विचार / लेख
जगदीश्वर चतुर्वेदी
प्रेम महाकाव्य है।सभ्यता है। आम तौर पर निजी प्रेम बताने में लोग डरते हैं।मैं नहीं डरता।प्रेम करता हूँ तो बताता भी हूँ।जिससे करता हूँ उससे कहता भी हूँ।प्रेम का मतलब शरीर भोग नहीं है।आमतौर पर लोग प्रेम माने सेक्स के ही लेते हैं, ऐसे लोगों के लिए सेक्स ख़त्म तो प्रेम ख़त्म।सेक्स को प्रेम की पहली और आखऱिी सीढ़ी मानने वाले लोग प्रेम को नहीं जानते,बल्कि वे प्रेम के बारे में डिस-इन्फॉर्मेशन फैलाते हैं। दुख पाते हैं।
प्रेम तात्कालिक नहीं बल्कि दीर्घकालिक होता है।उसे आप कभी भूलते नहीं हैं। प्रेम कभी एक से नहीं होता, बल्कि मनुष्य अपने जीवन में अनेक लोगों से प्रेम करता है।प्रेम का अर्थ सिफऱ् प्रेमिका बनाना नहीं है।प्रेमिका बनाते ही प्रेम ख़त्म हो जाता है।प्रेम के लिए व्यक्ति के रुप में देखना सीखें,व्यक्ति की तरह आचरण करें।व्यक्ति की तरह आचरण करना अभी अधिकांश लोग सीख ही नहीं पाए हैं।प्रेमिका-प्रेमी के रुप में न देखकर व्यक्ति के रुप में एक-दूसरे को देखें।
प्रेमिका -प्रेमी तो बंधन है। जबकि प्रेम को बंधन नहीं चाहिए,उसे सिफऱ् प्रेम चाहिए।हमारे समाज में प्रेम पर खुलकर बातें करने से शिक्षित लोग संकोच करते हैं।अपने संकोच पर विभिन्न कि़स्म के पर्दे डाले रखते हैं।प्रेम को पर्दों की नहीं प्रेम की जरुरत है।अभिव्यक्ति की जरुरत है।जो अभिव्यक्त न किया जा सके, वह प्रेम नहीं है।निस्संकोच जीना, अभिव्यक्ति के लिए सभ्यता के बेहतर आयाम विकसित करना प्रेम है। प्रेम माने कलह या संपत्ति प्रेम नहीं है।
प्रेम में जब दाखिल होते हैं तो जीवन में सभ्यता का एक नया पाठ्यक्रम शुरु होता है।प्रेम माने सभ्यता का विकास है।प्रेम शुरु जरुर शारीरिक आकर्षण से होता है लेकिन वह सिफऱ् शरीर तक बंधा नहीं है।प्रेम का प्रवाह सभ्यता के विकास को जन्म देता है।प्रेम में कुछ लोग जीवनभर के लिए बंध जाते हैं.बंध जाना, शादी करना एक काम है।
लेकिन प्रेम का यह दायरा बाँध देता है।प्रेम को दायरे पसंद नहीं है।प्रेम कोई काम नहीं है कि कर लिया जाए, वरना उम्र निकल जाएगी।प्रेम की कोई उम्र नहीं होती।हर व्यक्ति एक से अधिक व्यक्तियों से प्रेम करता है।व्यक्ति कभी एक से प्रेम करके जि़ंदा नहीं रह सकता।
प्रेम अनुभूति है।वह सामाजिक, पारिवारिक या शारीरिक बंधन नहीं है।प्रेम को अनुभूति का अंग बनाने से सभ्यता के नए जीवन मूल्य जीवन में दाखिल होते हैं।प्रेम पुराने जीवन मूल्यों को त्यागने के लिए मजबूर करता है।पुराने जीवन मूल्यों से लड़े बग़ैर किया गया प्रेम बड़ा दुखदाई होता है।आमतौर पर प्रेम करने वाले पुराने जीवन मूल्यों से बंधे रहते हैं और प्रेम करते हैं।
प्रेम को जीने का अर्थ है बंधनों से मुक्ति,पुराने मूल्यों ,आदतों और संस्कारों से मुक्ति।प्रेम में मुक्ति या स्वतंत्रता सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।प्रेम बंधन मुक्त करता है,स्वतंत्रता का मूल्य पैदा करता है।प्रेम में शक-संदेह के लिए कोई जगह नहीं है।जो लोग प्रेम करते हुए एक-दूसरे पर शक-संदेह करते हैं,वे असल में प्रेम के ख़िलाफ़ काम कर रहे होते हैं।
प्रेम सभ्यता है,अनुभूति है और स्वतंत्रता है।उसमें बंधन ,शक-संदेह ,रिश्तेदारी आदि नहीं आते। रिश्तेदारियाँ हमें बंधनों में बांधती हैं।प्रेम हमें रिश्तेदारियों के बाहर एक नए सामाजिक संसार में ले जाता है।जिसमें देने का भाव प्रमुख है, पाने का भाव प्रमुख नहीं है।जो दे नहीं सकता, वह पा नहीं सकता।यही वह बुनियादी परिप्रेक्ष्य है जिसे लेकर मैं आज तक प्रेम करता रहा हूँ।
प्रेम कभी ठंडा नहीं होता।प्रेम कभी बूढ़ा नहीं होता।प्रेम में अपार ऊर्जा है।प्रेम का अर्थ बुद्धिहरण ,विवेकहीनता या अंधानुकरण नहीं है।प्रेम की सत्ता का आधार है व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वतंत्र अस्मिता।प्रेम तब ही सार्थक होता है जब वह सभ्य, अनुभूति प्रवण और मन को बंधन मुक्त करे।प्रेम एक घटना मात्र नहीं है बल्कि वह तो एकदम नया सिस्टम है,नई व्यवस्था है जिसे व्यक्ति अपने अंदर विकसित करता है।
प्रेम की व्यवस्था का विकास करने के लिए पुराने सिस्टम के बाहर निकलना,उसके लिए संघर्ष करना, नए बंधन रहित सभ्य जीवन मूल्यों को सचेत रुप से अर्जित करना बुनियादी शर्त है।प्रेम को पुराने सामाजिक ढाँचे में फिट करके, पुराने सामाजिक मूल्यों में थेगड़ी लगाकर नहीं जी सकते। प्रेम के विकास के लिए पुराने का अंत करना बेहद जरुरी है।पुराने संबंध बंधन में बांधते हैं।प्रेम तो बंधन मानता ही नहीं है।
आमतौर पर प्रेम करते समय व्यक्ति व्यापारी की तरह मुनाफे-नुकसान का हिसाब लगाता है, क्या लाभ होगा,क्या नुक़सान होगा।क्या मिलेगा, क्या जाएगा, इन सब पर ध्यान देता है, सोचने का यह तरीक़ा प्रेम विरोधी है।प्रेम करते समय इस तरह की व्यापारिक बुद्धि से बचना चाहिए।प्रेम करना संपत्ति -शोहरत पाना नहीं है।प्रेम तो इन सबके दायरे के बाहर ले जाता है। जो लोग संपत्ति-शोहरत-ओहदा देखकर प्रेम करते है वे प्रेम का सौदा करते हैं।प्रेम सौदा नहीं है।ओहदा -शोहरत और सौदा ये तीनों चीजें प्रेम का अंत कर देती हैं।प्रेम करने लिए पुराने सिस्टम से स्वयं को निकालना बेहद जरुरी है।पुराने सिस्टम में रहकर ,उसके जीवन मूल्यों को जीकर प्रेम नहीं मिलता,सिर्फ बेजान शरीर मिलता है।