संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इतनी संगठित डिजिटल ठगी रोकने का जिम्मा किस पर?
27-Jan-2024 4:38 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  इतनी संगठित डिजिटल ठगी रोकने का जिम्मा किस पर?

छत्तीसगढ़ में ऑनलाईन शेयर खरीद-बिक्री पर रोजाना पांच-दस फीसदी मुनाफे का झांसा देकर एक पति-पत्नी से एक मोबाइल ऐप के माध्यम से 68 लाख रूपए की ठगी हो गई। और एक दूसरी खबर इसी प्रदेश में सेना के एक अफसर से कुछ इसी किस्म का शेयर कारोबार का झांसा देकर 89 लाख रूपए ठग लिए। कल ही के अखबारों में ये दोनों खबरें हैं, और हमारे सरीखे कुछ अखबारनवीसों के वॉट्सऐप नंबर हर हफ्ते ऐसे किसी न किसी शेयर खरीदी-बिक्री के ग्रुप में जोड़े जाते हैं, या क्रिप्टोकरेंसी कारोबार के एक नए झांसे में। इन पर होने वाली अलग-अलग लोगों की चर्चा के पोस्ट देखें तो वे ग्रुप के मुखिया की सलाह पर हर दिन लाखों या दसियों लाख रूपए कमाने की खुशी जाहिर करते रहते हैं, और ऐसा लगता है कि उनके झांसे में आकर और बहुत से लोग पैसा इस तरह लुटा बैठते हैं। ऐसे जालसाज और ठग कई फर्जी वेबसाईटें भी बना लेते हैं, और वहां से भी लोगों को फांसते हैं। 

यहां तक तो बात ठीक थी, लेकिन कल ही एक दूसरी खबर यह है कि साइबर-मुजरिमों ने मोबाइल फोन की एक मैसेंजर सर्विस पर यह पोस्ट किया है कि उनके पास भारत के 75 करोड़ लोगों के आधार कार्ड, और उससे जुड़ी हुई तमाम जानकारियां बिक्री के लिए मौजूद हैं। इंटरनेट का जो हिस्सा सिर्फ मुजरिमों के बीच लोकप्रिय है, वहां भी ऐसी जानकारी पोस्ट की गई है। दुनिया की जिस साइबर-सुरक्षा फर्म ने यह जानकारी सामने रखी है, उसने अभी तक इन बेचने वालों की जानकारी को परखा तो नहीं है, लेकिन इस तरह की जानकारी दुनिया के कई देशों में कई कंपनियों या सरकारी सेवाओं से चुराकर बिक्री के लिए सामने रखी जाती हैं। 

अब हम भारत में इन दो चीजों को मिलाकर देखें तो अधिकतर लोग धोखा खाने के लिए एक पैर पर खड़े दिखते हैं, उन्हें बस कोई फायदे का सौदा दिख जाए। हमारे सरीखे लोग भी फेसबुक पर दो-तीन सौ रूपए में शानदार शर्ट का इश्तहार देखकर पैसा गंवा चुके हैं। लेकिन जब लोग शेयर कारोबार में अंधाधुंध मोटी कमाई के झांसे में आ जाते हैं, या दुनिया में अभी पूरी तरह अविश्वसनीय क्रिप्टोकरेंसी से फायदा पाने के फेर में ठगे जाते हैं, तो कुछ हैरानी होती है। अगर दुनिया में इतनी कमाई मुमकिन होती, तो लोग कारोबार ही क्यों करते? लेकिन यहां पर एक दूसरा सवाल परेशान करता है कि सरकार की इतनी सारी निगरानी एजेंसियां, और जांच एजेंसियां मिलकर भी ऐसी जालसाजी को पकड़ क्यों नहीं पाती हैं? इनके तौर-तरीके मिलते-जुलते रहते हैं, और इंटरनेट पर उन्हें पकड़ पाना इतना मुश्किल भी नहीं होना चाहिए। अभी ब्रिटेन से स्पेन के लिए रवाना हुए एक नौजवान ने लंदन के एयरपोर्ट पर अपने दोस्तों को मजाक में एक संदेश भेजा था कि वह तालिबान है, और वह विमान को विस्फोट से उड़ाने जा रहा है, तो उसके शब्दों को ही एयरपोर्ट के वाईफाई पर निगरानी एजेंसियों ने पकड़ लिया था, और एक खतरे की आशंका को टाल दिया था। हिन्दुस्तान जैसे काबिल देश में जहां से निकलकर आईआईटी और आईआईएम के लोग दुनिया की सबसे बड़ी टेक्नॉलॉजी कंपनियां चला रहे हैं, उन संस्थानों से निकले हुए हजारों दूसरे लोग देश के भीतर साइबर-ठगी को रोकने की तरकीबें क्यों नहीं निकाल सकते? आज हिन्दुस्तान के कम्प्यूटर विशेषज्ञ बनने वाले नौजवान दुनिया भर में जाकर कामयाबी पा रहे हैं, लेकिन अगर उनकी खूबियों से इस देश में ही साइबर-जुर्म नहीं रूक पा रहे, तो सरकार और जानकार के बीच एक फासले की वजह से ऐसा दिखता है। 

दूसरी तरफ भारत में सेक्स के भूखे बहुत से लोगों को जब किसी लडक़ी का संदेश मिलता है कि बाथरूम में पहुंचकर कपड़े उतारो, तो वे लार टपकाते हुए अपने कपड़े उतार देते हैं, और मोबाइल फोन पर कैमरे पर अपने को दिखाते हुए, और सामने किसी पेशेवर ठग लडक़ी को देखते हुए ब्लैकमेल होने का सामान बन जाते हैं। ऐसी ठगी के शिकार देश में हर दिन दसियों हजार लोग हो रहे हैं, और ब्लैकमेल की शिकायत करने वे पुलिस तक भी नहीं जाते क्योंकि उससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा खतरे में पड़ सकती है। यह तरीका इतना आम हो चुका है, और इतनी अधिक घटनाएं छप चुकी हैं कि कोई बहुत ही मूढ़ और मूर्ख समाज ही ऐसे झांसे में आ सकता है, लेकिन हिन्दुस्तानी मर्द के दिल-दिमाग में सेक्स की भूख इतनी बैठी रहती है कि महिला का बदन देखते ही वे मानो सम्मोहन का शिकार होकर उसके आदेश पर कपड़े उतार फेंकते हैं। लेकिन अधिक हैरानी इसलिए नहीं होती है कि जस्टिस मार्कण्डेय काटजू ने कहा है कि 90 फीसदी हिन्दुस्तानी बेवकूफ होते हैं, और अब वे 90 फीसदी लोग यह साबित करने में लगे हुए हैं कि वे वेबकूफ भी हैं।

ठगी के कुछ ऐसे बहुत प्रचलित और बहुत छप चुके तरीके भी जब रोके नहीं जा सक रहे हैं, तो हैरानी होती है कि सरकार की इंटरनेट और साइबर सुरक्षा क्या बिल्कुल ही बेअसर है? होना तो यह चाहिए कि कुछ शब्दों को लेकर भारत में सरकारी एजेंसियां निगरानी करती रहें, और आतंक की धमकी या किसी तरह के आर्थिक फ्रॉड का रूख दिखते ही और बारीक जांच की जाए, और मुजरिमों को पकड़ा जाए। कुछ अरसा पहले टेलीफोन फ्रॉड के एक मामले में जब सरकारी एजेंसियों ने जांच की थी, तो बंगाल में एक व्यक्ति के पास 25 हजार सिमकार्ड मिले थे। जब एक-एक सिमकार्ड के लिए कई तरह के पहचान पत्र लगते हैं, आधार कार्ड लगता है, अंगूठे का निशान लिया जाता है, तो फिर इतने सिमकार्ड कैसे बन जाते हैं? लेकिन ठगों के जाल को तोडऩे के लिए सरकारी एजेंसियां समय रहते कुछ नहीं कर पाती हैं, और जब लोगों के खाते खाली हो चुके रहते हैं, उनकी अश्लील फिल्में बन चुकी रहती हैं, तब जाकर सरकार कुछ मुजरिमों तक पहुंचती है। भारत में सरकार ने खुद ही जितने तरह के काम को डिजिटल करवाया है, उसे देखते हुए सरकार को ही सारे डिजिटल ट्रैफिक पर जुर्म रोकने के तरीके निकालने चाहिए, जो कि लोगों को उनकी निजता भंग किए बिना भी बचा सके। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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