संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : नशे पर रोकथाम के लिए छत्तीसगढ़ की एक मिसाल
08-Feb-2024 3:40 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :   नशे पर रोकथाम के लिए छत्तीसगढ़ की एक मिसाल

दुनिया में एक शांत पर्यटन स्थल रहते आया देश, इक्वाडोर अब दुनिया में नशे के कारोबार का एक बड़ा केन्द्र बन गया है। हालत यह है कि अभी वहां के राष्ट्रपति ने देश में आपातकाल घोषित कर दिया है, क्योंकि नशे के कारोबारी देश पर एक किस्म से कब्जा सा करने की तरफ बढ़ रहे हैं। लोगों को याद होगा कि कुछ हफ्ते पहले एक टीवी स्टूडियो से जीवंत प्रसारण के बीच बंदूकबाजों ने भीतर घुसकर एक टीवी पत्रकार का अपहरण कर लिया था, एक वकील को गोली मार दी थी, कहीं जेलों में कैदियों ने सुरक्षा कर्मचारियों को बंधक बना लिया था। बीबीसी की एक ताजा रिपोर्ट देखें तो अब कुछ जानकार लोग इक्वाडोर को योरप और अमरीका जाने वाले कोकेन का रास्ता बता रहे हैं। दरअसल, इक्वाडोर से लगे हुए कोलंबिया और पेरू जैसे देश कोकेन नाम के खतरनाक नशे को बनाने वाला कच्चा माल पैदा करते हैं। नशे के कारोबार में कमाई इतनी रहती है कि ये दुनिया के किसी भी देश की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को भाड़े पर पालने लगते हैं, जैसा कि भारत के पंजाब में बड़े पैमाने पर संगठित रूप से हो रहा है। पंजाब पाकिस्तान के रास्ते आने वाले नशे का ऐसा बुरा शिकार है कि वहां की पूरी की पूरी जवान पीढ़ी इसमें फंसकर रह गई है, और उड़ता पंजाब जैसी फिल्में बनाई जा रही हैं। जिस पंजाब को अपनी स्थानीय और विदेशों से आने वाली कमाई की वजह से देश का एक सबसे संपन्न राज्य होना था, वह राज्य नशे की गिरफ्त में आकर इस तरह खत्म हो रहा है कि वहां अधिकतर घरों में कोई न कोई नशे के शिकार दिख रहे हैं, और नशे की आदतों की वजह से वहां की आबादी का एक हिस्सा दूसरे कई किस्म की बीमारियों का भी शिकार होते चल रहा है। 

हम इक्वाडोर और पंजाब से होते हुए छत्तीसगढ़ जैसे राज्य पर आना चाहते हैं, और जिस तरह इक्वाडोर को योरप और अमरीका का नशे के ट्रांसपोर्ट का दरवाजा बताया जाता है, कुछ उसी तरह छत्तीसगढ़ देश के काफी हिस्सों के लिए नशे का दरवाजा बन गया है। ओडिशा की सरहद से लगे हुए छत्तीसगढ़ के कम से कम एक जिले में तो तकरीबन हर दिन गांजे की तस्करी पकड़ाती है, करोड़ों का सोना पकड़ाता है, करोड़ों की नगदी के साथ-साथ, अभी कुछ दिन पहले ही करोड़ों के नकली नोट भी पकड़ाए हैं। यह राज्य अवैध कारोबार से बाजार में आई नशा देने वाली दवा की गोलियों और शीशियों का अड्डा भी बन गया है। इस प्रदेश में कम से कम एक पुलिस अफसर ऐसे हैं जिन्होंने अपनी तैनाती के हर जिले में नशे के खिलाफ पुलिस के सीमित साधनों में भी असीमित अभियान छेड़ा है, और कामयाबी पाई है। अभी राजधानी रायपुर में एसएसपी बनाए गए संतोष सिंह जिस जिले में रहे वहां उन्होंने नशे के कारोबार पर भी वार किया, और लोगों से नशा छुड़ाने की कोशिश भी की। एक किस्म से ऐसी कोशिश किसी अफसर के लिए नामुमकिन लग सकती है क्योंकि प्रदेश में शराब के नशे का कारोबार पूरे का पूरा सरकार ही करती है। लेकिन शराब के कम नुकसानदेह नशे के मुकाबले अवैध दवाईयों का नशा, और दूसरे किस्म के गैरकानूनी नशे अधिक खतरनाक हैं। इसलिए संतोष सिंह का यह अभियान सरकारी कारोबार से परे अवैध नशे के खिलाफ रहता है, और इसीलिए सरकार को भी इसमें कोई दिक्कत नहीं होती है। 

दरअसल, नशे का बुरा असर जब तक समाज को ठीक से समझ में आता है तब तक समाज उसके शिकंजे में फंस चुका रहता है। शराब का सरकारी कारोबार तो सरकार की नजर में रहता है, हालांकि छत्तीसगढ़ में पिछली कांग्रेस सरकार के समय सत्ता के पसंदीदा मवालियों ने सरकार के साथ मिलकर जिस तरह से प्रदेश में हजारों करोड़ की अवैध शराब बनवाई थी, और सरकारी दुकानों से ही बेची थी, वह हिन्दुस्तान के इतिहास में बेमिसाल संगठित अपराध रहा। वैसी अघोषित बिक्री को अगर छोड़ दें, तो आमतौर पर शराब की खपत सरकार की नजर में रहती है। लेकिन दूसरे किस्म के गैरकानूनी नशे की जानकारी भी सरकार को नहीं हो पाती है, और उसके असर का अंदाज लगना भी नामुमकिन रहता है। प्रदेश सरकार को चाहिए कि जिस तरह एक अफसर अपने प्रभार के जिलों में लगातार ऐसा अभियान चलाता है, वैसा अभियान पूरे प्रदेश में चलाना चाहिए, और इससे छत्तीसगढ़ की अगली पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आने से बचेगी। आज केन्द्र और राज्य सरकारों की बहुत सी योजनाओं की वजह से लोगों को बहुत अधिक मेहनत करने की जरूरत नहीं रह गई है, और नौजवानों में से कई ऐसे हैं जो मां-बाप की छाती पर मूंग दलते हुए बैठे रह सकते हैं। ऐसी पीढ़ी अगर नशे की गिरफ्त में आ जाती है, तो वह बाकी जिंदगी भी कुछ काम करने के लायक नहीं रह जाएगी। इसलिए हर प्रदेश की यह जिम्मेदारी है कि वह कानूनी नशे की खपत भी घटाए, और गैरकानूनी नशे पर कड़ाई से रोक लगाए। 

ऐसा एक भी दिन नहीं गुजरता जब छत्तीसगढ़ से होकर गुजरती हुई गांजे की गाडिय़ां न पकड़ाती हों। दूसरे प्रदेशों में भी जहां ये गाडिय़ां जाती हैं, वहां भी इनको पकड़ा तो जा ही सकता है, और छत्तीसगढ़ में अगर ये रोज ओडिशा से आ रही हैं, तो वहां के ढीले इंतजाम की वजह से ही वे इस राज्य तक पहुंच पाती हैं। नशे के कारोबार के खिलाफ देश में कानून बहुत कड़े हैं, और केन्द्र सरकार की एजेंसियां भी नशे के खिलाफ कार्रवाई करती हैं। इसके बाद भी इतने मामले पकड़ाना बड़े खतरे का संकेत है कि यह कारोबार सरकार के काबू से परे का है, और कल्पना से अधिक बड़ा है। दुनिया के बहुत से देश नशे के कारोबार पर जिंदा हैं, अफगानिस्तान जैसे देश की तालिबान सरकार वहां अफीम की खेती को बढ़ाकर किसी तरह घरेलू काम चला रही है, क्योंकि उसके पास कमाई का और कोई जरिया नहीं रह गया है। जब किसी देश-प्रदेश के लोगों का धंधा ही नशे का धंधा हो जाए, तो फिर वह एक बड़ा संगठित अपराध बन जाता है। हर राज्य अपने कुछ सबसे काबिल अफसरों को इस मोर्चे पर तैनात करना चाहिए, क्योंकि इसकी वजह से प्रदेश का भविष्य भी बचता है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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