विचार / लेख
शैलेंद्र शुक्ला
वर्षों पूर्व समाज में वर्ण व्यवस्था थी, यह व्यवस्था व्यवसाय आधारित थी। कोई धोबी कहलाता, कोई नाई, कोई मछुआरा तो कोई माली। ऐसे अनेक संबोधन थे जो शनै: शनै: वर्ण से वर्ग में वर्गीकृत हो गये और ये कब जाति बन गये पता ही नहीं चला। इसकी भी उपजातियाँ होने लगीं। तेल घानी का काम करने वाले तेली साहू, साव व न जाने कितने प्रकार के उप जातियों में विभक्त हो गये।
राजनीतिक पार्टियों ने इन अलग-अलग वर्गों/जातियों से नेताओं का चयन कर अपनी पार्टी में शामिल करते हुए उस जाति विशेष का रहनुमा बनने का ढोंग रचा। समाज देखते ही देखते जाति व उपजातियों के आधार पर कई टुकड़ों में बंटता चला गया। राष्ट्रहित या भारतीयता जैसा कोई धर्म या समुदाय बचा ही नहीं।
दुनियाँ के विभिन्न हिस्सों में बसे भारतीय व विदेशी तथाकथित बुद्ध जीवियों ने ‘क्रिटिकल कास्ट थ्योरी’ गढ़ दी जैसा विदेशों में नस्लवाद चलता है। देश आज़ाद हुआ तो शोषित, वंचित व पिछड़ा वर्ग को विशेष लाभ देने की दृष्टि से आरक्षण प्रथा प्रारंभ कर दी गई। इस आरक्षण का लाभ जातिगत आधार पर मिलने लगा। जाति विशेष के लोग आरक्षण का लाभ लेकर बड़े-बड़े पदों पर आसीन होते गए, सम्पन्न होते चले गए किन्तु संविधान की परिभाषा के अनुसार शोषित, वंचित व पिछड़ों की श्रेणी में ही बने रहे। अब आरक्षण का लाभ उन परिवारों को अधिक से अधिक मिलने लगा जो वैसे तो सभी सुविधाओं से युक्त हैं लेकिन केवल जाति के आधार पर आरक्षित वर्ग से आते हैं। समाज में दूर दराज में बसे अधिकांश सुविधाओं से वास्तव में वंचित लोगों को पता ही नहीं कि देश में आरक्षण प्रथा अब भी लागू है।
जैसे महतारी वंदन योजना में 1000 रूपये महीना देने की घोषणा की गई लेकिन कुछ शर्तें जोड़ी गईं जैसे आयकरदाता न हो, शासकीय सेवा में न हो, आदि आदि। इसी प्रकार आरक्षण भी शर्तों के साथ दिया जाना चाहिए ।
सरकारें भी बदलती रहीं किन्तु किसी ने भी यह साहस नहीं दिखाया कि आरक्षण के लाभ से सम्पन्न हो चुके लोगों को अब इस श्रेणी से बाहर कर दिया जाय। आरक्षण को यथावत बनाए रखते हुए जरूरतमंद लोगों के लिए इसे लागू किया जाय। जरूरतमंद की परिभाषित करने की आवश्यकता है। आज के इस आधुनिक युग में कोई केवल जाति के आधार पर कैसे जरूरतमंद हो सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी, नासा, चिकित्सा, औद्योगिक, सभी क्षेत्रों में सभी जाति व वर्गों के लोग सभी छोटे-बड़े पदों पर कार्यरत हैं। हमारे अपने राज्य में कुर्मी, साहू, पटेल जैसी तथाकथित पिछड़ी जाति के लोग अपेक्षाकृत अधिक सम्पन्न व शिक्षित हैं।
अब देश को आवश्यकता है समाज के वास्तव में वंचित लोगों को आरक्षण का लाभ देकर उपर लाने की, उन्हें अवसर प्रदान करने की। केवल वोट के ख़ातिर आरक्षण की सूची में नई जातियों को शामिल करने से अवसर से वंचित लोगों के साथ अन्याय होगा। इसे उनके साथ शोषण कहा जायेगा।