विचार / लेख
विजेन्द्र अजनबी
वर्ष 2024 का बजट कल छत्तीसगढ़ विधानसभा मे वित्त मंत्री श्री ओपी चौधरी द्वारा पेश किया गया, जिसकी भाषा और संकेतक केंद्र के बजट जैसे थे। बजट में इस वर्ष के लिए छत्तीसगढ़ की वित्तीय प्रबंध का जो खाका खींचा गया, उसे 10 स्तंभों पर आधारित बताया जा रहा है। उसमे से एक स्तम्भ प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंध का है, जिसके अधिकतम दोहन को उसका आधार बताया जा रहा है।
वित्त मंत्री के कथनानुसार, प्राकृतिक संसाधनों का सुनियोजित दोहन करते हुए, उसमे से प्राप्त लाभों का छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित किया जायेगा। एक और स्तम्भ की बजट में चर्चा की गई, जिसे ‘ बस्तर और सरगुजा का फोकस’ कहा गया है। उसमे बस्तर मे वनोपज आधारित उद्योग लगाने, और सरगुजा में उद्यानिकी और मछली पालन पर जोर देने के लिए बजटीय प्रावधान की बात कही गई है। पर, पूरे बजट दस्तावेज में कहीं भी वन-निर्भर समुदायों के अधिकार या वनाधिकार कानून का जिक्र नहीं है, और न ही वनोपज पर समुदाय की मालिकी पर सहमति। जंगल से राजस्व बटोरने की मंशा से बजट में ईको टूरिजम, एग्रो फोरेस्ट्री और वनोपज प्रसंस्करण उद्योग लगाने के लिए आबंटन की बात हो रही है।
जंगल निर्भर समुदायों के लिए गरिमापूर्ण जीवन यापन के लिए लघु वनोपजो से आजीविका प्राप्त करना सबसे बड़ी जरुरत है। वनोपजों में भी सबसे ज्यादा आय देने वाला उपाय, तेंदू पत्ता तोड़ाई है, जो पूरी तरह से वनविभाग के नियंत्रण में संचालित होता है। इस बजट में पत्ता तोड़ाई की दर 4500 रुपये मानक बोरा से बढ़ाकर 5500 रु करना स्वागत योग्य है। पर करीब 7 लाख संग्राहकों के लिए, इसमें से 35 करोड़ रु की चप्पलें खरीद का प्रावधान हो, तो यह गरिमापूर्ण आजीविका के खिलाफ दिखता है। जरूरी तो यह है, कि उन ग्रामसभाओं को इतना सक्षम बनाया जाए कि वे महाराष्ट्र की तर्ज पर अपने वनोपज से अर्जित आय को अपनी भलाई के लिए खर्च कर सके।
वाणिज्यिक वृक्षारोपण का बढ़ावा देने के लिए पिछली सरकार ने मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना शुरू की गई थी, और जिसके लिए 100 करोड़ का प्रावधान रखा गया था। अब इस बजट मे, उसे किसान वृक्ष मित्र योजना कहा जा रहा है, जिसके लिए 60 करोड़ का प्रावधान है। छत्तीसगढ़ मे निजी भूमि या गैर-वनभूमि पर प्लांटेशन की जरूरत को इसलिए महसूस किया जा रहा है, ताकि वनों का उद्योग व खनन के लिए विचलन सहूलियत से किया जा सके और उसके बदले के वृक्षारोपण की भरपाई की जा सके। यह सर्वमान्य तथ्य है कि प्राकृतिक जंगलों का स्थान ऐग्रो फॉरेस्ट्री के तहत लगाए गए व्यावसायिक उपयोग के पेड़ नहीं ले सकते। इसलिए, बेहतर है कि जंगल प्रबंधन के लिए और राशि का प्रावधान किया जाता जिसे ग्रामसभा के जरिए वानिकी प्रबंधन मे उपयोग किया जाता। पिछले बजट में वनाधिकार कानून के बेहतर क्रियान्वयन के लिए वन अधिकार समितियों के सशक्तिकरण के लिए 5 करोड़ का प्रावधान रखा गया था। अच्छा होता, यदि उसे जारी रखते हुए, बल्कि, बढ़ाते हुए, वनाधिकार कानून सम्मत सामुदायिक वन प्रबंधन समितियों को सक्षम बनाने का प्रावधान होता।
इस बजट में, हालांकि 240 करोड़, जंगलों के प्राकृतिक पुनरुत्पादन (नेचुरल रिजेनरेशन) के लिए रखे गए हैं, जिसे वन विभाग की कार्ययोजना के तहत किया जाता है। जहां, पुनरुत्पादन के लिए कटाई-छंटाई के नाम पर धड़ल्ले से पेड़ गिराए जाते हैं, और जिसका विरोध, अधिकार प्राप्त ग्रामसभाएं करती आ रही है। जरूरी है, कि, ऐसे मद के बजट के कार्य ग्रामसभा की सहमति या उनके जरिए कराए जाए।
इस बजट में कैम्पा के तहत 1000 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है, जो मूलत: क्षतिपूर्ति वनीकरण के लिए होता है, पर, प्रदेश मे कैंपा मद मे आधिक्य निधि के चलते ज्यादातर खर्चे अभी भी गैर टिकाऊ वृक्षारोपण, फेन्सिंग, जंगल सफारी जैसे चमकीले मदों खर्च हो जाता है। अच्छा होता कि, कैम्पा की राशि से जंगल संरक्षण व सुरक्षा कर रहे समुदायों के कामों को जोड़ा जाता।
जंगल के अलावा, उद्यानिकी एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमे सीमांत समुदाय और छोटे किसानों के लिए बहुत काम किए जाने की जरूरत है। उद्यानिकी का लाभ अब तक बड़े किसान और खेती मे पूंजी लगाने वाले ही लेते रहे है। पिछले साल बजट में कृषकों को उद्यानिकी फसलों की गुणवत्तापूर्ण पौध दिलाने के लिए हाइटेक नर्सरी और छुईखदान में पान अनुसंधान केंद्र की स्थापना का प्रावधान किया गया था। अब इस बजट मे 14 विकसखंडों में नई नर्सरी के प्रावधान है, साथ ही, सूरजपुर और रायगढ़ में दो नए उद्यानिकी व वानिकी महाविद्यालय शुरू करने की घोषणा एक अच्छा कदम हो सकता है। लेकिन पिछली सरकार में, राजधानी से लगे सांकरा में उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय की स्थापना होने के बाद उसे दृढ़ता से एक स्तरीय संस्थान बनाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में जंगलों के उचित प्रबंधन, विशेषकर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को देखते हुए एक जन-आधारित वन संरक्षण-संवर्धन और प्रबंधन के लिए एक विशेष शिक्षा केंद्र का होना बहुत जरूरी है। ये देखने वाली बात होगी कि क्या इस नज़रिए से वानिकी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों को और उसके शिक्षण व्यवस्था को बदला जाता है।
सहकारिता के क्षेत्र में 100 कृषि सहकारी समितियों के लिए 26 करोड़ रु रखे गए है, जिसमें गोदाम का निर्माण होगा। हालांकि, मंडी व्यवस्था को कमजोर करने के बाद यह गोदाम कितने काम के होंगे, ये सोचने की बात है। ज़रूरी तो ये भी है कि छोटे आकार के गोदाम, उन ग्राम पंचायतों में भी बनाए जाएं जहाँ अच्छी मात्रा में वन उपज संकलन होता है। ऐसे गोदामों का प्रबंधन गांव की वन प्रबंधन समितियों को सौंपा जाना चाहिए।
इस बार मनरेगा में रु 2788 करोड़ का प्रावधान थोड़ी राहत देने वाली बात है, लेकिन जितने श्रम आधारित काम की गुंजाइश मनरेगा में है, 12,000 ग्राम पंचायतों के लिए यह काफी कम लगता है।
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को देखते हुए वन संरक्षण एवं संवर्धन की गतिविधियों को भी मनरेगा के जरिये कवर किए जाने की जरूरत है, जिसमें कम से कम 150 दिन मानव श्रम की जरूरत पड़ेगी।
इस लिहाज से ये प्रावधान नाकाफी लगता है। बजट में ग्राम पंचायत क्षेत्रों में नए शासकीय भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की स्थापना के लिए 50 करोड़ रु रखे गए है। जल संरक्षण और भूमिगत जलस्तर बचाने को बजटीय प्राथमिकता मे लाने यह जरूरी था। आखिर, बजट सरकारी एक्शन की नियत का दस्तावेज ही है। पिछले बजट में, छत्तीसगढ़ में राज्य आर्द्रभूमि प्राधिकरण की स्थापना की बात आई थी, आद्रभूमि संरक्षण, भूमिगत जल संरक्षण जितना महत्वपूर्ण है। जलदोहन मे सौर आधारित पंपों के नियंत्रण की बहुत जरूरत है। इस बार उसके लिए आबंटन 600 से बढ़ाकर 670 करोड़ कर दिया गया है, और पंपों के ऊर्जिकरण के लिए 200 करोड़ रुपए और रखे गए हैं।
महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए ग्राम पंचायतों में अलग से महिला सदन बनाने का प्रावधान इस बजट में किया गया है। महिलाओं के मेल जोल, बैठकों के लिए अलग सुरक्षित स्थल बनाना, एक अच्छा कदम हो सकता है। परन्तु भवन निर्माण के लिए महज 50 करोड़ रुपये 12 हजार ग्राम पंचायतों के लिए अपर्याप्त है।
छतीसगढ़ वनाधिकार मंच, रायपुर