विचार / लेख
राजकुमार मेहरा
अभी गुजरे ्यद्बह्यह्य ष्ठड्ड4 के उपलक्ष्य में, मैं आपका परिचय करीब 440 वर्ष पुरानी एक कविता से कराने जा रहा हूँ जिसकी रचना केशव ने की थी। आचार्य केशवदास का जन्म 1555 ईस्वी में ओरछा में हुआ था। वे रीतिकाल की कवि-त्रयी के एक प्रमुख स्तंभ हैं। इन्होंने ब्रज भाषा में रचना की।
यद्यपि ये संस्कृत के प्रकाण्ड पण्डित थे तथापि उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ हिन्दी है जिसमें बुन्देली, अवधी और अरबी-फारसी शब्दों का समावेश है।
इन्होंने अपनी रचना के एक छंद में नायक-नायिका के बीच प्रेम और चुंबन का बड़े ही दिलचस्प अंदाज में चित्रण किया है ।
नायिका साफ-साफ (और चतुराई से भी) अपने प्रेमी से कह रही है-
मैं तुम्हारी सभी गलतियों को बर्दाश्त कर लूंगी, पर तुमने पान खिलाकर, मेरे अमृत जैसे होठों का रसपान किया है, इसके लिए माफ नहीं करूंगी । अगर तुम चाहते हो कि मेरा तुम्हारा संबंध ठीक बना रहे, तो इसके लिए यही शर्त है कि तुम भी अपना मुख मुझे चूमने दो, नहीं तो मैं जाकर तुम्हारी शिकायत कर दूंगी ।
सवैये का सौन्दर्य देखिये:
तोरितनी टकटोरि कपोलनि, जारिरहे कर त्यों न रहौंगी।
पान खवाइ सुधाधर प्याइकै, पांइ गयो तस हौ न गहौंगी।
केसव चूक सबै सहिहौं, मुख चूमि चलै यह पै न सहौंगी।
कै मुख चुमन दै फिरि मोहि कि आपनि धाय से जाय कहौंगी।
चूंकि रस्मे दुनिया भी है, मौका भी है, दस्तूर भी है... तो मैं भी इस शुभ अवसर पर अपनी सभी अतीत, वर्तमान और भविष्य की प्रेमिकाओं को सादर अनंत स्नेहसिक्त आलिंगन, चुम्बन व शुभाकांक्षा प्रेषित करता हूं।