंसक भीड़ की उपस्थिति में बगैर संघर्ष किए ताश के पत्तों की तरह बिखर गई। बैटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग के तीनों प्रभाग सामान्य टीम जैसे रहे। सब खिलाडिय़ों का एक साथ खराब प्रदर्शन लोगों के गले उतरना आसान नहीं है इसीलिए सोसल मीडिया पर बहुत से लोग अपनी तरह से हार का विश्लेषण कर रहे हैं और मैच को संदेह की नजर से भी देख रहे हैं। नतीजा कुछ भी रहा हो लेकिन बात बात में पर्ची निकालकर भविष्य बताने वाले धीरेंद्र शास्त्री की पर्ची फेल हों गई और धुरंधर ज्योतिषियों की भविष्यवाणी और पुरोहितों के जीत के यज्ञ फेल हो गए। उम्मीद है इन सबके द्वारा आए दिन मूर्ख बनती जनता इन अंधविश्वास फैलाने वालों की हकीकत समझेगी।