विचार / लेख
![एक मात्रा ने मार डाला ! एक मात्रा ने मार डाला !](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1700822382mita.jpeg.jpg)
स्मिता
‘न कोई इस पार हमारा,
न कोई उस पार.......’
शैलेंद्र
डहरुराम किसी सुदूर छत्तीसगढ़ के गांव में ही थोड़े न मिलते है, वह बिहार या यू पी या राजस्थान के गांव में भी मिल जाएंगे।
डहरुराम के माई ने 6-6 बच्चा जना है । अब जितने हाथ, उतने काम ,उतना पइसा ।
फिर बीमारी हारी में भी तो लइका बच्चा मर जावत है। सो नाम ल बिगाड़ कर रख दे हे, ‘डहरुराम’
मान्यता है, भगवान भी बिगड़े नाम के बाबू को नहीं ले जावत है ।
फिर राम भी तो लगा दिए न बचाने को .... राम नाम तो सबको बचा लेत है लोकलाज के डर से अपनी पत्नी को नहीं बचा पाए तो क्या ?
‘डहरु’, को का पता कि नाम ही जी का जंजाल बन जाई ।
आधार में अलग नाम और जमीन के टुकड़े में अलग नाम । पिछले बरस सूखा में सारा फसल तो जल के नुकसान हो गए । रोज रात में अंतडिय़ों में ऐसी मरोड़ उठे है कि पूछो मत ।
रोज बैंक के सामने ‘डहरु’ उखड़ू हाथ जोड़ के बैठ जावत है ।सब गांव वाले को फसल बीमा का पैसा मिल गया है । बाबू साहब मोर खाता में पइसा कब आही?
अब आधार में तुम्हर नाम ‘डाहरु राम’ काहे लिखा दिये हो?
ऑनलाइन पोर्टल में अलग अलग नाम नहीं एक्सेप्ट करय, टेक्नोलॉजी के जमाना है भाई ..
तो काहे बुला के न सुधरवा लिये साहेब । हम तो फसल बीमा के पइसा न मिलब तो मर जाई जीते जी ।
अबके सरकार तो बोली रहे न , बीमा का पइसा मिली । हम तो बीमा का उ का कहिथे, प्रीमियम भी जमा किये रहे ।
अब इ ‘अ’का मात्रा ‘आ’ का मात्रा हमको कहाँ समझ में आत है साहब ।
पेट को तो अन्न का दाना और खेत को बीज/खातू समझ म आवत हे साहब
अब कहाँ से हम नांगर चलाई , निंदायी बोआई करी । अक्षर पढ़ लेते तो, काहे ये सब करते ?
साहब कैसे भी करके हमर पइसा दिलवा दो ...अब मां की कसम खाते है जो डहरु को कोई डाहरु बोला तो, जबान खींच लेंगे हम उका ..
अब जाओ बे, वकील करो, फोरम जाओ । सरकार को गुहार लगाओ ।
सुने है अब डहरु ओ ठाकुर वकील के ज़मीन में मजूरी कर रहा है ।
(गलती से अगर किसानों के खसरा और आधार कार्ड में नामान्तर हो गया हो तो उन किसानों को फसल बीमा का लाभ नहीं मिलता है । इसमें करेक्शन करवाना, बैंक की जवाबदेही होती है । लेकिन इस छोटी सी तकनीकी खामी से हज़ारों किसान फसल बीमा के लाभ से वंचित हो रहे है। इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। )