संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महिला-शोषण की विविधता से इतना भरापूरा है यह देश!
23-Feb-2024 4:47 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  महिला-शोषण की विविधता से इतना भरापूरा है यह देश!

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के एक नर्सिंग कॉलेज का मामला सामने आया है जिसमें वहां के एक प्राध्यापक ने एक छात्रा को पास करने के लिए 30 हजार रूपए मांगे, या अपने साथ सेक्स की मांग की। छात्रा की शिकायत पर इस प्राध्यापक को गिरफ्तार किया गया है। नर्सिंग कॉलेज में अमूमन लड़कियां ही पढ़ती हैं, और ये आमतौर पर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों की रहती हैं। न सिर्फ नर्सिंग की पढ़ाई के दौरान, बल्कि बाद में भी अस्पतालों में नौकरी करते हुए उन्हें विपरीत परिस्थितियों में काम करना पड़ता है, और शोषण के खिलाफ अपने आपको तैयार भी रखना पड़ता है। इस प्राध्यापक की इतनी हिम्मत थी कि उसने इस छात्रा को वॉट्सऐप पर संदेश भेजकर सेक्स की शर्त रखी, जबकि आज जगह-जगह इस तरह के मामलों में सजा होने की खबरें भी आती रहती हैं। इस तरह की चैट के सुबूत के साथ जब छात्रा ने पुलिस को रिपोर्ट की, तो इस प्राध्यापक को गिरफ्तार किया गया। इस प्रोफेसर ने छात्रा को लिखा है कि पास होना है तो हर विषय के 30 हजार रूपए लगेंगे, या ब्वॉयफ्रेंड के साथ जो करती हो वो करना पड़ेगा। उसने यह भी लिखा कि अपनी कोई ऑटफोटो भेजो, तब मानूंगा कि तुम तैयार हो। छात्रा ने ऐसी तस्वीरें भेजने से मना किया तो प्राध्यापक ने उसे फेल करने की धमकी दी। समाचार बताते हैं कि पहले भी इस प्राध्यापक की ऐसी मांग से परेशान एक छात्रा पढ़ाई छोडक़र जा चुकी है। यह बड़ा बेहूदा सा संयोग है कि इसी शहर से अभी एक दूसरी खबर आई है कि किस तरह यहां का एक डॉक्टर 13 बरस की उम्र से एक लडक़ी से रेप करते आ रहा है, और 14 बरस से यह सिलसिला चल रहा है। लडक़ी की शादी हो गई तो उसके बाद भी वह यह सिलसिला चलाते रहा। अब लडक़ी ने अपना आरोप साबित करने के लिए अपने बच्चे के डीएनए टेस्ट का आवेदन दिया है। और हाईकोर्ट ने उसकी याचिका मंजूर करते हुए उसके बच्चे और आरोपी डॉक्टर दोनों का डीएनए करवाने की बात कही है। 

ऐसा एक दिन नहीं गुजर रहा है कि कहीं न कहीं से इस तरह के यौन शोषण की शिकायत न आए। जब कोई प्राध्यापक, खेल प्रशिक्षक, रिसर्च गाईड, या डॉक्टर धमकी देकर इस तरह बलात्कार करे, तो यह एक अलग दर्जे का जुर्म हो जाता है। बलात्कार पर सजा का जो दायरा रहता है, उसमें इस तरह के मामलों में अधिकतम संभव सजा दी जानी चाहिए। अपनी छात्रा को, मरीज या प्रशिक्षणार्थी खिलाड़ी को, या शोध छात्रा को सेक्स का शिकार बनाना आम बलात्कार के मुकाबले अधिक संगीन जुर्म है, क्योंकि बलात्कार की शिकार लड़कियां विरोध करने पर अपने जीवन का बहुत बड़ा नुकसान झेलने को मजबूर रहती हैं। इसलिए मातहत कर्मचारी के साथ भी इस तरह का शोषण अधिक गंभीर सजा के लायक होना चाहिए। सरकारी और निजी संस्थानों में मातहत के यौन शोषण को एक किस्म का हक मान लिया जाता है, और समर्पण न करने पर उन्हें तरह-तरह से सताया जाता है। कहने के लिए संस्थानों और दफ्तरों में यौन शोषण रोकने के लिए कमेटियां बनाने का नियम है, लेकिन न तो ऐसी कमेटियां रहतीं, और न ही कमेटियों की हमदर्दी महिलाओं के साथ रहती है। हम असल जिंदगी की बातचीत में देखते हैं कि जब किसी लडक़ी या महिला के चाल-चलन के खिलाफ ओछी बातें की जाती हैं, तो इसमें न सिर्फ मर्द दिलचस्पी लेते हैं, बल्कि कई मामलों में कई महिलाएं भी महिला के चरित्र के खिलाफ बोलने लगती हैं। हमने अभी सोशल मीडिया पर लिखा भी था कि चरित्र को लेकर महिला पर चलाया गया पहला पत्थर किसी महिला के हाथ से चला हुआ भी हो सकता है। 

न सिर्फ हिन्दुस्तान, बल्कि दुनिया के अधिकतर देशों में मर्दो के शोषण की शिकार लड़कियों और महिलाओं को ऐसे शोषण में हिस्सेदार मान लिया जाता है। हिन्दुस्तान में तो बलात्कार के पीछे लड़कियों और महिलाओं के शाम को अकेले निकलने से लेकर उनकी जींस तक को जिम्मेदार मान लिया जाता है, और किसी एक नेता ने तो सौ कदम आगे बढक़र नूडल्स खाने को बलात्कार के लिए जिम्मेदार बताया था। देश के एक मुख्यमंत्री ने यह कहा था कि महिलाओं के बदन में इतनी अधिक ऊर्जा होती है कि उसे काबू करने के लिए एक मर्द जरूरी होता है। इस देश में मनुस्मृति जैसे ग्रंथ हैं जो कि महिला को पहले पिता के अधीन रहने को कहते हैं, फिर पति, और फिर पुत्र की सुरक्षा में रहने को कहा जाता है। यह पूरा सिलसिला महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का है, और इसी सोच-समझ के साथ जो मर्द बड़े होते हैं, उन्हें इतनी साधारण समझ भी नहीं रह जाती कि सेक्स की मांग वाले उनके चैट उन्हें जेल ले जाने और सजा दिलवाने के लिए काफी होते हैं। 

मातहत लोगों के शोषण की कहानी सिर्फ औपचारिक गुरू-शिष्या सरीखे मामलों में नहीं हैं, बल्कि आसाराम नाम के एक पाखंडी और स्वघोषित संत पर भी वह लागू होती है जिसने कि अपने एक भक्त परिवार की नाबालिग लडक़ी से बलात्कार किया था जो कि आसाराम की ही एक स्कूल में पढ़ती थी, और वहां के छात्रावास में रहती थी। किसी भी तरह से अपने मातहत या अपने काबू की लडक़ी या महिला के साथ बलात्कार हिन्दुस्तान में बहुत आम जुर्म हैं। ऐसा लगता है कि पुरूषों के एक बड़े हिस्से के दिमाग में पूरे ही वक्त सेक्स-शोषण छाया रहता है, और पहला मौका मिलते ही वह बाहर निकलने लगता है। कानून कड़े जरूर हैं, लेकिन पुलिस की जांच और अदालती प्रक्रिया इतनी महिलाविरोधी है कि बलात्कार के मामलों में महिला को इंसाफ मिलने के पहले कई और बलात्कार मिल जाने का खतरा रहता है। दो-चार दिन पहले की ही एक अलग खबर है कि बलात्कार के एक मामले में जुर्म की शिकार महिला को अदालत के चेम्बर में बुलाकर वहां जज ने ही उसका यौन शोषण करने की कोशिश की। त्रिपुरा के इस मामले में दुष्कर्म पीडि़ता ने बताया कि जब वह बयान देने गई, तो जज ने उसके साथ छेडख़ानी की। इस शिकायत पर जिला जज की अध्यक्षता में तीन लोगों की जांच कमेटी बनाई गई है। और यह मामला तो एक महिला की हिम्मत की वजह से सामने आया हुआ दिख रहा है, कितनी ऐसी महिलाएं होंगी जो कि मर्दों की इस दुनिया से इस तरह लड़ते हुए थक न जाती हों। 

हमारा ख्याल है कि मौजूदा नियम-कानून रहते हुए भी शिकायत, जांच, और सुनवाई का सिलसिला महिलाविरोधी है, और महज कानून कड़े करने से कुछ नहीं होगा, समाज के नजरिए को भी बदलना पड़ेगा, और जांच एजेंसियों से लेकर अदालत तक एक अधिक संवेदनशील इंतजाम भी करना पड़ेगा, वरना इस लोकतंत्र में महिला की शिकायत का क्या हाल है, यह तो हमने आधा दर्जन महिला पहलवानों की यौन शोषण की शिकायतों पर देख लिया है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की दखल नहीं हुई, तब तक पुलिस ने एफआईआर तक नहीं लिखी थी। और जब देश के मुख्य न्यायाधीश पर यौन शोषण का आरोप उन्हीं की एक मातहत ने लगाया था, तो यह मुख्य न्यायाधीश ही इस मामले की सुनवाई में जजों की बेंच का मुखिया बनकर बैठ गया था। महाभारत और रामायण काल से इस देश की संस्कृति का रूख जिस तरह महिलाविरोधी है, वह अब तक जारी है, और जाने कितनी सदियों तक ऐसा ही चलेगा।  

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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