संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नीतीश ने याद दिला दी सब्जी पसंद न आने पर मां के कातिल बेटे की
28-Jan-2024 4:56 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय :  नीतीश ने याद दिला दी सब्जी पसंद न आने पर मां के कातिल बेटे की

दो खबरें जिनका आपस में एक-दूसरे से कोई लेना-देना न हो, उनका किस तरह एक-दूसरे से लेना-देना हो सकता है, इसकी एक मिसाल अभी इसी पल सूझी है। दो अलग-अलग मामलों पर आज इस जगह लिखने की एक संभावना बन रही थी, इनमें से एक तो छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर की एक अदालती खबर है जिसमें एक नौजवान को उम्रकैद हुई है। इसने साल भर पहले घर पहुंचकर मां से पूछा था कि क्या सब्जी बनी है, और जब उसे पता लगा कि उसे नापसंद सब्जी बनी है, तो इस पर उसने फावड़ा उठाकर मां को मार डाला था। मां-बाप के साथ रहने वाला नौजवान किस तरह मां का कातिल हो सकता है, कितनी सी बात पर हो सकता है, इसकी यह एक भयानक मिसाल है, और बहुत से लोगों को अपने कलेजे के टुकड़ों से रिश्ते तय करते हुए, रखते हुए, निभाते हुए ऐसी कुछ मिसालों को याद रखना चाहिए। अभी कुछ ही दिन हुए हैं कि पास की ही एक खबर थी कि एक नौजवान ने शराब पीने को पैसे मांगे, और न मिलने पर बाप को मार डाला। रिश्ते किस तरह खराब हो सकते हैं, बिना बात के भी खराब हो सकते हैं, इसकी मिसाल हम कुछ पारिवारिक मामलों से शुरू भर कर रहे हैं, इसके बाद यह मिसाल आज की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना तक चली जाती है जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुछ दिनों से चली आ रही खबरों के मुताबिक राजभवन से इस्तीफा देकर निकले, और उन्होंने कहा कि गठबंधन की सरकार खत्म हो गई है, और एक पिछला गठबंधन था, उसके लोग मिलकर अगर कुछ तय करते हैं, तो उस बारे में सोचा जाएगा। लोगों को याद होना चाहिए कि बिहार का पिछला विधानसभा चुनाव नीतीश ने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था, और फिर लालू और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। अब ऐसा जाहिर है कि वे लालू और कांग्रेस का साथ छोडक़र एक बार फिर भाजपा के साथ मिलकर या तो आज सरकार बना लेंगे, या हो सकता है कि नया गठबंधन विधानसभा को भंग करके आने वाले लोकसभा चुनाव के साथ बिहार के विधानसभा चुनाव की सिफारिश भी कर दे। अभी हम ऐसी संभावनाओं पर कुछ कहना नहीं चाहते, लेकिन जिस तरह से नीतीश ने बिना किसी जाहिर या ठोस वजह के इस गठबंधन को तोड़ा, अपनी ही सरकार गिराई, और पहले की अपनी ऐसी ही कुछ बार की हरकत को दोहराया, उससे हमें लगा कि क्या इसकी तुलना किसी तरह मां के कत्ल की घटना से की जा सकती है? 

नीतीश ने 2020 में पिछला विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ मिलकर लड़ा था, जिसकी अगुवाई भाजपा करती है। और बाद में उन्होंने 2022 में एनडीए की सरकार गिराकर भाजपा से रिश्ता तोड़ दिया, और बिहार का महागठबंधन नाम के एक गठबंधन में शामिल हो गए, जिसमें लालू यादव की आरजेडी, और कांग्रेस पार्टी शामिल थे। अब डेढ़ बरस बाद इस गठबंधन की सरकार गिराकर नीतीश ने अब से कुछ घंटे बाद भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के एक समीकरण को जन्म दिया है। इस तरह परस्पर विरोधी खेमों में जाकर, उनकी मदद से मुख्यमंत्री बने रहकर नीतीश अब बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता हो गए हैं। उन्होंने डेढ़ बरस पहले जब भाजपा-एनडीए वाले गठबंधन की पीठ में छुरा भोंका था, तब बहुत से लोगों को नीतीश बहुत अच्छे लगे थे। अब उन्होंने आज सुबह तक के गठबंधन की पीठ में छुरा भोंका है तो वे लालू और कांग्रेस के विरोधियों को अच्छे लग रहे होंगे। लेकिन जिस तरह बिना किसी मुद्दे के, वे अपने साथियों को धोखा देते हैं, उनकी पीठ में छुरा भोंकते हैं, तो लगता है कि कोई बेटा मां की पीठ में इस तर्क के साथ छुरा भोंक दे रहा है कि मां ने बेटे की पसंद की सब्जी नहीं बनाई है। नीतीश की खूबी यही है कि वह बिना पिए, बिना नशे के भी अपने मातृ-गठबंधन की पीठ में छुरा भोंक सकते हैं, और पसंद की सब्जी की चाहत और संभावना में नई मां बना सकते हैं। यह बात हम आज उनके लालू छोडक़र भाजपा के साथ जाने की संभावना पर नहीं कह रहे हैं, पिछले कुछ बार जिस तरह से उन्होंने बार-बार सब्जी नापसंद होने की आड़ लेकर, उसके बहाने से अपनी उस वक्त की मां की पीठ में छुरा भोंका है, वह भारतीय लोकतंत्र में गजब की मिसाल है। कुछ और पार्टियों के कुछ नेताओं ने अलग-अलग प्रदेशों में कुछ हद तक ऐसा किया है, लेकिन नीतीश उन सबसे भी ऊपर एक अनोखी मिसाल हैं, और इस बार उन्होंने ऐसा लगता है कि बिहार के महागठबंधन के साथ-साथ इंडिया नाम के राष्ट्रीय गठबंधन की पीठ में भी सब्जी नापसंद होने की वजह से छुरा भोंक दिया है। 

हम पहले भी बहुत बार यह बात लिखते आए हैं कि लोगों को अपनी अगली पीढ़ी के साथ अपने रिश्ते और लेन-देन तय करते हुए, उन्हें वारिस बनाते हुए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आज उनकी आंखों के तारे कल मां-बाप को अपनी आंखों की किरकिरी भी महसूस कर सकते हैं, और उस वक्त मां-बाप कहीं के नहीं रह जाते। इसलिए अपना सब कुछ अपनी अगली पीढ़ी को देने के पहले मां-बाप को इतना कुछ अपने लिए बचाकर रख लेना चाहिए कि बकाया लंबी जिंदगी लोगों के सामने हाथ न फैलाना पड़े, भूखों न मरना पड़े, किसी वृद्धाश्रम के रहमोकरम पर न रहना पड़े। नीतीश कुमार ने भारत की राजनीति को कुछ इसी तरह का साबित किया है कि साल-दो साल किसी मातृ-गठबंधन को चूसकर वे सीएम बने रहें, और फिर आगे की बेहतर संभावनाओं को देखते हुए वे मां की पीठ में किसी बहाने से छुरा भोंककर नई मां बना लें, और फिर उस नई मां से बकाया तमाम जिंदगी निभाने के बारे में ऐसी जुबान में दावे करें जो कि लोगों को ईमानदार और सरलता की मिसाल लगे, और जिसका कि इन दोनों से कुछ भी लेना-देना न रहे। 

राजनीति में किसी नैतिकता की हमें उम्मीद नहीं रहती, और नीतीश तो लोकतंत्र की एक ऐसी औलाद है जो कि कई बार अनैतिक हो चुके हैं। अब ऐसा लगता है कि वे अगले कुछ बरस नई मां के साथ रह भी सकते हैं, क्योंकि वहां पर पसंदीदा सब्जियों के बनने की संभावना अधिक दिखती है, वहां पर अगले चुनाव में जीतकर आने की संभावना अधिक दिखती है, वहां पर फायदे अधिक दिखते हैं। अगले कुछ घंटों में ऐसी उम्मीद की जा रही है कि बिहार में एक बार फिर एनडीए की सरकार बन जाएगी, और वह इंडिया नाम के गठबंधन की संभावनाओं का एक बड़ा नुकसान रहेगा। लेकिन नीतीश जैसे बेटे के लिए सब्जी बनाने के पहले हर मां को अपनी पीठ पर तवा बांधकर रखना चाहिए, उसे कब कौन सी सब्जी नापसंद हो जाए, और कब उसे किसी दूसरे चूल्हे पर बनी सब्जी अच्छी लगने लगे। 

बड़ी अजीब सी बात है कि एक कत्ल और एक सत्तापलट के बीच ऐसी मिसाल सूझ रही है, लेकिन जिंदगी ऐसी ही है, जहां कहीं के निजी रिश्ते, कहीं की राजनीति से मिलते-जुलते दिखते हैं! 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news