संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : टेक्नॉलॉजी दुधारी तलवार, मारती भी है, बचाती भी..
13-Jan-2024 3:32 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : टेक्नॉलॉजी दुधारी तलवार, मारती भी है, बचाती भी..

छत्तीसगढ़ के बस्तर में कांकेर जिले के एक स्थानीय भाजपा नेता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, और अब पता लगा है कि इस कत्ल का ठेका उस नगर पंचायत के कांग्रेसी अध्यक्ष ने एक कांग्रेसी पार्षद के साथ मिलकर कुछ लोगों को दिया था, और उन्होंने देसी पिस्तौल खरीदकर यह कत्ल किया। चूंकि बस्तर में बहुत सी नक्सल हत्याएं होती रहती हैं, और पिछले बरसों में भाजपा के कई नेताओं-कार्यकर्ताओं को नक्सलियों ने मारा है, इसलिए पहली नजर में इस मामले को भी नक्सल-हिंसा समझ लिया गया था, लेकिन बस्तर के आईजी ने पोस्टमार्टम के पहले से ही ऐसा शक जताया था कि यह निजी रंजिश से किया गया हमला हो सकता है क्योंकि कुछ बरस पहले भी इस भाजपा नेता पर निजी रंजिश से ऐसा हमला हो चुका था जिसमें वह बच गया था। अब स्थानीय नगर पंचायत के कांग्रेसी अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले इस भाजपा नेता से कांग्रेस के अध्यक्ष और पार्षद नाराज चल रहे थे, इसलिए उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के पहले यह कत्ल करवाया। 

यह पूरा मामला भयानक इसलिए है कि छोटी सी नगर पंचायत में अगर अविश्वास प्रस्ताव जैसे किसी लोकतांत्रिक कदम के खिलाफ अगर ठेका देकर कत्ल करवाने जैसी हिंसा होती है, तो फिर प्रदेश में तो इससे बड़े-बड़े सैकड़ों राजनीतिक मुकाबले होते हैं। छत्तीसगढ़ जैसे छोटे से राज्य में विधानसभा और लोकसभा की सीटें ही सौ से अधिक हैं, और म्युनिसिपल और पंचायतों की गिनती करें तो वे हजारों में हैं। अब राजनीति में जीत-हार भी लगी रहती है, और किसी भी निर्वाचित संस्था में अविश्वास प्रस्ताव या उस किस्म की दूसरी प्रक्रिया भी रहती है। ऐसे में यह तो एक बहुत बड़ी अलोकतांत्रिक बात भी है कि निर्वाचित संस्थाओं को लेकर ऐसी राजनीतिक हत्या करवाई जाए। छत्तीसगढ़ आमतौर पर शांत रहने वाला प्रदेश है, और यहां दूसरे किस्म के जुर्म के लिए कत्ल जरूर होते रहते हैं, लेकिन राजनीतिक विवाद पर कत्ल के गिने-चुने मामले ही आज तक हुए हैं। इसके पहले का एक चर्चित कत्ल मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल का है जिसमें कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में जाने वाले विद्याचरण शुक्ल के साथी और उनकी पार्टी के कोषाध्यक्ष रामावतार जग्गी को दिनदहाड़े खुली सडक़ पर लोगों की आवाजाही के बीच गोली मार दी गई थी, और मारने वाले अजीत जोगी और उनके बेटे अमित जोगी के करीबी लोग थे। बाद में अमित जोगी, और उनके साथ के लोगों पर इस कत्ल का मुकदमा भी चला था, जिसमें जिला अदालत से बाकी सबको सजा हुई थी। 

महज सात लाख रूपए खर्च करके अगर एक स्थानीय नेता का इस तरह से खुलेआम कत्ल करवाया जा सकता है, तो यह सिलसिला बहुत भयानक हो सकता है। बहुत से लोगों की एक-दूसरे से कई किस्म की दुश्मनी रहती है, और अगर इतने सस्ते में ठेके पर हत्या हो सकती है, तो बहुत से लोगों के दिमाग में हिंसक खयाल आ सकते हैं। लेकिन जैसा कि इस मामले में पुलिस ने हफ्ते भर के भीतर ही सुबूत जुटाकर लोगों को गिरफ्तार कर लिया है, उसे देखकर भी हिंसा की हसरत रखने वाले लोगों को यह समझना चाहिए कि आज मोबाइल फोन के कॉल डिटेल्स, उसकी लोकेशन, और जगह-जगह लगे हुए सीसीटीवी कैमरों के बाद अब मुजरिमों का बचना तकरीबन नामुमकिन भी होते चल रहा है। करीब-करीब हर मामले में लोग पकड़ा जाते हैं, और एक समय पुलिस के कुत्ते को जिस तरह मुजरिम पकडऩे की शोहरत थी, वह शोहरत आज मोबाइल फोन और कैमरों को हासिल हो गई है। इसलिए टेक्नॉलॉजी ने मुजरिमों को किसी भी कोने से अधिक होशियार नहीं बनाया है, उन्हें अधिक बेवकूफ ही बनाकर छोड़ा है कि वे पुराने वक्त की तरह पुलिस से बच जाने की उम्मीद रखें। 

अब इससे बिल्कुल अलग एक दूसरी खबर यह है कि बिहार के नवादा जिले में पुलिस ने एक ऐसे गिरोह का भांडाफोड़ किया है जो कि लोगों को ऑल इंडिया प्रेग्नेंट जॉब सर्विस के नाम से बेवकूफ बनाता था, और उन्हें कहता था कि उन्हें महिलाओं से मुफ्त में सेक्स करने मिलेगा, और अगर उससे वे महिलाएं गर्भवती हो जाएंगी तो उन्हें लाखों रूपए का और भुगतान होगा। यह गिरोह लोगों को समझाता था कि जिन महिलाओं के बच्चे नहीं हैं, वे ऐसी सेवाओं के एवज में मोटा भुगतान करती हैं। और फिर इन्हें इस स्कीम में शामिल होने के लिए कुछ पैसा जमा करने कहा जाता था। इन्होंने अब तक सैकड़ों लोगों को ठगा है। यह बात समझने की है कि शर्म की वजह से ये लोग पुलिस के पास नहीं जाते थे, लेकिन अब इस गिरोह के 8 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। 

इन दो अलग-अलग जुर्म पर हम एक साथ इसलिए लिख रहे हैं कि एक में मोबाइल टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल करके लोगों को ठगा जा रहा है, और दूसरे में मोबाइल टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल करके पुलिस मुजरिमों को तेजी से पकड़ रही है। टेक्नॉलॉजी वही है, उसका अलग-अलग किस्म का इस्तेमाल अनोखा है। हिन्दुस्तान में हर दिन लाखों लोग किसी न किसी किस्म के झांसे में फंसाकर ठगे जा रहे हैं, वे अपने फोन पर आने वाले ओटीपी को देते हैं, और उनके बैंक खाते खाली हो जाते हैं। यह दो किस्म की डिजिटल-जागरूकता का मामला है, एक जिससे अनजान लोग ठगी का शिकार होते हैं, और दूसरे वे जो कि इसके पदचिन्हों के निशान से अनजान होकर कई किस्म के जुर्म करते हैं। भारत में डिजिटल-जागरूकता की कमी से ये दोनों काम हो रहे हैं, और इसे हम जागरूक इसलिए नहीं कह रहे हैं कि इसकी कमी से मुजरिम पकड़ा रहे हैं, बल्कि इसलिए कह रहे हैं कि इस टेक्नॉलॉजी से शिनाख्त के खतरों से अनजान लोग जुर्म का हौसला कर रहे हैं। उनमें अगर जागरूकता होती, तो वे ऐसे जुर्म का हौसला नहीं करते, और हिन्दुस्तान में निजी हिंसा से हत्या वाले अधिकतर मामले संभावित मुजरिमों के पहले ही सहम जाने से हुए ही नहीं रहते। लोगों को जुर्म का शिकार होने से बचने के लिए भी डिजिटली-जागरूक होना चाहिए, और जुर्म करने से बचने के लिए भी। डिजिटल-टेक्नॉलॉजी और उस पर चलने वाले मोबाइल फोन जैसे निजी उपकरण अब तकरीबन पूरी आबादी के हाथ हैं, और यह नौबत इन तमाम लोगों को ठगी के खतरे में भी डालती है, और कोई चूक करने पर पकड़े जाने के खतरे में भी। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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