संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक कामयाब कामकाजी प्रदेश को कमजोर करती जा रही साम्प्रदायिक हिंसा
12-Jan-2024 3:44 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  एक कामयाब कामकाजी प्रदेश को कमजोर करती जा रही साम्प्रदायिक हिंसा

फोटो : सोशल मीडिया

कर्नाटक के अलग-अलग इलाकों से साम्प्रदायिकता की भयानक खबरें आ रही हैं। साम्प्रदायिक हिंसा वहां के लिए कोई नई बात नहीं है, लेकिन अटपटी बात इस हिसाब से है कि यह राज्य शिक्षित लोगों से भरा हुआ है, यहां के लोग देश-विदेश की कंपनियों में काम करते हैं, राजधानी बेंगलुरू में अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के कामकाज की आवाजाही चलती रहती है। ऐसे माहौल के बीच प्रदेश के लोगों में हिन्दू-मुस्लिम तनातनी आए दिन हिंसा तक पहुंचती रहती हैं। और यह हिंसा गुंडों के गिरोहों तक रहती, तो भी कोई बात नहीं थी, यह वहां के नौजवान जोड़ों को अलग-अलग धर्मों का होने पर मिलने से रोकती है, उनके साथ हिंसा करती है। अभी कुछ दिन पहले एक ही परिवार की दो बहनों के बेटे-बेटी किसी रजिस्ट्रेशन के लिए पहुंचे थे, और वहां देर लगने से वे किसी सार्वजनिक जगह पर बैठकर इंतजार कर रहे थे। एक का परिवार हिन्दू था, और नौजवान ने तिलक लगा रखा था, और लडक़ी की मां ने मुस्लिम से शादी की हुई थी, इसलिए उसने हिजाब बांधा हुआ था। रिश्ते के भाई-बहन होने पर भी हुलिए से हिन्दू और मुस्लिम दिखने पर इनके साथ मुस्लिम समाज के नौजवानों ने हिंसा की। अब कल की खबर है कि राज्य में एक हिन्दू-मुस्लिम प्रेमीजोड़ा एक होटल के कमरे में मिल रहा था, और वहां पहुंचकर नौजवानों के एक गिरोह ने उन्हें घसीटकर बाहर निकाला, और उस महिला को एक सुनसान जगह पर ले जाकर छह लोगों ने बलात्कार किया, उनके वीडियो बनाए गए ताकि वे रिपोर्ट दर्ज न करवा सकें। ऐसे साम्प्रदायिक हमले, और ऐसे भयानक गैंगरेप को भी धर्म के नाम पर किया जा रहा है, अलग-अलग धर्मों के लोगों को मिलने से रोका जा रहा है, और साम्प्रदायिकता इस प्रदेश में सिर चढक़र बोल रही है। 

देश में अगर किसी धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने की वजह से कोई धार्मिक या साम्प्रदायिक तनाव खड़ा होता, तो भी उसकी बुनियाद समझ में आ सकती थी। आज अगर 21वीं सदी में देश के नौजवान जोड़ों को अलग धर्म या अलग जाति के होने पर इस तरह हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है, तो उसका मतलब यही है कि साम्प्रदायिकता और धर्मान्धता मिलकर अब एक बड़े संगठित जुर्म तक पहुंच गए हैं, और अलग-अलग धर्मों के नफरती-मुजरिमों को एक-दूसरे से बढ़ावा भी मिलता है। फिर बात किसी एक राज्य तक सीमित नहीं रहती, लोग दूसरे प्रदेशों में भी ऐसी मिसालों से हौसला पाते हैं, और धीरे-धीरे अलग धर्मों के बीच खड़ी की गई नफरत अलग-अलग जातियों तक भी फैलती है, और फिर परिवारों के भीतर ऑनरकिलिंग के मामले होने लगते हैं। भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि हर बरस देश में 25 या उससे अधिक जोड़े परिवार के ही हाथों ऑनरकिलिंग के नाम पर मारे जाते हैं। एक तरफ तो भारत में सरकार दलित और गैरदलित के बीच शादी पर नगद पुरस्कार देती है ताकि समाज से छुआछूत खत्म हो सके, दूसरी तरफ किसी भी तरह की अलग-अलग जाति में होने वाली शादियों पर लोगों को कड़ा सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता है, मोटा जुर्माना चुकाना पड़ता है, उनसे उनकी जाति के लोग ही रोटी-बेटी का रिश्ता तोड़ लेते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कुछ जातियों की पंचायतें या संगठन इतने ताकतवर हैं कि अगर अंतरजातीय विवाह करने वाले लोगों से उनका बाकी परिवार भी संबंध रखता है, तो पूरे के पूरे परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है, और परिवार के बाकी लोगों की जाति के भीतर शादी असंभव हो जाती है। छत्तीसगढ़ में ऐसे मामलों को लेकर एक अलग कानून बनाना पड़ा है जो कि बहिष्कार करने वाले लोगों के लिए सजा वाला है, लेकिन हकीकत यह है पुलिस तक शिकायत लेकर जाना पूरी की पूरी जाति से टकराव लेने सरीखा होता है, और बहुत कम लोग इतना हौसला कर पाते हैं। 

देश में हिन्दू लड़कियों के मुस्लिम लडक़ों से शादी करने पर उसे हिन्दू संगठन लवजेहाद कहकर उसका हिंसक विरोध करते हैं, लेकिन कर्नाटक में बहुत से ऐसे मामले हैं जिनमें लडक़ी मुस्लिम है, और उसका प्रेमी हिन्दू है, और ऐसे जोड़ों के साथ भी हिंसा वहां पर आम बात है। वहां की बहुत सी खबरें आती हैं जिनमें बाजार में घूमते, किसी रेस्त्रां में बैठे, या किसी दुपहिए पर चलते हुए अलग-अलग धर्मों के दिखने वाले जोड़ों को पकडक़र पीटा जाता है, और कल की घटना बताती है कि किस तरह ऐसे धर्मान्ध गुंडे गैंगरेप तक करते हैं, और पूरी जिंदगी ब्लैकमेल करने के हिसाब से उसके वीडियो भी बनाकर रखते हैं। हमारा ख्याल है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार प्रदेश के ऐसे अराजक-साम्प्रदायिक माहौल पर काबू नहीं कर पा रही है, और ऐसे मामलों पर अधिक सख्ती, तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए, और इन पर साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने की दफाएं भी लगनी चाहिए, और जरूरत हो तो साम्प्रदायिक मामलों की सुनवाई के लिए अलग अदालत भी बननी चाहिए। 

लोगों को याद होगा कि इसी कर्नाटक में किस तरह 2015 में एमएम कालगुर्गी नाम के एक भूतपूर्व कुलपति को गोलियों से भून दिया गया था, जो कि हिन्दू धर्म के भीतर अंधविश्वासों के खिलाफ सार्वजनिक अभियान चलाते थे, और उन पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप लगते थे। वे एक बहुत ही विद्वान और साहसी समाज सुधारक थे, और उन्हें उस वक्त की कांग्रेस सरकार से शिकायत के बाद भी हिफाजत नहीं मिली थी। एक सुबह दो लोगों ने उनके घर पहुंचकर उन्हें आमने-सामने से गोलियां मार दीं। लोगों को इसी तरह महाराष्ट्र के एक अंधविश्वास-विरोधी नरेन्द्र दाभोलकर की याद होगी जिन्हें 2013 में सुबह की सैर पर दो लोगों ने आमने-सामने से गोलियां मार दी थीं, वे भी लगातार अंधविश्वास के खिलाफ काम करते थे। 

अंधविश्वास, धर्मान्धता, साम्प्रदायिकता, इन सबके बीच थोड़ा-थोड़ा सा ही फासला होता है। और जब लोगों का भरोसा लोकतंत्र और संविधान से उठ जाता है, जब उनकी वैज्ञानिक सोच कमजोर होने लगती है, तो उन्हें हिंसा बहुत सी बातों का जवाब लगने लगती है। कर्नाटक में ये तमाम बातें साथ-साथ चल रही हैं, इनका मिलाजुला असर वहां सब कुछ खत्म कर रहा है, और कर्नाटक की मिसाल देश में दूसरी जगहों पर भी धर्मान्ध, हिंसक, और साम्प्रदायिक लोगों का हौसला बढ़ाएगी। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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