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आकाश दीप: डेब्यू टेस्ट में जलवा बिखेरने वाले बिहारी लडक़े के गांव-घर वाले क्या कह रहे हैं
26-Feb-2024 2:05 PM
आकाश दीप: डेब्यू टेस्ट में जलवा बिखेरने वाले बिहारी लडक़े के गांव-घर वाले क्या कह रहे हैं

आकाश की एक पुरानी तस्वीर

विष्णु नारायण

बिहार की राजधानी पटना से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर एक गाँव है बड्डी। कैमूर पहाडिय़ों के तराई इलाक़े में बसा यह गाँव रोहतास जि़ले में आता है।

आज यह गाँव और इस गाँव की कंकरीली सी पिच पर खेल की शुरुआत करने वाले ‘आकाश दीप’ एकदम से सुर्खियों में आ गए हैं।

रांची में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ खेलते हुए डेब्यू टेस्ट में उनका प्रदर्शन ‘ड्रीम डेब्यू’ जैसा है।

उन्होंने इंग्लिश क्रिकेट टीम के टॉप ऑर्डर को शुरुआती ओवर में ही चलता कर दिया। पहले ही दिन तीन विकेट झटक लिए। हालाँकि आकाश के लिए यह सफऱ कोई बहुत आसान सफऱ नहीं रहा।

यह कहानी ‘बड्डी’ जैसे गांव से निकलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवे बिखेरने की है। जहां खेल के लिए न मूलभूत सुविधाएँ दिखाई देती हैं, और न ही माहौल, वहाँ से निकले हैं आकाश दीप।

यहाँ कहावतें कही-सुनी जाती हैं कि ‘खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे खऱाब, पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब।’

आकाश दीप के पिताजी भी पारंपरिक पिता ही थे, शिक्षक पिता चाहते थे कि बेटा पढ़ लिख कर नौकरी करे। लेकिन आकाश दीप को क्रिकेटर बनना था तो पलायन करके बंगाल पहुंच गए।

आकाश भी रणजी मैच बिहार के बजाय पश्चिम बंगाल के लिए खेले। जैसे ‘मुकेश कुमार’ बिहार के बजाय किन्हीं और राज्यों से रणजी खेले, और वहाँ से स्पॉट होने के बाद से आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलुरु के साथ जुड़े।

हालाँकि वे इस बीच चर्चा में तब ही आए जब राहुल द्रविड़ ने उन्हें भारत और इंग्लैंड के खिलाफ खेलने के लिए टेस्ट कैप थमाया, और उन्होंने भी मौक़े को भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

‘बल्लेबाजी करते हुए गेंदबाजी की तरफ मुड़ गया’

आकाश की खेल यात्रा पर उनके भाई सरीखे साथी नितिन कहते हैं, ‘आकाश और मैं बचपने से ही साथ खेला करते थे। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ टीमों में खेला करते। आज भले ही उसके गेंदबाजी के चर्चे हैं लेकिन गाँव-देहात में खेलते हुए सभी बल्लेबाजी ही चाहते हैं। वो भी बल्लेबाज ही था लेकिन गेंदबाजी भी बहुत तेज़ किया करता था। उसने तो एक ओवर में 6 छक्के तक मारे हैं। गाँव में तो हमने सिर्फ कैनवस की ही गेंद से खेला और जहां-तहां जाकर कैनवस के ही टूर्नामेंट खेले।’

नितिन याद करते हैं, ‘मुझे याद आता है कि कैनवस से खेलते हुए हम अक्सर सोचा करते कि एक दिन भारत के लिए खेलना है। कई बार इसको लेकर हंसी-ठिठोली भी होती। हालाँकि समय बीतने के साथ हमारी राहें जुदा हो गईं लेकिन वो शरीर के साथ-साथ मानसिक तौर पर भी मज़बूत था।’

‘पिता और भाई के निधन के बावजूद वह डिगा नहीं। बीच में कोविड भी आया लेकिन वो लगा रहा। आज पूरे जिला-जवार को उस पर गर्व है। आकाश उदाहरण है कि तमाम अभावों के बावजूद कैसे प्रतिभा निखर ही जाती है।’

‘आकाश के नाम पर मुफ़्त मिला भोजन’

 आकाश के खेल और प्रदर्शन पर उनके साथ बल्ला भांजने वाले उनके भतीजे (किशन) बीबीसी से कहते हैं, ‘एक बार हमारे गाँव (बड्डी) की टीम झारखंड के गढ़वा जि़ले में मैच खेलने गई थी। मैं भी टीम का हिस्सा था। मैच खेलने के बाद हम किसी होटल में खाने पहुँचे तो होटलवाले ने पैसा लेने से इनकार कर दिया।’

‘वजह पूछने पर पता चला कि वो चाचा (आकाश दीप) के खेल के दीवाने हैं। हमें भी अच्छा लगा कि लोग अब इतनी दूर-दूर तक हमें जानने लगे हैं, लेकिन वो तो चाचा का जलवा था।’’

पिता चाहते थे फौज में चला जाए आकाश

आकाश दीप के बड़े पिताजी रामाशीष सिंह बताते हैं, ‘मेरा बेटा (नितिन) और आकाश पढ़ाई-लिखाई और खेल-कूद साथ ही किया करते। आकाश शारीरिक तौर पर मजबूत था तो उसके पिताजी (रामजी सिंह), जो कि ख़ुद भी शिक्षक रहे वो भी शारीरिक शिक्षक थे।’

‘वो चाहते थे कि बेटा फ़ौज वग़ैरह में नौकरी ले ले, लेकिन वो तो क्रिकेट को लेकर जुनूनी था। उसी दिशा में लगा रहा और आज तो उसका खेल सबके सामने है। पूरे गाँव-जवार में ख़ुशी है।’

तीनों विकेट किए पिता को समर्पित

राँची टेस्ट के पहले दिन के खेल के बाद आकाश दीप ने मीडियाकर्मियों से कहा कि 2015 में उन्होंने पिता और भाई को खो दिया। आज अगर पिता जीवित होते तो न जाने कितने खुश होते, तीनों विकेट और प्रदर्शन उन्हें समर्पित हैं।

उन्होंने कहा कि इंग्लिश टीम के ख़िलाफ़ ऐसा प्रदर्शन उत्साहित करने के साथ ही बड़ी जि़म्मेदारी का एहसास भी है। वे प्रयास करेंगे कि देश के लिए और भी बेहतर करते रहें।

आकाश की गेंदबाजी देखकर भतीजियां आर्या और आरूही गाँव लौटी हैं। आर्या कहती हैं, ‘चाचा बहुत मेहनती हैं। उनसे सीखा जा सकता है कि लाख मुश्किल आने के बाद भी कैसे फोकस नहीं लूज़ करना है। हमसे हमेशा कहते हैं कि दुनिया बहुत बड़ी है और अगर दुनिया देखनी है तो पढ़ाई-लिखाई करनी होगी। किसी भी काम में बेहतरीन होना होगा।’

वहीं आकाश दीप के हालिया प्रदर्शन और तीन विकेट झटकने के बाद मन में उपज रहे भाव पर वो कहती हैं, ‘मैच से पहले और बाद में भी हमारी बातें हुईं। जब नो बॉल पर विकेट नहीं मिल सका तो हमें भी निराशा हुई लेकिन मैच के बाद तो सबकी नजऱें हम पर थीं। लगा कि हम लोग सेलेब्रिटी हो गए हैं। ’

आरूही कहती हैं, ‘स्कूल और परीक्षा की वजह से लौटना पड़ा नहीं तो हम पाँचों दिन वहाँ रुकते, लेकिन हम चाचा को कह आए हैं कि 2 विकेट और लेना है। आज अगर दादाजी जीवित होते तो न जाने कितने खुश होते। उनका सपना था कि चाचा देश के लिए खेलें। चाचा और गाँव का नाम चारों तरफ़ हो रहा। चाचा को गाँव-घर बहुत प्रिय है। चाहे वो जहां चले जाएँ लेकिन गाँव जरूर लौटते हैं।’

जिस राज्य की क्रिकेट टीम दशकों से रणजी ट्रॉफ़ी खेलने से वंचित रही हो, जहां एक भी विश्वस्तरीय तो क्या कहें घरेलू स्तर का मैदान न हो। उस राज्य में किसी एक खिलाड़ी का शिखर तक पहुँचना आसान तो नहीं ही है। (bbc.com/hindi)

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