संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : चारों तरफ नकारात्मक खबरों का ऐसा असर..
29-Jan-2024 4:24 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : चारों तरफ नकारात्मक खबरों का ऐसा असर..

ऐसा लगता है कि आम जिंदगी में चारों तरफ से आने वाली खबरों से लोगों ने सबक न लेना तय कर लिया है। इसीलिए लगातार खबरें छपती हैं, हाईकोर्ट नाराजगी दिखाते रहता है, लेकिन न लोग लाउडस्पीकर की चीख-चिल्लाहट कम करते, और न ही अफसर उस पर कोई कार्रवाई करते दिखते। यहां तक कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट शोरगुल पर काबू पाने में पूरी तरह निराश होने के बाद यह तक कह चुका है कि ऐसा लगता है कि अफसर यह करना ही नहीं चाहते, इसके बाद भी हालत नहीं सुधर रही। अधिकतर इलाकों में सुबह से रात तक लाउडस्पीकर चलते रहते हैं, प्रशासन इम्तिहान चलने का हवाला देकर रोक लगाने के लिए टीम बनाता है, लेकिन होता कुछ नहीं है। इसी तरह यातायात सुधार सप्ताह के नाम पर कुछ गाडिय़ों का चालान हो जाता है, कुछ महंगी मोटरसाइकिलों में शौक में लगाए गए शोर करने वाले साइलेंसर जब्त कर लिए जाते हैं, और उन्हीं तमाम जगहों पर दुबारा यही सब होने लगता है। आम जिंदगी में बदअमनी और अराजकता फैलाने को लोगों ने लोकतांत्रिक स्वतंत्रता मान लिया है, और इसका इस्तेमाल करते रहते हैं।

अभी एक सरकारी स्कूल में हेडमास्टर ने बच्चों को बौद्ध धर्म अपनाने की शपथ दिलाई, और बौद्ध शपथ के मुताबिक उन्हें हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा न करने की कसम भी दिलाई। अब सरकारी स्कूल के हेडमास्टर को देश के कानून की इतनी आम समझ न हो, यह कल्पना से परे की बात है, लेकिन ऐसा जगह-जगह हो रहा है। स्कूलों में खासकर बहुत से शिक्षक शराब के नशे में पहुंच रहे हैं, और ऐसी खबरें तभी बाहर आती हैं जब मास्टर फर्श पर पड़े दिखते हैं, या कोई उनके वीडियो बनाते हैं। यह सिलसिला भयानक इसलिए है कि हमारा अंदाज है कि सामने आने वाली ऐसी हर खबर के मुकाबले सौ-सौ गुना खबरें दबी रह जाती होंगी, और बच्चों का उन पर कैसा असर पड़ता होगा यह अंदाज लगाना अधिक मुश्किल नहीं है। 

देश भर में स्कूली बच्चों का जो सर्वे हुआ है, वह बताता है कि ऊंची कक्षाओं में पहुंच चुके बच्चे भी नीची कक्षाओं के बच्चों जितनी भी पढ़ाई नहीं कर पाते, न किताब पढ़ सकते, न ठीक से जोड़-घटाना कर सकते। देश का यह हाल न सिर्फ स्कूलों में हैं, बल्कि हर किस्म की सरकारी और सार्वजनिक जगह पर से उत्कृष्टता गायब है। अदालतों में कामकाज की रफ्तार नहीं है, जज और मजिस्ट्रेट के सामने बैठे बाबू खुलेआम हर वकील और मुवक्किल से रिश्वत लेते हैं, और अदालत पहुंचकर हर किसी को सबसे पहले यही लगता है कि वे एक सबसे भ्रष्ट जगह पर आ गए हैं, जहां पर वे मुजरिम रहें, या शिकायतकर्ता, हर पेशी पर रिश्वत देनी ही है। सरकारी अस्पतालों में इसी तरह का हाल दिखता है, मशीनें हैं तो चलाने वाले डॉक्टर और टेक्नीशियन नहीं हैं, कहीं पर ये लोग हैं, तो मशीनें नहीं हैं, दोनों हैं तो मशीनों में लगने वाले केमिकल की किट नहीं हैं, दूसरे सामान नहीं हैं, सर्जन हैं तो बेहोश करने वाले डॉक्टर नहीं हैं, बेहोश करने वाले डॉक्टर हैं तो सर्जन नहीं हैं। और इन विभागों में इतना संगठित भ्रष्टाचार चलता है कि वहां लोगों की जान कैसे बचती है इस पर सोचें तो ईश्वर पर भरोसा होने लगता है। 

हर नए अफसर और नेता कहीं बगीचों में फौव्वारे लगवाते हैं, तो कहीं तालाबों में बोट चलवाते हैं, और जब से स्मार्ट सिटी की योजना आई है, तब से तो हर स्मार्ट सिटी में सैकड़ों करोड़ रूपए सालाना की बर्बादी की गारंटी सी हो गई है। अफसर स्मार्ट सिटी में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के बिना अपनी मर्जी से अंधाधुंध खर्च करते हैं, और ऐसा लगता है कि अधिक से अधिक भ्रष्ट खर्च करना ही उन्हें काम करने की ताकत देता है। दूसरी तरफ जिलों में कलेक्टरों के हाथ में जिला खनिज न्यास के दर्जनों या सैकड़ों करोड़ रूपए रहते हैं, और उनमें नेता, अफसर, और सप्लायर मिलकर अधिक से अधिक बर्बादी करने का सामान जुटाते रहते हैं। सत्ता के सभी भागीदार स्मार्ट सिटी और डीएमएफ को कमाई का एक जरिया बनाकर चलते हैं। अभी छत्तीसगढ़ में कई मामलों की जांच कर रही ईडी ने जिला खनिज न्यास, डीएमएफ, के घोटाले के खिलाफ राज्य की एसीबी-ईओडब्ल्यू में एफआईआर की है, और जब केन्द्र सरकार की इन जांच एजेंसी राज्य के बड़े-बड़े अफसरों के खिलाफ ऐसी रिपोर्ट कर रही है, जो कि केन्द्रीय सेवाओं के अफसर हैं, तो फिर इसकी गंभीरता को समझना चाहिए। 

रोज के अखबार उठाकर देखें तो उनका खबरों का तकरीबन हर पन्ना जनता और सरकार दोनों की अराजकता और भ्रष्टाचार की खबरों से भरा रहता है। ऐसे में यह लगता है कि लोगों के लिए सकारात्मक प्रेरणा की कोई खबर कैसे मिल सकती है? यह हैरानी होती है कि खबरों को पढऩे वाले लोग अगर सिर्फ यही देख पाएंगे कि देश में कितना भ्रष्टाचार है, लोग कितने अराजक हैं, चारों तरफ थूक और मूत रहे हैं, सडक़ पर चाकूबाजी कर रहे हैं, दारू के लिए पैसा मांगने पर न मिले तो राह चलते को भी चाकू भोंक रहे हैं, तो लगता है कि कानून व्यवस्था से लेकर जनता की सोच तक ऐसी भयानक गिरावट आई है कि इस देश के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है। हम ऐसी खबरों का व्यापक असर देखते हैं, और आज देश भर में धर्म और जाति का तनाव, क्षेत्र और भाषा का तनाव हिंसक होते जा रहा है, और इनका भी असर लोगों पर होता ही है। 

आज ही की एक दूसरी खबर दिख रही है कि प्रेमसंबंध में असफल एक नाबालिग ने दूसरे नाबालिग का कत्ल कर दिया! एक तरफ नाबालिग बच्चों के किए जुर्म बढ़ते चले जा रहे हैं, तो दूसरी ओर नाबालिग बच्चों के अश्लील वीडियो पोस्ट करने वाले लोग आए दिन गिरफ्तार होते दिखते हैं, और आज की ही एक दूसरी खबर है कि भारत सरकार के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 6 बरसों में बच्चों के देहशोषण के मामले बढक़र दो गुना हो गए हैं। हर जुर्म की खबर दूसरे कुछ संभावित मुजरिमों को रास्ता दिखाती है, और फिल्में और टीवी के कई किस्म के सीरियल हिंसा को अंधाधुंध बढ़ा भी रहे हैं। हमारा यह भी मानना है कि हिंसा की सीमा तक पहुंचने वाले नाबालिग और बालिग लोगों के दिमाग में यह भी रहता है कि देश में आज प्रेरणा की खबरें कहीं से नहीं आती हैं, और हिंसा की खबर हर तरफ से आती हैं। कल ही इस अखबार के संपादक ने अपने साप्ताहिक कॉलम, ‘आजकल’ में रोहन बोपन्ना के इतनी उम्र में पहुंचकर, इतने दर्जन बार कोशिश करने के बाद ग्रैंड स्लैम टाइटिल पाने पर लिखा, तो उस पर दर्जनों लोगों ने संदेश भेजे कि कम से कम एक सकारात्मक बात पढऩे मिली जिससे दिल-दिमाग को राहत मिली, और हौसला मिला। चारों तरफ से अगर हिंसा, नफरत, धर्मान्धता, और जुर्म की खबरें आएंगी, मारने या मर जाने की खबरें रहेंगी, तो उससे ऐसी घटनाएं और बढ़ती चली जाएंगी। इसलिए दुनिया को लगातार कुछ बेहतर बनाने की कोशिश होती रहनी चाहिए, ताकि बेहतर मामलों की खबरें लोगों की सोच को बेहतर बना सकें।

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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