संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अब ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस नाम के घोड़े पर सवार होकर चारों तरफ पहुंच रहा ब्रेनवॉश
25-Nov-2023 4:20 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अब ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस नाम के घोड़े पर सवार होकर चारों तरफ पहुंच रहा ब्रेनवॉश

भारत में अभी पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव में ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की चर्चा सुनाई नहीं पड़ी, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता कि बड़ी पार्टियों या बड़े उम्मीदवारों ने इसकी कोशिश न की हो। यह भी हो सकता है कि इन्होंने खुद होकर सीधे-सीधे ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस मुहैया कराने वाली किसी एजेंसी को भाड़े पर न लिया हो, लेकिन फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया का अध्ययन, विश्लेषण करने, और फिर उनका राजनीतिक और चुनावी इस्तेमाल करने का काम किया हो। यह काम फेसबुक भाड़े पर करता ही है, और फेसबुक का अपना खुद का सारा कामकाज ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित है। अब जैसे अभी हमने अपने फेसबुक पेज से सैकड़ों लोगों की पोस्ट देखना 30 दिन के लिए हटा दिया। नतीजा यह निकला कि पेज पर आने वाली पोस्ट घट गईं, और ऐसे में फेसबुक ने सैकड़ों नए लोगों के पेज सुझाने शुरू कर दिए, और उन पर यह लिखा हुआ भी आने लगा कि ये नाम या ये पेज फेसबुक सुझा रहा है। इनको जब बारीकी से देखें, तो इनमें से बहुत से लोग या पेज एक खास किस्म की राजनीतिक विचारधारा की तरफ रूझान रखने वाले दिख रहे हैं। अब पार्टियों को सिर्फ यही करना है कि वे अपने विश्लेषकों से सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों की राजनीतिक सोच दर्ज कर लें, जो कि बड़ा आसान काम है, और उसके बाद उन लोगों तक, या वैसे तबके तक अपने पेज की पहुंच करने के लिए फेसबुक को भुगतान करें। भुगतान के एवज में फेसबुक किसी इलाके के, किसी उम्र के, या किसी खास तबके के लोगों तक आपकी पहुंच बढ़ा देता है। इस तरह जैसे ही (हमारी तरह के) कोई लोग अपने पेज से अधिक संख्या में लोगों को 30 दिन के लिए हटाते हैं, या कि उन्हें अनफॉलो करते हैं, वैसे ही फेसबुक आक्रामक अंदाज में नए लोग और नए पेज सुझाना शुरू कर देता है। यह पूरा ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित कारोबार है। 

आज दुनिया के सबसे बड़े टेक्नालॉजी कारोबारी यह मांग कर रहे हैं कि ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आगे की रिसर्च को रोका जाए। उनका मानना है कि बाकी खतरों के साथ-साथ एक खतरा यह भी है कि यह लोगों की सामाजिक और राजनीतिक सोच को प्रभावित करके किसी भी लोकतंत्र में चुनावी नतीजों को भी प्रभावित कर सकता है। दुनिया का कारोबार बड़ी आसानी से सोशल मीडिया और दूसरे किस्म के इंटरनेट पेज देखकर वहां ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से ऐसी दखल पैदा कर सकता है जिससे कि लोगों का सोचना-विचारना प्रभावित हो सके। ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस लोगों के राजनीतिक रूझान को पहचान कर, उनके आसपास उसी किस्म के रूझान वाले दूसरे लोगों को पहचान कर, उनकी पसंद के मुद्दों की शिनाख्त करके, एक अलग राजनीतिक विचारधारा को वहां पर रोप सकता है जो कि धीरे-धीरे पौधे की शक्ल में बढ़ सके, और लहलहा सके। इस तरह आज दुनिया में जो लोकतांत्रिक सोच दशकों या सदियों में विकसित हुई है, वह कुछ घंटों में ही प्रभावित होना शुरू हो सकती है। हिन्दुस्तान का लोकतंत्र पौन सदी पुराना है, और अमरीका जरा से वक्त में अपने लोकतंत्र के ढाई सौ बरस पूरे होने का जलसा मनाने जा रहा है। दुनिया के तमाम लोकतंत्रों में वहां के लोगों की विचारधारा, उनकी पसंद-नापसंदगी विकसित होने में लंबा अरसा लगता है, लेकिन अब सोशल मीडिया पर पिछले कुछ बरसों से हम ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के बिना भी यह देख रहे थे कि किस तरह भाड़े के साइबर-सैनिक या साइबर-मजदूर किसी विचारधारा को बढ़ाने, और किसी को खारिज करवाने के काम में लगे हुए थे, लगे हुए हैं। अब ऐसी ताकतों के हाथ ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस नाम का एक असाधारण और अभूतपूर्व हथियार भी लग चुका है, और अब वे हजार किस्म के दूसरे विश्लेषण करके अपने जहर को एकदम निशाने पर छोड़ सकते हैं ताकि उसका अधिकतम असर हो। 

अमरीका या हिन्दुस्तान जैसे लोकतंत्र बहुत धीमी रफ्तार से अपने लोगों की राजनीतिक परिपक्वता तक पहुंचे थे, और हिन्दुस्तान में तो हकीकत यह है कि लोग ठीक से परिपक्व हुए भी नहीं हैं, और पिछले एक दशक में लोगों की आधी सदी में पाई परिपक्वता काफी हद तक खत्म भी हो चुकी है, ऐसे लोकतंत्र दुनिया के कारोबारियों का निशाना बन सकते हैं। और महज कारोबार की बात क्यों करें, ये लोकतंत्र किसी धार्मिक या आतंकी सोच का निशाना भी बन सकते हैं, लोगों को धर्म और हिंसक आतंक की तरफ खींच सकते हैं। वैसे भी आज महज सोशल मीडिया के इस्तेमाल से धार्मिक और राजनीतिक नफरत फैलाना बड़ा आसान हो चुका है, और हिन्दुस्तानी लोकतंत्र उसका एक सबसे लहूलुहान शिकार दिख रहा है। अब जब ऐसी कोशिशें ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से लैस होकर हमला करेंगी, तो लोगों को पता ही नहीं चलेगा कि कब और कैसे उनका हृदय परिवर्तन हो गया है, कैसे उन्हें एक खास साम्प्रदायिक या राजनीतिक बुलबुले में ला दिया गया है, और इस बुलबुले की दीवारें ही उन्हें दुनिया लगने लगेंगी। यह पूरा सिलसिला कितना खतरनाक होगा, इसकी कल्पना भी हमारे लिए मुश्किल है, और हम इसके तमाम किस्म के खतरों, और उनकी ऊंचाईयों का अंदाज भी नहीं लगा पा रहे हैं। जिस तरह लोगों का कोरोना के हमले से बचना तकरीबन नामुमकिन था, उसी तरह लोगों का ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के हमले से बचना नामुमकिन रहेगा क्योंकि भाड़े के हत्यारों को किराए पर लेने की ताकत रखने वाले लोग और संगठन न सिर्फ सोशल मीडिया बल्कि हर किस्म का मीडिया भी इस तरह प्रभावित करेंगे कि अधिक से अधिक लोगों का ब्रेनवॉश होते चले। हिन्दुस्तान में आज नफरत के जहर को देखकर ऐसा लगता है कि वह ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की पीठ पर सवार होकर तेजी से चारों तरफ दौड़ रहा है, और पौराणिक कहानियों के किसी झंडे लगे घोड़े की तरह चारों तरफ पहुंचकर वहां तक अपना साम्राज्य कायम कर रहा है। क्या पता इसे पढऩे वाले लोग भी अपने आपको ऐसे हमले से बचा सकेंगे या नहीं, हम आज इस पर महज चर्चा कर रहे हैं, और लोग अपने-अपने स्तर पर बारीकी से ऐसे खतरों के पहुंचने पर नजर रखें। आप कुछ कर चाहे न सकें, अपनी जिंदगी का दायरा बदलना तो कम से कम आपकी नजरों में दर्ज हो जाए। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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