विचार / लेख

कुंवारे पुरुष तो जरूर ये फिल्म देखें
08-Feb-2024 4:45 PM
कुंवारे पुरुष तो जरूर ये फिल्म देखें

 जय सुशील

किसी कारण से पिछले दिनों द ग्रेट इंडियन किचन फिर से देख रहा था। दोबारा देखते हुए भी उतना ही गुस्सा आया जितना पहली बार आया था। हालांकि दूसरी बार में देखने पर फिल्म का दूसरा हिस्सा राजनीतिक लगा सबरीमाला के संदर्भ में लेकिन अच्छा ही था। इसी क्रम में तमिल लेखिका अंबई की दो कहानियां भी पढ़ीं। छोटी छोटी कहानियां-गिफ्ट्स और ए किचन इन द कार्नर ऑफ द हाउस।

इन तीनों कहानियों में रसोई केंद्र में है और रसोई है तो उसमें औरतें हैं उनकी कहानियां हैं। गिफ्ट्स में जहां एक महिला दिल्ली से जाती है और दो परिवारों से मिलती है किसी काम से और उनके घर की औरतों के साथ दिल्ली से आई महिला का इंटरैक्शन है वहीं किचन इन द कार्नर ऑफ द हाउस में राजस्थान के एक संयुक्त परिवार की छोटी सी कहानी है जहां घर बेहतरीन है लेकिन किचन किसी कोने में पड़ा है लेकिन वहां से खाना ऐसे बन बन कर आता है मानो कोई जिन्न खाना बना रहा हो। ये जिन्न कोई और नहीं घर की महिलाएं हैं जो यह मान कर चल रही हैं कि किचन की चाबी ही उनकी ताकत का चिन्ह है।

खास कर पुरूषों को या कहें कि दक्षिण एशियाई पुरुषों को मनुष्य बनाने का एक तरीका यह भी है कि उन्हें साल में ग्रेट इंडियन किचन जैसी फिल्म दिखाई जाए या ऐसी कहानियां पढऩे को दी जाएं।

मुझे बहुत अच्छे से याद है कि इसी फेसबुक पर एक बुजुर्ग पत्रकार ने सिल लोढ़े पर पिसी चटनी के स्वाद को लेकर कुछ कहा था जो जाहिर है कि चटनी औरतों को ही पीसना होता था। आज फिल्म देखते हुए यह ध्यान आया कि फिल्म का ससुर अपनी बहू से कहता है कि दोसे की चटनी क्या मिक्सी में बनाई है और बहू कहती हैं हां तो बुड्ढा चिढ़ जाता है।

इसी तरह यह बुढा ससुर चावल को कुकर में पकाने पर आपत्ति करता है। यह सब पढ़े लिखे लोग हैं। यह वो ससुर है जो अपने हाथ से टूथब्रश और पेस्ट तक नहीं लेता है। पत्नी या बहू उसे यह सब लाकर देते हैं जबकि वो सक्षम है। एक और दृश्य है जहां ससुर खड़ा है और सासु मां चप्पल लाकर देती है तो वो पहन कर बाहर जाते हैं।

यह दृश्य मेरी नजऱों के सामने आते ही मुझे अपने एक रिश्तेदार की याद आई जो बहुत पढ़े लिखे हैं इंटलेक्चुअल टाइप। उनको मैंने कई बार देखा है कि दफ्तर जाते हुए वो दरवाज़े के पास खड़े होते हैं और यूं मुंह बनाते हैं कि उन्हें पता नहीं कौन सा जूता पहनना है फिर बीवी निकाल कर देती है जूता। चूंकि उस रिश्तेदार से बातचीत होती नहीं वर्ना मैं उनको ये फिल्म भेजता कि इसे परिवार के साथ देखें।

मेरे एक और पुरुष रिश्तेदार थे जो हर रविवार को घोषणा करते कि वो खाना बनाएंगे और उसके बाद बहुत ही खराब खाना बनाकर सबको जबर्दस्ती खिलाते।

एक बार उन्होंने बिरयानी बनाई जिसमें चावल कच्चा ही रह गया था। चूंकि वो घर के मालिक थे तो सबने कहा बहुत बढिय़ा है। मैं दूर का रिश्तेदार था और मुझे बीमारी थी सच बोलने की तो मैंने बता दिया कि चावल कच्चे हैं और ये खाऊंगा नहीं क्योंकि इससे मेरे पेट में दर्द हो जाएगा। सारे घर का मुंह देखने लायक था।

बाद बाकी खाना पुरुष बनाता है तो किचन की हालत देखने वाली होती है। वो खाना बनाकर सफाई का जिम्मा औरत पर छोड़ देता है यह भी मैंने देखा है।

कहने का मतलब कुछ नहीं है। बस ये कि अगर आपके आसपास ऐसे लोग हैं तो चुपके से उन्हें ये फिल्म भेज दीजिए। यूट्यूब पर फ्री है और कहिए कि परिवार के साथ बैठकर ये फिल्म देखें आदि आदि आदि।

मैंने अपने कुछ दोस्तों की बीवियों को ये फिल्म भेजी थी और कहा कि पति के साथ बैठ कर देखना। उसके बाद से उन दोस्तों में से आधे लोगों ने हाल चाल पूछना छोड़ दिया। आदि आदि आदि।

कुंवारे पुरुष तो ज़रूर ये फिल्म देखें ताकि उन्हें पता चले कि शादी सिर्फ इसलिए नहीं की जाती कि एक नौकर मिल जाएगा घर में।

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