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ममता बनर्जी को मुश्किलों में डालने वाले शाहजहां शेख कौन हैं?
24-Feb-2024 4:52 PM
ममता बनर्जी को मुश्किलों में डालने  वाले शाहजहां शेख कौन हैं?

 प्रभाकर मणि तिवारी

पश्चिम बंगाल में उत्तर 24-परगना जि़ले के सुंदरबन इलाके में नदियों से घिरे संदेशखाली और तृणमूल कांग्रेस के बाहुबली नेता शाहजहां शेख़ का नाम हाल तक राज्य में भी ज़्यादा लोग नहीं जानते थे, लेकिन अब ये दोनों नाम राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में हैं।

संदेशखाली की घटना पर राजनीतिक विवाद चरम पर पहुंच गया है। टीएमसी नेताओं की कुख्यात तिकड़ी शाहजहां, शिबू हाजऱा और उत्तम सरदार के अत्याचारों और कथित यौन उत्पीडऩ के ख़िलाफ़ महिलाओं ने बगावत कर दी है।

इसने लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार के साथ-साथ उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को भी मुश्किल में डाल दिया है। हालांकि संदेशखाली के तीन कुख्यात नेताओं में से सबसे अधिक चर्चा टीएमसी नेता शाहजहां शेख़ की हो रही है।

आखिर कौन हैं यह शाहजहां शेख़ जो इतना कुछ करने के बावजूद कऱीब डेढ़ महीने से पुलिस और दूसरी क़ानूनी एजेंसियों की पकड़ में नहीं आ रहे?

शाहजहां के नाम की चर्चा कब शुरू हुई?

शाहजहां का नाम पहली बार बीती पांच जनवरी को उस समय सामने आया जब बंगाल के कथित राशन घोटाले की जांच कर रही ईडी की टीम तलाशी के लिए उनके घर पहुंची।

इसकी सूचना मिलते ही शाहजहां के सैकड़ों (महिलाओं समेत) समर्थकों ने ईडी की टीम और उनके साथ गए केंद्रीय बलों के साथ पत्रकारों को घेर लिया।

गांव वालों के हमले में ईडी के तीन अधिकारी घायल हो गए। उस दौरान शाहजहां अपने घर पर ही थे। लेकिन इस घटना के तुरंत बाद वह घर से फऱार हो गए। तब से अब तक उनका कोई पता नहीं चल सका है।

उस घटना के बाद से ईडी उन्हें समन भेजती रही। लेकिन वो कभी पेश नहीं हुए।

इसी दौरान उन्होंने अपने वकील के ज़रिए कलकत्ता हाईकोर्ट में अग्रिम ज़मानत का आवेदन भी दाखिल कर दिया। जिसमें कहा गया कि अगर ईडी उन्हें गिरफ़्तार नहीं करने का भरोसा दे तो वह उनके समक्ष पेश हो सकते हैं। फिलहाल उनकी इस याचिका पर कोई फ़ैसला नहीं हो सका है।

इस महीने की शुरुआत में अचानक गांव की दर्जनों महिलाएं शाहजहां और उनके दो शागिर्दों- शिव प्रसाद उफऱ् शिबू हाजऱा और उत्तम सरदार के ख़िलाफ़ तमाम तरह के आरोप लगाते हुए उनकी गिरफ़्तारी की मांग को लेकर सडक़ों पर उतर आईं।

उन्होंने तृणमूल नेताओं के मुर्गी पालन केंद्रों और घरों में भी आग लगा दी।

इन महिलाओं ने शाहजहां शेख़ और उनके शागिर्दों के ख़िलाफ़ ज़मीन पर जबरन क़ब्ज़ा करने के अलावा महिलाओं के यौन उत्पीडऩ और बलात्कार जैसे संगीन आरोप भी लगाए थे।

इलाके में परिस्थिति बिगड़ते देख कर भारी तादाद में पुलिस बल भेजा गया और धारा 144 लागू कर दी गई।

महिलाओं के आक्रोश को ध्यान में रखते हुए पुलिस ने पहले उत्तम सरदार और फिर शिबू हाजऱा को गिरफ़्तार कर लिया। लेकिन शाहजहां अब तक फऱार है। उनके सीमा पार कर बांग्लादेश जाने की आशंका जताई जा रही है।

मछुआरे से राजनेता बनने की कहानी

यह जानकर हैरत हो सकती है कि बीते महीने से ही लगातार सुर्खियां बटोरने वाले शाहजहां शेख़ ने एक मछुआरे के तौर पर अपना करियर शुरू किया था।

संदेशखाली के लोग शाहजहां के इस सफऱ के गवाह रहे हैं। इलाके में यह कहानी हर ज़ुबान पर सुनने को मिल जाती है।

चार भाई-बहनों में सबसे बड़े 42 साल के शेख़ की दबंगई और सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से मिले कथित संरक्षण के कारण ही इलाके में उसे भाई के नाम से जाना जाता है।

शेख़ ने बाद में ईंट भ_े में भी काम किया। ईंट भ_े में काम करने के दौरान साल 2004 में वह यूनियन का नेता बन गया।

स्थानीय लोगों का दावा है कि साल 2000 तक वह कभी बस कंडक्टर का काम करते थे तो कभी घर-घर घूमकर सब्ज़ी बेचते थे।

संदेशखाली इलाके में शाहजहां जब राजनीति का ककहरा सीख रहे थे, राज्य में बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली वाममोर्चा सरकार थी।

अपने कामकाज में सहूलियत के लिए उन्होंने दो साल बाद यानी वर्ष 2006 में सीपीएम का हाथ थाम लिया।

2011 में वाममोर्चा शासन ख़त्म होने के बाद अगले साल ही उन्होंने टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव मुकुल रॉय और उत्तर 24-परगना जि़ले के पार्टी अध्यक्ष ज्योतिप्रिय मल्लिक के ज़रिए तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया।

इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। बीते पंचायत चुनाव में उनके नेतृत्व में मिली भारी जीत के बाद पार्टी ने शाहजहां को जि़ला परिषद का सदस्य बना दिया।

जानकार बताते हैं कि सीपीएम के पैरों तले लगातार खिसकती ज़मीन को ध्यान में रखते हुए साल 2008-09 से ही शाहजहां उससे दूरी बनाने लगे थे।

संदेशखाली के रहने वाले बिजन कुमार (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि शाहजहां राजनीति और सत्ता का रुख़ भांपने में माहिर हैं।

इलाक़े में दबंगई और तृणमूल का संरक्षण

संदेशखाली के एक सीपीएम नेता नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि पार्टी में रहने तक शाहजहां का रवैया अपेक्षाकृत ठीक था। लेकिन तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने और जि़ले के नेताओं का वरदहस्त होने के बाद वह खुल कर खेलने लगे थे।

इलाके में चुनावी समीकरण का ध्यान रखते हुए शीर्ष नेताओं ने उन्हें इसकी छूट दे रखी थी।

वह बताते हैं कि शाहजहां का इलाके में इतना आतंक था कि किसी में भी उनके ख़िलाफ़ मुंह खोलने की हिम्मत नहीं थी।

जल्द ही शाहजहां संदेशखाली ब्लॉक नंबर- 1 के तृणमूल प्रमुख और फिर आगापुर सरबेडिय़ा ग्राम पंचायत के प्रमुख बन गए।

2023 के पंचायत चुनाव जीतने के बाद वह उत्तर 24-परगना जि़ला परिषद के सदस्य और मत्स्य और पशु संसाधन विभाग के प्रमुख था।

ईडी को जिस राशन घोटाले में शाहजहां की तलाश है, उसी मामले में पूर्व खाद्य मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक भी जेल में हैं। लेकिन वह बीते महीने से ही फऱार हैं। शाहजहां को मल्लिक का बेहद कऱीबी माना जाता था।

यही वजह है कि उनके घर पहुंची ईडी की टीम पर स्थानीय लोगों ने एकजुट होकर हमला किया था।

स्थानीय लोग बताते हैं कि शाहजहां की दबंगई का डर दिखा कर उनके दोनों शागिर्द शिव प्रसाद उफऱ् शिबू हाजऱा और उत्तम सरदार गांव वालों पर अत्याचार करते थे।

बीजेपी का दावा

कोलकाता में भाजपा नेताओं का दावा है कि कि तीन साल पहले संदेशखाली के भांगीपाड़ा इलाके में टीएमसी और भाजपा के बीच हुई हिंसक झड़प में तीन लोगों की मौत के मामले में भी शाहजहां का नाम सामने आया था। लेकिन सत्ता पक्ष का संरक्षण होने के कारण उन पर कोई आंच नहीं आई।

वर्ष 2023 के पंचायत चुनाव के समय उनकी ओर से दायर हलफऩामे में बताया गया था कि उनके पास 17 गाडिय़ां और 14 एकड़ ज़मीन है। इनकी कीमत चार करोड़ बताई गई थी। इसके अलावा उनके पास ढाई करोड़ के सोने के ज़ेवर और और बैंक में 1।92 करोड़ की नकदी थी। उन्होंने अपनी सालाना आय 20 लाख रुपये बताई थी।

उनके ख़िलाफ़ सरकारी अधिकारियों के साथ मारपीट करने के भी आरोप हैं। उसकी इन गतिविधियों के कारण तृणमूल कांग्रेस के भीतर भी उस पर सवाल उठने लगे थे।

भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी दावा करते हैं, ‘शाहजहां के पास सैकड़ों मछली पालन केंद्र और ईंट भ_े के अलावा एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स भी है। उसने कोलकाता के पार्क सर्कस में करोड़ों की कीमत का मकान भी बनवाया है।’

भाजपा का आरोप है कि शाहजहां को पहले सीपीएम ने संरक्षण दिया और फिर तृणमूल कांग्रेस के शासनकाल में वह तेज़ी से फला-फूला। लेकिन सीपीएम का दावा है कि वाममोर्चा सरकार के समय शाहजहां एक मामूली व्यक्ति था।

प्रदेश सचिव मोहम्मद सलीम कहते हैं, ‘आपको उस समय कहीं शाहजहां का नाम सुनने को नहीं मिला होगा। तृणमूल कांग्रेस सरकार के संरक्षण में ही वह पला बढ़ा है और आज इस मुकाम तक पहुंच गया है।’

राजनीति में अपवाद नहीं

मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने अब तक शाहजहां शेख़ का नाम लेकर उस पर कोई टिप्पणी नहीं की है।

यह मामला गरमाने के बाद उन्होंने विधानसभा में अपने बयान में कहा था, ‘संदेशखाली इलाका आरएसएस का गढ़ है। वहां इसी वजह से तमाम गड़बड़ी फैल रही है।। हालांकि उनका यह भी कहना था कि पुलिस इस मामले में कार्रवाई कर रही है और दोषियों को गिरफ़्तार किया जा रहा है’

फिलहाल तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां शेख पर ऑन द रिकॉर्ड कुछ भी कहने से कतरा रहे हैं। उनका कहना है कि अब इस मामले की जांच चल रही है। इसलिए इस पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा।

तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष कहते हैं, ‘पुलिस तमाम आरोपों की जांच कर रही है। इस मामले में दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। संदेशखाली के दो नेताओं शिबू हाजरा और उत्तम सरदार को पहले ही गिरफ़्तार किया जा चुका है।’

संदेशखाली का दौरा करने वाले पुलिस महानिदेशक राजीव कुमार ने पत्रकारों से कहा, ‘तमाम आरोपों की गहन जांच की जा रही है। पुलिस ने दो अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर लिया है। दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।’

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शाहजहां शेख़ जैसे नेता राजनीति में अपवाद नहीं हैं।

राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी बदलती रहती है लेकिन शाहजहां जैसे लोग जस के तस रहते हैं।

राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर रहे सुकुमार सेन कहते हैं, ‘शाहजहां शेख़ जैसे नेता राजनीतिक दलों की ज़रूरत हैं। ऐसे लोग इलाके में संबंधित पार्टी के राजनीतिक हित साधते हैं और बदले में राजनीतिक दलों के नेता उनकी गतिविधियों की ओर से आंखें मूंदे रहते हैं।’ (bbc.com/hindi)

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