संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ...कदम-कदम पर भ्रष्टाचार, कार्रवाई गिनेचुने लोगों पर ही
22-Feb-2024 4:41 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :   ...कदम-कदम पर भ्रष्टाचार, कार्रवाई गिनेचुने लोगों पर ही

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार गई, और भाजपा की सरकार आई तो उसके बाद से लगातार बहुत से ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जिनमें पिछली सरकार की गड़बडिय़ों की जानकारी है। कुछ विधानसभा में, तो कुछ विधानसभा के बाहर, और कुछ अखबारों में। ऐसा भी नहीं कि सारी गड़बडिय़ां राज्य सरकार या मंत्रिमंडल की सहमति या अनदेखी से हुई हों, बहुत सी गड़बडिय़ां नीचे के स्तर पर अफसरों ने की हैं, बिना जरूरत करोड़ों का निर्माण कराया गया, करोड़ों की खरीदी की गई, और मानो किसी कुर्सी पर बैठे अफसर को सरकार को कोई जवाब ही नहीं देना है, लोगों ने लूटपाट के अंदाज में भ्रष्टाचार किया। प्रदेश के कुछ जिम्मेदार अखबारों में लगातार छपने वाली ऐसी रिपोर्ट देखें, तो लगता है कि सरकारें मुजरिमों के अंदाज में काम करती हैं, और अगर उसी पार्टी की सरकार दुबारा आ जाए, तो ये गड़बडिय़ां दबी भी रह जाती हैं। या तो पांच-पांच बरस में सरकार बदलती रहे, तो भ्रष्टाचार कुछ काबू में हो सकता है, लेकिन सिर्फ सरकार पलटने से ही भ्रष्टाचार थम नहीं सकता। 

किसी भी सरकार में हो रहे भ्रष्टाचार की जानकारी बहुत से लोगों को रहती है, मंत्री और अफसर को तो रहती ही है, नीचे के अफसरों और कर्मचारियों को भी इसका पता होता है। लेकिन नियमों या राजनीतिक दबाव में बंधे हुए लोग इसकी जानकारी बाहर नहीं दे पाते हैं। कुछ आरटीआई एक्टिविस्ट जानकारी निकलवाते हैं, लेकिन हासिल ऐसी जानकारी का इस्तेमाल बड़ा संदिग्ध रहता है कि वह जनहित में होता है, या एक्टिविस्ट के निजी हित में। अगर सरकारों से जानकारी निकलवाने का काम तेजी से हो सके, और उसके आधार पर शिकायत आने पर सरकार खुद तेजी से काम कर सके, या एसीबी-ईओडब्ल्यू जैसी सरकारी जांच एजेंसी इनमें जांच कर सके, तो कई भ्रष्ट लोग जेल जा सकते हैं, और उनकी मिसाल देखते हुए बाकी लोग कुछ सुधर भी सकते हैं। लेकिन दिक्कत यह है कि एसीबी-ईओडब्ल्यू में भ्रष्टाचार के जिन मामलों की जांच पूरी हो जाती है, भूले-भटके इक्का-दुक्का मामलों में सरकार से मुकदमा चलाने की इजाजत भी मिल जाती है, उनमें भी मुकदमे चलाए नहीं जाते। सरकार की हालत यह है कि राजधानी रायपुर के सबसे बड़े अवैध कब्जे और अवैध निर्माण के खिलाफ बरसों तक मुकदमा लडक़र रायपुर म्युनिसिपल ने हाईकोर्ट से मामला जीता, इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कोई याचिका नहीं हुई, लेकिन शायद दस बरस हो चुके हैं म्युनिसिपल ने कब्जा तोडऩे की जहमत नहीं उठाई, जबकि मामला हाईकोर्ट जाने के पहले म्युनिसिपल ने प्रदेश के बाहर से विस्फोटक विशेषज्ञों को बुला लिया था ताकि बड़ी-बड़ी अवैध इमारतों को विस्फोट से गिराया जा सके। जाहिर है कि कार्रवाई न करने के पीछे मोटा लेन-देन रहता है, और इसीलिए अपने जीते मुकदमे के बाद भी अवैध साबित हो चुके कब्जे और निर्माण को छुआ नहीं जाता। 

अखबारों में रोज दर्जनों ऐसी रिपोर्ट छपती हैं जिनमें गैरजरूरी निर्माण करवाना, गैरजरूरी सामान खरीदना साबित होता है। खरीदे गए सामान का इस्तेमाल नहीं करना, और उसका पड़े-पड़े खराब हो जाना सरकार में आम बात है। किसी भी पार्टी की सरकार रहे, ऐसा चलते ही रहता है। खबरों से ही दिख जाता है कि किस परले दर्जे का भ्रष्टाचार हुआ है, कई मामलों में विधानसभा में सवाल उठते हैं, बहुत से मामलों को सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट में उजागर किया जाता है, लेकिन सरकारें आमतौर पर बिना संवेदना के रहती हैं, और झिझक भी खत्म हो जाती है। फिर जब सरकारों को यह लगता है कि पिछली सरकार या अपनी खुद की सरकार के किए हुए भ्रष्टाचार पर चुनिंदा कार्रवाई ही करनी है, तो फिर भ्रष्टाचार में एक नया आयाम जुड़ जाता है, और प्रदेश की दोनों बड़ी पार्टियों को साधने की कोशिश हो जाती है, अफसर तो स्थाई रहते हैं, और वे सधे-सधाए रहते हैं। 

हम एसीबी-ईओडब्ल्यू जैसी एजेंसी के काम को देखकर हैरान होते हैं कि अगर वह रोज प्रदेश के अखबार ही देखकर प्रारंभिक जांच शुरू करे, तो ही हर दिन उसके हाथ बहुत से नए मामले लग सकते हैं, लेकिन राजनीतिक प्राथमिकताओं से ही ऐसी एजेंसियां काम करती हैं। जब जो पार्टी सत्ता में हैं, उसके निशाने पर जो भ्रष्टाचार हैं, सिर्फ उन्हीं पर कार्रवाई होती है, और उजागर हो चुके भ्रष्टाचार के बाकी मामले अनदेखे रह जाते हैं। हमारा ख्याल है कि जनता के बीच के कुछ ऐसे संगठन रहने चाहिए जो कि भ्रष्टाचार के मामले उठने पर, उनकी और जानकारी जुटाकर उन्हें एक तर्कसंगत और न्यायसंगत अंत तक पहुंचाने का काम करें। यह सिलसिला अखबारों या आरटीआई एक्टिविस्ट लोगों से शुरू होता है, और जनसंगठनों को इन्हें आगे ले जाना चाहिए। कुछ भ्रष्टाचार तो इतने बड़े होते हैं कि कोई हाईकोर्ट भी उन्हें सुनकर उनमें दखल दे सकते हैं। जनता के बीच के लोगों को ऐसी सारी संभावनाओं को टटोल लेना चाहिए, क्योंकि पैसा तो जनता का ही है जो कि भ्रष्ट लोग लूट-खा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में अभी-अभी विधानसभा का पहला बड़ा सत्र शुरू हुआ है, और उसमें सत्तारूढ़ भाजपा विधायक सवाल कर रहे हैं, और सत्तारूढ़ भाजपा मंत्री जवाब दे रहे हैं, और इनमें से तकरीबन तमाम मामले पिछली कांग्रेस सरकार के समय के हैं। आज सवाल पूछने में सबसे सक्रिय विधायक भाजपा के ही हैं, क्योंकि इस सरकार को तो आए हुए ही दो-तीन महीने हुए हैं, जितनी गड़बडिय़ां हैं, वे सब पिछली सरकार के वक्त की हैं। आगे भी मीडिया से विधायकों को, और विधायकों के पूछे सवालों से मीडिया को मामले को आगे बढ़ाना चाहिए। अगर भ्रष्टाचार का लगातार भांडफोड़ होगा, तो हो सकता है कि कुछ को जेल जाते देखकर बाकी लोग सहमेंगे, और चोरी-डकैती घटेगी। 

देश में इतनी संवैधानिक संस्थाओं के रहने के बाद भी अगर उजागर हुआ भ्रष्टाचार भी बिना सजा पाए रह जाए, तो वह लोकतंत्र के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी की बात ही होती है।

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