विचार / लेख

आज विज्ञान दिवस
28-Feb-2024 4:16 PM
आज विज्ञान दिवस

द्वारिका प्रसाद अग्रवाल

विज्ञान अंतिम ज्ञान नहीं होता, यह सतत परिवर्तनशील प्रक्रिया है। कल जो ज्ञात था, आज अतीत है; जो आज ज्ञात है, कल अतीत हो जाएगा। विज्ञान परम ज्ञान नहीं है, यह सही है कि हम इसके माध्यम से ज्ञान के समीप पहुँच सकते हैं। विज्ञान ने हर युग में मनुष्यता को बेहतर मनुष्य बनने में मदद की, उन तकनीकों का अन्वेषण किया जिनसे मनुष्य के जीवन को सुविधाजनक बनाया जा सके। दो पैरों से चलने वाला मनुष्य, बैलगाड़ी, सायकिल, मोटर सायकिल, कार और वायुयान की गति से बढ़ता हुआ राकेट पर सवार होकर उडऩे लगा। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि मनुष्य विज्ञान के साथ-साथ आगे बढ़ रहा है लेकिन ऐसा नहीं है, विज्ञान के तेज कदमों के साथ चलना मनुष्य के वश की बात नहीं है। मनुष्य जब तक विज्ञान की तकनीक को समझने और अंगीकार करने की कोशिश करता है, तब तक विज्ञान बहुत आगे बढ़ जाता है। इन दोनों के बीच फासला लगातार बढ़ रहा है। जितना फासला बढ़ रहा है उतना विज्ञान मनुष्यता पर हावी होता जा रहा है, विज्ञान मालिक बन गया है और मनुष्य उसका गुलाम।

अपने देश के सन्दर्भ में देखें तो हमारी गति विकसित देशों के मुकाबले बहुत धीमी है क्योंकि हमारी भारतीयता किसी भी परिवर्तन को आहिस्ता-आहिस्ता अपनाती है। परिवर्तन को स्वीकारने की हिचकिचाहट हमें बार-बार रोकती है और यह संकोच हमें आगे बढऩे के बजाय कदमताल करने के लिए बाध्य कर देता है। हमारी रफ़्तार इतनी धीमी है कि जिस युग में हमारे पूर्वज कपड़े पहना करते थे तब शेष विश्व निर्वस्त्र घूमता था, उनको सभ्य होने में कितना अधिक समय लगा जबकि इस बीच विज्ञान की मदद से शेष विश्व हमसे आगे बढ़ गया और हम दुनिया को बढ़ते हुए आश्चर्य से खड़े निहार रहे हैं।

हमारा देश तकनीक-विहीन नहीं था। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में वस्त्र उत्पादन में अकेले हमारा योगदान विश्व के कुल उत्पादन का एक चौथाई था। मलमल का कपड़ा हमारी उन्नत तकनीक का ज्वलंत उदाहरण है। वास्तु निर्माण में हमारी वैज्ञानिकता का दुनिया लोहा मानती है। धातु के अस्त्र-शस्त्र और काष्ठ कला के निर्माण में हमारे कारीगर अतुलनीय रहे हैं। किन्तु आज की दौड़ती-भागती दुनिया में हम अगर पिछड़े हुए हैं तो भारतीयता की धीमी गति के कारण। विज्ञान ने अपनी खोज को छुपा कर नहीं रखा बल्कि उसे सार्वजनिक किया ताकि विज्ञान के प्रयास सबके काम आ सकें जबकि हमारे देश में कई गुणवंत अपने ज्ञान और उपलब्धियों को आपने सीने में छुपाए चिता में भस्म हो गए। अपनी विधा को रहस्य के दायरे में रखने की इस भूल के कारण हमारी वैज्ञानिक उपलब्धियां पनप नहीं सकी।

विज्ञान अपनी तकनीक का प्रयोग सामाजिक परिवर्तन के लिए करता है। इस परिवर्तन का लाभ उठाने के लिए हमें उसकी गति से अपनी गति मिलानी पड़ेगी। हमारे शिक्षित समाज को आधुनिक तकनीक का लाभ उठाना नहीं आता। वे पुरानी परंपरा और आधुनिक खोज का ऐसा विचित्र घालमेल करते है कि उस विधा के मूल आविष्कारक को यदि पता लग जाए तो उसको अपने आविष्कार पर अफ़सोस होने लगेगा। उन्नत तकनीक समाज को उन्नति की राह दिखाती है लेकिन भारतीय जनमानस को उसका सकारात्मक उपयोग कम समझ आता है, नकारात्मक अधिक। वज़ह यह है कि वे अपनी दुनिया को ही दुनिया मानते हैं और उसी दुनिया में खुश रहते हैं। संचार तकनीक इसका मौजूं नमूना है। संचार तकनीक ने पूरे विश्व को हमारी मु_ी में समेट दिया है। संदेशों का आना-जाना त्वरित हो गया है। आपसी संवादों के आदान-प्रदान, उद्योग, व्यापार, प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में इस तकनीक के कारण बहुत मदद मिली है, होने वाले निरर्थक विलम्ब में कमी आई है लेकिन इसने मानवीय सरोकार को चिंताजनक स्तर तक कम कर दिया है। मानवीय संबंधों के मामले में हम अवनति की और अग्रसर हैं। मोबाइल ने हमें एकाकी बना दिया है, सब अपने-अपने में मस्त हैं। दु:ख की बात यह है कि जो विज्ञान मानवता के कल्याण के लिए नित नयी खोज कर रहा है वह हमारे समाज में मनुष्यता को कमजोर कर रहा है।

विगत कुछ वर्षों में विज्ञान और तकनीक ने हमारे समाज को बदलने में अग्रणी भूमिका निभाई है। हमारे रहन-सहन और सोच पर इसका व्यापक असर हुआ है। भौगोलिक दूरियां कम हुई हैं लेकिन आपसी दूरियां बढ़ गयी हैं। इसकी शुरुआत धीमी हुई लेकिन अब उसने गति पकड़ ली है। मनुष्य उसकी पकड़ में आ चुका है। अब यह मनुष्य के मानवीय मूल्यों को कुचलने की खल भूमिका में उतर आई है। मददगार ने तानाशाह की शैली अपना ली है और वह मनुष्य को वैसा बदलने के लिए मजबूर कर रहा है, जैसा वह चाहता है। अब विज्ञान की तकनीक मनुष्य को ऐसा मनुष्य बना रही है जिसमें मनुष्यता की भावना न हो, केवल हाड़-मांस का शरीर हो। समस्या यह है कि उस बलशाली का हम क्या करें जो हम पर इस कदर हावी हो चुका है। उसका शरीर प्रति-पल बलिष्ठ हो रहा है और उसके सामने मानवता कमजोर पड़ती जा रही है। संभवत: यह मुकाबला एक-तरफ़ा हो गया है, अब कोई चुनौती शेष नहीं रही, मनुष्यता मुकाबला हार चुकी है।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news