विचार / लेख

एक ही वक्त सहमत, और असहमत भी दीपाली अग्रवाल
26-Feb-2024 2:14 PM
एक ही वक्त सहमत,  और असहमत भी  दीपाली अग्रवाल

उसने सेंटर फ्रेश मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए कहा कि- खाएंगी मैडम। मैंने एक उठा ली। वो कैब ड्राइवर बहुत कम उम्र का लडक़ा था। जब मैं फोन पर बात कर रही थी तो उसने जाना कि व्यक्तिगत मुद्दा है तो गाने चला दिए ताकि मुझे बात करने में असुविधा न हो यानी गाने की उस डिस्टर्बेंस से मैं निश्चिंत रहूं कि वह मेरी बात नहीं सुन रहा होगा। फोन रखते ही उसने भी गाने बंद कर दिए। सामने शिवाजी की मूर्ति थी, मैंने पूछा कि क्या वो मराठी है। उसने सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि वो अहिल्याबाई होल्कर का वंशज है। वह आगरा का था। मैंने कहा कि आगरा में भी मराठी हैं? मुझे तो लगा कि एमपी और महाराष्ट्र में ही हैं और उसने उंगली हवा में घुमाते हुए कहा कि पूरे देश में सब जगह मराठी हैं।

फिर उसने पूछा कि क्या वो गाने चला दे, मैंने स्वीकृति दी। वो साथ-साथ गा रहा था लेकिन संभले हुए ढंग से नहीं, किसी टीनएजर की तरह जोर-जोर से। फिर लगातार उसके पास फोन आने लगे। वह इतनी तेज़ बात कर रहा था कि गाने की आवाज से बहुत फर्क नहीं पड़ा। उसकी बातों से लगा कि उसकी प्रेमिका है जो नाराज है लेकिन वह घर की बात करने लगा तो लगा कि शायद पत्नी है लेकिन फिर उसने संबोधित किया कि बेटू मम्मी। तब तो लगा कि शायद मां होगी जिससे बहुत लाड़ करता होगा। मुझे इतनी जिज्ञासा हुई कि पूछ बैठी कि वो प्रेमिका थी, पत्नी या मां। वह पूछने लगा कि मुझे क्या महसूस हुआ तो मैंने कहा कि जिस तरह से बातचीत हुई, मुझे तो समझ नहीं आता।

तब उसने बताया कि वह पत्नी है और उसके बेटे का नाम बेटू है तो वह उसे बेटू की मम्मी की जगह बेटू मम्मी कह रहा था। वह लगातार झगड़ रहे थे लेकिन जो हंसी उसके चेहरे पर थी, उससे तय था कि मामला गंभीर नहीं था, चुहल थी। मेरे पूछे सवाल के बारे में वो अपनी पत्नी को बताने लगा। फोन रखकर फिर बोला कि गर्लफ्रेंड वाले शौक़ हमने नहीं पाले, इतनी तो मैं किसी की नहीं सुनता लेकिन एक लडक़ी अपने मां-बाप, भाई-बहन, घर-परिवार सब कुछ छोडक़र आई है तो इसकी सुनूंगा। तब मैं एक ही समय पर उसकी बात से सहमत थी और असहमत भी। वह पत्नी का इतना सम्मान करता है यह एक सुंदर बात है और लेकिन प्रेम में अपने साथी को दिए विशेषण (गर्लफ्रेंड) के लिए यह बात तो ठीक नहीं है।

मुझे न जाने क्यूं लेकिन उनकी वो नोंक-झोंक अच्छी लगी कि जीवन में कितने रिश्तों के रंग इसी तरह खिलते हैं, खिले रहते हैं। मुझे मेरी जगह पर उतारकर जब वो गाड़ी मोडऩे लगा तो ध्यान आया कि उसने मेरे चेहरे पर गंभीरता देखकर कहा था कि सेंटरफ्रेश खाने से मूड अच्छा होता है। मूड अच्छा हो गया था। जीवन ऊर्जा किस तरह से काम करती है, मैं रोज महसूस करने की कोशिश करती हूं। चूंकि सेंटरफ्रेश तो गाड़ी में ही छूट गई थी।

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