संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : कहानी फिल्मी तो है, लेकिन ऐसे कत्ल को समझना जरूरी
21-Jan-2024 3:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : कहानी फिल्मी तो है, लेकिन ऐसे कत्ल को समझना जरूरी

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक ऐसा गजब का हत्याकांड सामने आया है जिसमें एक महिला ने अपने पति की बीमारी और नशे की लत से तंग आकर एक फिल्मी कहानी की तरह उसका कत्ल कर दिया। इसके लिए उसने पति के इलाज के दौरान अस्पताल में दोस्त बने एक कर्मचारी को साथ लिया, और अपने कुछ दूसरे दोस्त, सहेली, पड़ोसी को भी। इसके बाद इन लोगों ने अस्पताल से चुराई गई बेहोश करने की दवा नशे में सोए पति के बदन में इंजेक्शन से डाली, और उसे मार डाला। बदन पर कई जगह इंजेक्शनों के निशानों से शक खड़ा हुआ, और पुलिस ने इस हत्या का भांडाफोड़ किया। खबर के मुताबिक यह पत्नी कुल 22 बरस की है, और उसकी शादी 15 साल की उम्र में हो गई थी, और लगातार पति के नशे से वह परेशान थी। 

हत्या के तरीके से परे भी इसके जो दूसरे पहलू हैं उस पर हम लिखना चाह रहे हैं कि किस तरह कम उम्र में समय के पहले कर दी गई शादी का नतीजा इतना बुरा हो सकता है कि वह मरने-मारने तक पहुंच जाए। 15 बरस की लडक़ी भारतीय समाज में शादी के बाद पति के नशे पर काबू कर सके, इसकी कोई गुंजाइश नहीं रहती। कम उम्र में ही बच्चे हो जाने पर महिला उन बच्चों के बोझ से भी लदी रहती है, और पति की लत से भी। ऐसे में परिवार को चलाना ही एक चुनौती रहती है, और आम हिन्दुस्तानी लडक़ी या महिला इसी में दबी रह जाती हैं। साथ-साथ तब नौबत और अधिक खराब हो जाती है जब ऐसी शादीशुदा युवती आर्थिक आत्मनिर्भर नहीं रहती, और परिवार का पेट भरना नशे के आदी पति का मोहताज रहता है। आज जिस तरह भारतीय समाज में लडक़ी और महिलाओं को घर से बाहर निकलने का मौका मिल रहा है, मोबाइल और सोशल मीडिया की मेहरबानी से उसके भी संपर्क बाहर हो पा रहे हैं, इसलिए वह ऐसी नर्क सरीखी जिंदगी से उबरने के कुछ कानूनी और कुछ गैरकानूनी रास्ते भी देखने लगी है। कहीं पर वह तलाक लेकर, या बिना तलाक लिए अलग रहने का हौसला जुटा पाती है, तो कहीं वह हिंसा पर उतरकर अकेले या कुछ लोगों की मदद से ऐसे गैरजिम्मेदार, या किसी किस्म के हिंसक पति को निपटा भी देती है। पाठकों को याद होगा कि कुछ अरसा पहले हमने ऐसे कुछ दूसरे मामलों को लेकर अपने यूट्यूब चैनल इंडिया-आजकल पर उज्जैन में एक महिला के हाथों पति और जेठ के मारे जाने पर एक वीडिटोरियल भी पोस्ट किया था। 

लेकिन इस बार कत्ल करने का जो तरीका छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले की इस महिला ने अपने अस्पताल-कर्मचारी दोस्त के साथ मिलकर इस्तेमाल किया है, वह बिना खून बहाए मौत को प्राकृतिक और स्वाभाविक दिखाने की एक बिल्कुल अनोखी साजिश थी, और यह एक भयानक सिलसिला है क्योंकि बेहोशी की ऐसी दवा जुटा लेना कोई दुर्लभ काम नहीं है। किसी फिल्म या अपराधकथा की तरह यह कत्ल अपने इस तरीके से परे भी एक और बात की तरफ ध्यान खींचता है। अस्पताल कर्मचारी तो इस महिला का दोस्त या प्रेमी था, लेकिन इसके एक सहेली, इसका एक पड़ोसी, ऐसे कई और लोग हत्या के इस जुर्म में भागीदार बन गए थे, और इन सबने कहीं न कहीं तो यह पढ़ा होगा कि हत्यारों को आखिर जेल जाना पड़ता है, कैद काटनी पड़ती है। लोग किसी की मदद करते हुए अपने आपकी बाकी जिंदगी को इस तरह और इस कदर खतरे में कैसे डाल लेते हैं, यह हमारी समझ से परे है। हो सके तो सरकार या समाज के कुछ संगठनों को कत्ल जैसे जुर्म के मददगार लोगों का अध्ययन करके समाज के सामने रखना चाहिए कि ये लोग ऐसे गलत काम में पड़े कैसे, और इसका नतीजा कितना खतरनाक भुगतना पड़ा है। 

हम बहुत से हादसों और बहुत से ऐसे जुर्म को लेकर यही सोच रखते हैं कि इनका विश्लेषण करके लोगों के सामने रखना चाहिए ताकि बाकी लोग कमअक्ली में, या अतिउत्साह में ऐसे जुर्म में न फंसें। फिर आज जैसी खबरें आती हैं, उन्हें देखकर यह भी समझ नहीं पड़ता कि क्या शराबबंदी करने से इस किस्म के जुर्म घटेंगे? छत्तीसगढ़ में ही एक आईपीएस अफसर, संतोष सिंह अपने खुद के निजी उत्साह से जिस-जिस जिले में रहते हैं, वहां पर नशे के खिलाफ एक बड़ा अभियान, निजात-अभियान छेड़ते हैं। और उनका यह निष्कर्ष है कि नशा जहां पर कम होता है, वहां पर हर किस्म के जुर्म भी कम होने लगते हैं, सडक़ हादसे भी कम होने लगते हैं। उन्होंने इसका विश्लेषण करके जो आंकड़े सामने रखे हैं वे चौंकाते हैं कि एक बरस तक नशे के खिलाफ अभियान चलाने से बलात्कार की घटनाओं में 35 फीसदी कमी आई, हत्याओं में 47 फीसदी की कमी आई, हत्या की कोशिशें 64 फीसदी घटीं, चाकूबाजी आधे से भी कम रह गई, और छेड़छाड़ जैसी घटनाओं में भी 40 फीसदी की कमी आई। अब छत्तीसगढ़ में चूंकि शराब तो सरकार ही बेचती है, इसलिए कोई पुलिस अफसर बाकी किस्म के नशों के खिलाफ ही कार्रवाई कर सकता है, या अवैध शराब के खिलाफ। आज प्रदेश में चारों तरफ से खबरें आती हैं कि तरह-तरह की प्रतिबंधित दवाएं नशे के लिए बाजार में बेची जा रही हैं, और रोजाना ही गांजे से भरी गाडिय़ां पकड़ा रही हैं। ऐसे ही प्रतिबंधित नशे और अवैध शराब के खिलाफ कार्रवाई से अगर किसी जिले में बड़े-बड़े किस्म के जुर्म आधे रह जाते हैं, या एक तिहाई घट जाते हैं, तो वह नशे से होने वाले अपराध का एक बड़ा संकेत और सुबूत है। 

रायगढ़ में अभी हुई इस ताजा हत्या का मामला पति के नशे से थकी हुई पत्नी का है, और कानूनी या गैरकानूनी नशा किस तरह परिवारों को खत्म करता है, उसका यह बड़ा सुबूत है। अब ऐसे जोड़ों में एक मर जाए, दूसरे को जेल हो जाए, तो जाहिर है कि उनके बच्चों की जिंदगी भी खत्म हो जाती है। हम पारिवारिक हिंसा के पीछे की कई वजहों में से नशे को एक बड़ी वजह पाते हैं, और इस पहलू से भी समाजशास्त्रीय अध्ययन होना चाहिए। महज जुर्म, जांच, मुकदमा, और सजा, इससे समाज में कोई सुधार नहीं आ सकता, ऐसे जुर्म और ऐसी हिंसा की वजहों को समझना और उन्हें दूर करना जरूरी है। ऐसे पहलू बहुत से हैं, लेकिन हमने उनमें से कुछ की चर्चा आज यहां की है, लोग अपने आसपास इस तरह के तनाव से गुजर रहे परिवारों की मदद करने की कोशिश भी कर सकते हैं। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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