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पाकिस्तान में प्रधानमंत्री अपराधी बनता है अपराधी ही प्रधानमंत्री बन जाता है?
09-Feb-2024 8:59 PM
पाकिस्तान में प्रधानमंत्री अपराधी बनता है अपराधी ही प्रधानमंत्री बन जाता है?

-मोहम्मद हनीफ

करीब छह साल पहले मैंने पहली बार पंजाबी में ब्लॉग लिखा था। उस समय भी पाकिस्तान में चुनाव होने वाले थे। संपादकों ने मुझसे कहा कि चुनाव पर टिप्पणी कर दीजिए। मैंने कहा कि ये पहले चुनाव हैं, जिनमें किसी लंबे-चौड़े विश्लेषण की ज़रूरत नहीं है।

इमरान खान के लिए ज़मीन तैयार है और इमरान खान प्रधानमंत्री बन गए। उस समय नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम नवाज शरीफ दोनों जेल में थे। चुनाव लडऩे से अयोग्य भी ठहराए जा चुके थे।

वर्दीधारियों ने इमरान खान को प्रधानमंत्री बनाकर उनकी और अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए कुछ ऐसा माहौल तैयार किया था, जिसके लिए मिर्जा-साहिबा (मशहूर पंजाबी प्रेम कथा) की जट्टी ने दुआ की थी।

कुत्ती मरे फकीर दी जेहड़ी च्याँउ-च्याँउ नित करे,
हट्टी सड़े कराड़ दी जित्थे दीवा नित बले,
ते गलियाँ होण सुनियाँ विच्च मिजऱ्ा यार फिरे’
(कुत्ती मरे फक़ीर की, जो च्याँउ च्याँउ नित करे
दुकान जले कराड़ की जहां दीया नित जले
गलियां हो जाएं खाली और वहां मिजऱ्ा यार फिरे)
इमरान ख़ान पर आरोप क्या-क्या हैं?

अब फिर चुनाव हैं। हमारा मिर्जा यार इमरान ख़ान था, वह जेल में है।

इमरान ख़ान ना सिफऱ् जेल में हैं बल्कि उनके लिए कोर्ट भी अब जेल में ही लगती है। पहले से ही तीन साल की सजा काट रहे थे, फिर पिछले हफ्ते अदालत ने उन्हें बताया कि कोई साइफर नाम का सरकारी पत्र उन्होंने खो दिया है, 10 साल कि जेल और अगले दिन उस पर एक घड़ी चुराने और उसे बेचने का आरोप लगाया गया, और 14 साल की जेल और।

फिर कहा कि आपकी शादी भी ठीक नहीं हुई है, चलिए 7 साल और। ख़ान साहब के खिलाफ अभी भी 172 मुकदमे हैं।

जिस तेजी से न्याय हो रहा है, उससे लगता है कि चुनाव से पहले खान साहब को डेढ़ हजार साल की सजा-ए-कैद हो जाएगी।

लेकिन हमारे बुद्धिमान लोगों को सज़ा देने के अलावा और भी बहुत कुछ काम है। चुनाव सिर पर हैं, इसकी तैयारियां भी पूरी हो चुकी हैं। ख़ान का चुनाव चिन्ह ‘बल्ला’ छीन लिया गया है। पार्टी कि टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए हैं, लोगों को उठाया गया है, वेबसाइटें खोली गईं, बंद की गईं और फिर से खोली गई हैं।

माहौल ऐसा बना दिया गया है कि जिन लोगों ने ख़ान के आदमियों को वोट देना था, उनको या तो टिकट पर आदमी ही न मिले या वे आपने गम में घर बैठ कर गाने सुनते रहें, क्योंकि हमारे ख़ान ने प्रधानमंत्री ही नहीं बनना है तो फिर हम क्यों वोट दें। जिन लोगों ने यह पूरा माहौल बनाया है, उन्हें अब भी संदेह है कि लोग घर से बाहर निकल ही न आएं। उन्हें अपने प्रत्याशी के निशान की पर्ची मिल ही न जाए।

दुश्मन मरे को खुशी न करिए...
जिन लोगों को ख़ान ने जेल में डाला था, वे चुनाव लडऩे के लिए तैयार हैं। ख़ान के बारे में बाहर-बाहर से तो कहते हैं कि ‘दुश्मन मरे तां खुशी न करिए, सज्जना भी मर जाना’ (विख्यात पंजाबी सूफी शायर मियाँ मोहम्मद बख़्श के गीत का एक हिस्सा जिसका अर्थ है- दुश्मन मरे तो ख़ुशी न मनाएं, सज्जन भी मर जाएंगे) लेकिन साथ ही ठंडी-ठंडी नसीहतें भी देते हैं।

पाकिस्तान के पुराने राष्ट्रपति आसिफ अली जऱदारी साहब ने सबसे ज्यादा समय जेल में बिताया है। वे कहते हैं कि जेल राजनेताओं के लिए एक विश्वविद्यालय है। इमरान ख़ान को चाहिए कि वह जेल से कुछ सीख कर आएं।

हमारे चुनाव विश्लेषकों का भी कहना है कि करोड़ों युवा ऐसे हैं जिन्हें इस चुनाव में पहली बार वोट देना है। वे इस पुराने चक्कर में नहीं पडऩा चाहते। वे अपने स्मार्ट फोन, अन्य ऐप या व्हाट्सएप से रास्ता ढूंढ लेंगे।

वैसे ये युवा वोटर भी सोचते होंगे कि पाकिस्तान में या तो कोई आदतन अपराधी प्रधानमंत्री बन जाता है या फिर, पता नहीं कोई प्रधानमंत्री आदतन अपराधी बन जाता है।
एक बात जो उन्हें अभी तक समझ नहीं आई वो ये कि आप सोशल मीडिया पर चाहे कितने भी ट्रेंड करें या मीम्स बना लें, लेकिन यहां पाकिस्तान में एक पुराना ट्रेंड चल रहा है, जिसमें कहा जाता है, ‘डंडा पीर है विगडिय़ाँ तिगडिय़ाँ दा।’

यानी बिगड़े हुए लोगों का एक ही इलाज है - डंडा। चुनाव से पहले जो डंडा चलना था वो चल गया। बाकी चुनाव के दिन और उसके बाद भी जारी रहेगा।

किस प्रधानमंत्री के साथ होगा गुजारा
पिछले चुनाव से पहले एक बुद्धिमान व्यक्ति ने पूछा था, ‘मुझे समझ नहीं आता कि चुनाव में अपने आदमी को जिताने में इतनी परेशानी क्यों हो रही है? नवाज़ शरीफ को ले आयो, इमरान ख़ान को ले आयो, आप उनके साथ नहीं चल सकते। आपको वज़ीर-ए-आजम बना दें या हमें भी बना दें, फिर भी गुजारा नहीं होगा।’

इमरान ख़ान को प्यार करने वालों को एक बात याद रखनी चाहिए कि अगर अब उनके वो दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे। 
(bbc.com/hindi)

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