विचार / लेख

पुस्तक बाजार की चमक-धमक से दूर...
13-Feb-2024 4:06 PM
पुस्तक बाजार की चमक-धमक से दूर...

अपूर्व गर्ग

पुस्तक मेले की चमक-धमक के बीच मुझे याद आते हैं वे लोग जो रद्दी का बड़ा स्टॉक आते ही मेरे पापा को सूचित करते और उनके घरों या ठिकाने से पापा को मिलतीं दुर्लभ पुस्तकें जो देश की किसी दुकान या बाज़ार में उपलब्ध न होतीं।

पुस्तक मेले-दुकानों से ही नहीं इन कबाड़ी के काम करने वाले सज्जनों के सहयोग से भी हमारी लाइब्रेरी समृद्ध हुई।

हिंदी-अंग्रेजी साहित्य , इतिहास से लेकर धर्मशास्त्र, नाटक , कविताएं-शायरी ,होम्योपैथी तक की दुर्लभ पुस्तकें इनसे मिली।

ऐसी पुस्तकें किसी एक दिन रद्दी का कारोबार करने वाले या पुरानी पुस्तकों को दरियागंजी तरीके से बेचने वाले के पास जाने से नहीं मिलतीं।

अनुभव ये रहा नियमित उनसे मिलते रहिये, उनके ग्राहक ही नहीं दोस्त बनिये फिर देखिये वो आपकी पसंद का कैसे ख़्याल रखते हैं।

दरअसल, बहुत से पुस्तक प्रेमियों के गुजर जाने के बाद उनके परिवार के लोग रद्दी के हवाले करते हैं । बहुत से लोग खरीदते हैं पढ़ते हैं और कुछ समय बाद बेचते हैं ।

बंद होते पुस्तकालयों या जगह की कमी की वजह से पुस्तकालयों और घरों की पुरानी पुस्तकें मिलेंगी ।

बहुत पहले एक सज्जन ने एक बार अपने दादाजी की लाइब्रेरी को तौल के हिसाब से तो नहीं पर एक चौथाई दामों में इन्ही कबाड़ी के माध्यम से ख़बर भिजवा कर बेचीं ।ख़ास बात ये कि इनमें ढेर सारी किताबें आज़ादी से पहले प्रकाशित हुई थीं ।

अगर ‘कबाड़’ का काम करने वाले उन सज्जन से निकटता न होती तो न जाने ये असाधारण फूल आज किस बगिया में होते!

‘क्रड्डह्म्द्गह्यह्ल’और असाधारण पुस्तकें चाहिए तो इस बाजार में भी कंधे पर थैला लटकाकर मूंगफली खाते अच्छा समय निकाल कर जाइये।

हो सकता है आपको भी ढेर दिलचस्प रेयर पुस्तकें मिलें!

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news