संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जानलेवा-आत्मघाती समाज के लिए परामर्शदाता जरूरी
20-Feb-2024 5:26 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  जानलेवा-आत्मघाती समाज के लिए परामर्शदाता जरूरी

छत्तीसगढ़ में इन दिनों लगातार इतनी बुरी रफ्तार से परिवार के लोगों की हत्या और आत्महत्या का मामला चल रहा है कि उससे दिल दहल रहा है। सरगुजा में अंबिकापुर के एक स्कूल की 8वीं कक्षा की छात्रा ने कल खुदकुशी कर ली, उसे शायद कोई लडक़ा लगातार परेशान कर रहा था। इसी स्कूल की 6वीं की एक छात्रा ने एक पखवाड़े पहले खुदकुशी कर ली थी, जिसे शिक्षिका से शिकायत थी। बीती शाम राजधानी रायपुर शहर में एक पति ने पत्नी का कत्ल करने के बाद फांसी लगा ली। कल ही छत्तीसगढ़ में ही एक महिला अपने बच्चे के साथ पटरी पर कूद गई, उसकी मौत हो गई, और बच्चे की जान बच गई है। कल ही उस बच्चे का जन्मदिन बताया जा रहा है। लेकिन ये खबरें एक प्रदेश की भी पूरी खबरें नहीं हैं, ऐसे दर्जनों मामले कल एक दिन में हुए हैं, और इससे अधिक मामले इसके एक दिन पहले हुए थे। चूंकि यह सिलसिला लगातार चल रहा है, इसलिए सरकार और समाज को इसकी फिक्र करनी चाहिए। यह बात साफ है कि पारिवारिक तनाव जानलेवा और आत्मघाती हो रहे हैं, और ये एक दिन में खड़े नहीं होते। लंबे समय से चलते हुए तनाव इतने हिंसक होते हैं। इसका मतलब है कि लोगों के भीतर तनाव, कुंठा, अवसाद, और हिंसा इन घटनाओं के मुकाबले सैकड़ों गुना अधिक लोगों में भरी हुई हैं। सरकार को चाहिए कि बड़े पैमाने पर मनोवैज्ञानिक परामर्श के पाठ्यक्रम शुरू करे, और स्कूल-कॉलेज से लेकर समाज तक इनकी सेवाएं उपलब्ध कराए। आज जो गिने-चुने लोग परामर्शदाता और मनोचिकित्सक हैं, उनकी फीस ही एक बार की हजारों रूपए है। जाहिर है कि बहुत गिने-चुने लोग ही इतना खर्च उठा सकते हैं। इसलिए सरकार को ही दखल देनी होगी, और बड़ी संख्या में परामर्शदाता तैयार करने होंगे जो कि सरकारी अस्पतालों की तरह लोगों को उपलब्ध रहें, और स्कूल-कॉलेज में भी दूसरे शिक्षकों की तरह उनकी तैनाती हो सके। जो समाज इतने तनाव में जी रहा है, जाहिर है कि उसकी उत्पादकता भी कम रहती है, और वह खुशहाल भी कभी नहीं रह सकता।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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