विचार / लेख
शिल्पा शर्मा
हमेशा से उन लोगों में से रही हूं, जो मार्केट में आई नई चीज़ को (घर से संबंधित, जैसे- साबुन, टूथपेस्ट, शैम्पू, बिस्किट्स, नमकीन, चीज वगैरह) एक बार आजमाकर जरूर देखती हूं। वह चीज पसंद न भी आए तो भी उसे पूरा इस्तेमाल में लाती ही हूं। रोजाना उपयोग में आने वाली ऐसी चीजों के इतर भी अब मार्केट में बहुत कुछ मिलता है, जिसे अक्सर हम सभी बेवजह ले लिया करते हैं।
इन दिनों बतौर परिवार हमने रूटीन में लगने वाली केमिकल बेस्ड चीज़ों के साथ-साथ ऐसा अतिरिक्त कन्ज़्म्प्शन भी बहुत कम कर दिया है। केमिकल बेस्ड चीजें इसलिए कम इस्तेमाल करती हूं कि अंतत: ये पानी या जमीन में जाती हैं और उसे पोल्यूट करती हैं, जैसे- कपड़े धोने का डिटर्जेंट, साबुन, शैम्पू आदि। कोशिश रहती है कि इनका इस्तेमाल जरूरत से कम ही रखा जाए। हम लोग, जो धूप और धूल में काम नहीं करते, सोचकर देखें तो उन्हें इन चीजों के ज्यादा इस्तेमाल की जरूरत ही नहीं है। खासतौर पर हम कपड़े धोने के बाद उसमें ख़ुशबू लाने के लिए जो केमिकल उपयोग में लाते हैं, उसकी कतई जरूरत नहीं होती यदि हम कपड़े धूप में सुखाते हों। ये केमिकल हम केवल बाजार/विज्ञापनों के दबाव में खरीदते हैं।
वैसे भी आप ध्यान दें तो पाएंगे कि जब आप किसी केमिकल से कोई चीज साफ करते हैं तो दूसरी चीज को गंदा कर रहे होते हैं, मसलन- वह कपड़ा, जिससे आप साफ कर रहे हैं, पहले वह गंदा होगा फिर उस कपड़े को साफ करने के लिए केमिकल, जिससे धरती पर प्रदूषण बढ़ेगा। अत: बहुत सोचने पर लगता है कि इस तरह के पलूशन को कम करने समाधान चीज़ों का कम या मितव्ययी इस्तेमाल ही है।
बाजार से अतिरिक्त खरीदारी (साथ ही सामान्य खरीदारी भी) में जो बात इन दिनों सबसे ज्यादा तकलीफ पहुंचाती है, वो है सामान की पैकेजिंग। हर चीज एक प्लास्टिक में, फिर ऊपर से दूसरे प्लास्टिक में या फिर प्लास्टिक कोटेड गत्ते में पैक्ड मिलती है। इन चीजों का कन्सम्प्शन कम करने के बाद भी, दिन में रोजाना आठ-दस पॉलीथिन कोटेड गत्ते या पॉलिथीन मेरे घर से डस्टबिन में जाते हैं, वह भी बहुत दुखी कर देते हैं मुझे।
सब्ज़ी लेने अपना झोला लेकर जाते हुए कम से कम चार वर्ष तो हो ही चुके हैं। पर वहां केवल इक्का-दुक्का मेरे जैसे झोलाछाप लोगों को ही आते देखा है। जिस दुकान से मैं सब्जी लेती हूं, बातों ही बातों में वहां काम करने वाले एक लडक़े ने बताया कि कई परिवार ऐसे हैं, जो हर सब्जी को अलग पॉलिथीन में भेजने को कहते हैं और यदि न भेजो तो इस बात की धमकी देते हैं कि तुम्हारे यहां से सब्ज़ी ही नहीं लेंगे।
हम सभी अपने जीवन की उहापोह में डूबे हैं, सभी को बहुतेरे काम हैं, लेकिन क्या हमारे अपने बच्चों के भविष्य के लिए भी हम ऐसे छोटे-छोटे कदम नहीं उठा सकते, जो इस धरा को उनके रहने लायक छोड़ दें? यह भी सच है कि दूसरों को कहने से पहले हमें खुद को सुधारना होगा। हमारी ओर से इसकी कोशिश जारी है, अब आपकी भी बारी है।
क्कस्: आप लोगों के पास धरती/पानी को कम प्रदूषित करने वाले कोई और उपाय हों तो शेयर करें, ताकि हम सब इस नेक काम के सहभागी बनें। अंतत: परिवर्तन हमसे ही तो शुरू होगा, है ना?