विशेष रिपोर्ट

हरी चादर में लिपटी यह महानदी है, गाद व मुरुम-मिट्टी ने रोकी पानी की धार
17-Feb-2024 3:39 PM
हरी चादर में लिपटी यह महानदी है, गाद व मुरुम-मिट्टी ने रोकी पानी की धार

तस्वीर / ‘छत्तीसगढ़’ / लीलाराम साहू

  आसपास के गांवों का जलस्तर गिरा, जगह-जगह बने एनीकट भी रोक रहे प्रवाह  

लीलाराम साहू की विशेष रिपोर्ट

राजिम, 17 फरवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी सबसे बड़ी और लंबी महानदी जिससे पूरे प्रदेश के लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है, आज अपनी बदहाली का किस्सा स्वयं बता रही हैं। गाद (सिल्ट) और मिट्टी-मुरूम से नदी इतनी बुरी तरीके से पट गई है कि लोग वहां क्रिकेट आदि खेल सकते हैं। 

वर्तमान में नदी का पूरा पानी सड़ चुका है। ऊपरी हिस्से में इंटेच्ेल की पूरी तरह से गाद (सिल्ट) ही दिखाई देता है नदी की धार नहीं। निचले हिस्से पारागांव की ओर पूरे हिस्से में जलकुंभी उग आई है जिससे ऐसा प्रतीत होता है नदी में हरी चादर बिछा दी गई हो। नदी में गाद जमा होने के कारण नदी से लगे इलाकों में भी भूजल स्तर नीचे चला गया है और वहां पीने के पानी की समस्या होने लगी है।

विशेषज्ञों का मानना है कि गाद निकलने से वाटर रिचार्जिंग में तेजी आएगी और इससे पेयजल की समस्या भी दूर होगी। उनका मानना है कि नदी में मुरुम पाटकर रोड बनना भी घातक है क्योंकि मुरुम पानी के बहाव को रोक देती है जबकि रेत पानी के बहाव को बनाए रखती है। छत्तीसगढ़ के कई जिलों से गुजरने वाली महानदी का स्रोत एक बार फिर इन दिनों सूख गया है। नदी के पुनरुद्धार हेतु पिछले कई दशकों से कोई काम नहीं हुआ है।

एनीकट के कारण हो रहा प्रवाह अवरुद्ध

नदी में गर्मी के दिनों में भी पानी रहे इसके लिए सरकार ने कई स्थानों पर स्टॉप डैम का भी निर्माण कराया है, वहां पानी भी है, लेकिन नदी में गाद (सिल्ट) जमा होने के कारण आसपास के क्षेत्रों में वाटर रिचार्जिंग नहीं हो पा रही है। विशेषज्ञ व विभागीय सूत्र बताते हैं कि नदी में गाद (सिल्ट) जमने का मुख्य कारण दोनों ओर एनीकट का बनना है क्योंकि एनीकट गाद को बहाकर नहीं ले जा सकते। 


एक और कारण जो सामने आया वो ये कि महानदी में पिछले 2018 के पहले कुंभ मेले के आयोजन हेतु नदी में मुरुम पाटकर रोड बनना भी नदी की सेहत के लिए खतरा साबित हो रही है। रेत नदी के पानी को नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे ले जाने का कार्य करती है, जो मुरुम के कारण नहीं हो पा रहा है। मुरुम के कारण पानी का प्रवाह रुक गया है। एनीकेट के पास भी जलकुंभी ने अपना डेरा जमा लिया है।

नदी को सब्जी बाड़ी भी नुकसान पहुंचा रही हैं
विशेषज्ञ बताते हैं कि पहले महानदी में गर्मी के दिनों में तरबूज और खरबूज की खेती होती थी जिससे कोई नुकसान नहीं होता था परंतु अब राजिम से लेकर टीला ग्राम तक टमाटर, खीरा, करेला की खेती करने से इन फसलों की जड़ें रेत को मिट्टी में परिवर्तित कर रही हैं। इससे नदी की गहराई कम हो रही है और पानी का बहाव अवरुद्ध हो रहा है। ऐसी परिस्थिति में नदी का जीवन समाप्त हो जाएगा।

संगम क्षेत्र को संरक्षित घोषित करें - गौतम
नदी घाटी आंदोलन के गौतम बंदोपाध्याय से ‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता ने पूछा, तो उनका कहना है कि संगम क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाना चाहिए। केंद्र एवं राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से ढांचागत योजना बनाकर नदी का जीवन बचाना होगा। नदी किनारे बसे गांवों व सभी समाज के लोगों से, पंचायतों से चर्चा कर उनकी भूमिका भी तय की जानी चाहिए। एक प्राधिकरण बनाकर महानदी की स्वच्छता, जल की उपलब्धता और नदी किनारे विकास की मॉनिटरिंग करने की आवश्यकता है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news