संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : स्कूली नाबालिगों में एकतरफा प्रेम को लेकर सामूहिक हत्या!
16-Jan-2024 3:45 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : स्कूली नाबालिगों में एकतरफा  प्रेम को लेकर सामूहिक हत्या!

छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले में दो नाबालिग स्कूली लडक़ों का कत्ल करने वाले तीन नाबालिग सहपाठियों, और दो बालिग लोगों को गिरफ्तार किया गया है। एक क्राइम सीरियल देखकर इनमें से एक नाबालिग ने कत्ल की यह साजिश रची थी, जिसमें कुछ और लोगों को साथ लेकर उसने स्कूल के अपने ही सहपाठियों को मार डाला, और लाश को एक नहर में छुपा दिया। यह पता लगा है कि एक मृतक छात्र का स्कूल की ही एक नाबालिग छात्रा से प्रेम था। और हत्यारा लडक़ा भी उसी लडक़ी को चाहता था। ऐसे में हत्यारे ने एक रात मृतक को प्रेमिका से मिलवाने के नाम पर बुलवाया, और अपने दो नाबालिग, और दो बालिग साथियों के साथ वहां हत्या के लिए तैयार रहा। मृतक छात्र अपने एक साथी के साथ वहां पहुंच गया, इसलिए इन दोनों को कत्ल करके नहर में लाशों को छुपा दिया गया, और उनकी मोटरसाइकिल दूर फेंक दी गई। पुलिस ने कत्ल करने के सभी सामानों सहित इन पांच लोगों को पकड़ लिया है। नहर में पानी छोड़ा गया था जिसकी वजह से उसमें छिपाई गई लाशें बहकर सामने आईं, और इन गायब लडक़ों का पता लगा। 

अब यह एकतरफा मोहब्बत अधिक भयानक इसलिए हो जाती है कि इसमें हत्यारे लडक़े भी नाबालिग स्कूली सहपाठी ही हैं। हिन्दुस्तान के आम कस्बाई माहौल में जहां लडक़े-लड़कियों के ठीक से मिलने का भी माहौल नहीं रहता है, वहां लुकाछिपी में होने वाले प्रेमसंबंध, या कि एकतरफा चाहत इस हद तक पहुंच जाए, और अपराध सीरियल से तरीका सीख-समझकर ऐसे भयानक कत्ल किए जाएं, यह इस उम्र के बच्चों के हिसाब से असाधारण खतरे और फिक्र की बात है। इससे इस घटना से परे भी कुछ बुनियादी सवाल खड़े होते हैं कि भारत में किशोर उम्र के बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास का सामाजिक माहौल के साथ तालमेल बिठाना कितना जरूरी है, और उसकी कितनी कमी भी है। यह बात साफ दिखती है कि दुनिया के जिन देशों में किशोरावस्था के लडक़े-लड़कियों को साथ उठने-बैठने की छूट है, वहां न तो इस दर्जे की कोई हिंसा होती, और न ही हिंसा के पहले तक की कुंठा ही होती होगी, जो कि हिन्दुस्तान जैसे देश में समझ नहीं पड़ती है। 

दुनिया के किसी भी देश में किशोर-किशोरियों के तन-मन की जरूरतों के मुताबिक अगर उन्हें समय रहते शिक्षा नहीं मिलती है, तो फिर वे पोर्नोग्राफी जैसे क्रूर और हिंसक तरीकों से सेक्स की जानकारी पाते हैं, और क्राइम सीरियल के तरीकों से अपने मन की भड़ास निकालते हैं। जिन लोगों को तथाकथित हिन्दुस्तानी संस्कृति पर गर्व करने से फुर्सत नहीं है, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि वेलेंटाइन डे को मातृ-पितृ दिवस मनाने का फतवा देने वाला आसाराम किस तरह अपने भक्त की नाबालिग स्कूली बच्ची के साथ रेप करते पकड़ाया था, और बरसों से कैद काट रहा है। जिन हिन्दुस्तानी बेवकूफों को वेलेंटाइन डे जैसे प्रेम के प्रतीक दिवस से परहेज और नफरत है, उन्हें इस देश में पश्चिमी संस्कृति के आने के सैकड़ों बरस पहले के लिखे गए संस्कृत के श्रंृगार रस के साहित्य को पढऩा चाहिए, और यहां की सामाजिक-धार्मिक संस्कृति के एक सबसे बड़े प्रतीक कृष्ण की प्रेमलीलाओं का वर्णन पढऩा चाहिए, और उन पर सैकड़ों बरस पहले बनी पेंटिंग्स भी देखना चाहिए। जिन जाहिलों को यह लगता है कि हिन्दुस्तान बिना प्रेम के ही एक संस्कृति बन गया, वे ब्रम्हचारी-बलात्कारी धर्मगुरूओं के अतिशुद्धतावादी पाखंड के शिकार हैं, और वे इंसानी जिंदगी को प्रेम से पूरी तरह अलग करके बालिगों के बीच संबंधों को निष्ठुर बना देने पर आमादा रहते हैं। मोहब्बत से ऐसी नफरत के बाद तो लगता है कि हिन्दुस्तानियों की जो पीढिय़ां बढ़ी हैं, वे औरत-मर्द एक-दूसरे को महज सेक्स मशीन की तरह इस्तेमाल करते थे, करते हैं, और उसमें प्रेम की कोई जगह नहीं है। दूसरी तरफ यह देश पोर्नोग्राफी से पटा हुआ है, और कोई दिन ऐस नहीं गुजरता जब देश में कोई न कोई व्यक्ति बच्चों की पोर्नोग्राफी को पोस्ट करते हुए गिरफ्तार न होता हो। दुनिया में निगरानी रखने वाली एजेंसियां वयस्क लोगों की पोर्नोग्राफी पर नजर नहीं रखती हैं, और सिर्फ बच्चों की पोर्नोग्राफी को एक अंतरराष्ट्रीय निगरानी के तहत पकड़ती हैं, इसलिए हिन्दुस्तान में हर बरस महज कुछ सौ लोग इसमें पकड़ाते हैं। ऐसी ही निगरानी अगर वयस्क पोर्नोग्राफी की होने लगे, तो हर बरस दसियों लाख लोग पकड़ाएंगे। कुल मिलाकर हमारा तजुर्बा यह है कि इस देश की कभी न हुई तथाकथित संस्कृति के झंडाबरदार देश के बच्चों को उनके अपने तन-मन, सामाजिक और पारिवारिक संबंध, और अच्छे और बुरे स्पर्श जैसी तमाम जानकारियों से दूर रखना चाहते हैं क्योंकि उनकी नजरों में तन-मन की शिक्षा पश्चिम के एक बुरे असर वाली सेक्स-शिक्षा है। यह नौबत किशोरावस्था के बच्चों को बाजार में मौजूद सबसे क्रूर और हिंसक, सबसे अश्लील और भौंडे पोर्नोग्राफी के हवाले कर देती है, और प्रेम की वैसी ही बच गई कल्पना का नतीजा यह है कि स्कूली बच्चे कातिलों का गिरोह बनकर अपने ही सहपाठी को मार रहे हैं, मानो इससे हत्यारे लडक़े को उसकी पसंदीदा लडक़ी का प्रेम हासिल हो जाएगा। 

चूंकि पश्चिमी संस्कृति का लेबल लगाकर इस देश में किशोरावस्था की एक बड़ी जरूरत, तन-मन की शिक्षा को खारिज कर दिया गया है, इसलिए यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा हो गया है। देश की पार्टियां सेक्स-शिक्षा को किसी दूसरे नाम से भी छूने से डरती हैं कि मतदाताओं के जिस वर्ग को सेक्स नाम के शब्द से भी दूर रखा गया है, वह बिदक न जाए। आज हालत यह है कि परिवार के भीतर के लोग अपने ही बच्चों से बलात्कार कर रहे हैं, कल ही एक खबर थी कि चार बरस की एक बच्ची से उसके ही नाबालिग भाईयों ने बलात्कार किया, हिन्दुस्तान को ऐसी तमाम घटनाएं मंजूर हैं, लेकिन उसे बच्चों को परिपक्व बनाना मंजूर नहीं है। आज विकसित दुनिया में जिस उम्र के बच्चे अपने तन-मन की जरूरतों को समझकर जिंदगी में कामयाबी की तरफ बढ़ते हैं, उस उम्र में हिन्दुस्तानी बच्चे कुंठा और तनाव में बड़े होने का संघर्ष करते हैं। हिन्दुस्तान का समाज अपने बच्चों के व्यक्तित्व विकास का सबसे बड़ा दुश्मन हो गया है। और एक दिक्कत यह भी है कि भारतीय संस्कृति का झंडा और नारा बुलंद करने वाले जो संपन्न और ताकतवर नेता हैं, उनके अपने बच्चे महंगे स्कूलों में पढ़ते हैं जहां उन्हें परामर्शदाता भी हासिल रहते हैं, और उनकी मानसिक उलझनों का हल निकलते रहता है। लेकिन संस्कृति, नैतिकता, और शुद्धता के पैमाने आम लोगों की ऐसी भीड़ पर लादे जाते हैं जिन्हें एक काल्पनिक भारतीय संस्कृति के गौरव में जीने की अफीम लगातार चटाई जाती है, और वे उस गौरव से परे अपने बच्चों का भला-बुरा भी नहीं समझ पाते। और ऐसा भी नहीं कि किशोरावस्था की जरूरतों के पूरे न होने से सिर्फ उस दौर में बच्चों का नुकसान होता है। दरअसल इस उम्र में जब व्यक्तित्व विकास कुंठाओं से भरा रहता है, तो फिर ऐसे बच्चे आगे जाकर उत्पादकता की अपनी पूरी संभावनाओं तक नहीं पहुंच पाते, और औसत दर्जे के रह जाने का खतरा अधिक रहता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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