संपादकीय
कई बार कुछ अलग-अलग खबरें मिलकर लिखने का एक मुद्दा सुझाती हैं। जापान की खबर है कि वहां ड्राइवरों की कमी से पूरी सप्लाई चेन गड़बड़ा गई है, कारखानों के सामान दुकानों और लोगों के घर तक पहुंच नहीं रहे, और ऐसी आशंका है कि 2030 तक यह गड़बड़ी कायम रहेगी। दूसरी तरफ नेपाल की खबर है कि वहां नर्सों की बहुत कमी हो गई है, जरूरत से आधी संख्या भी उनकी नहीं है, और नर्सें ब्रिटेन में नौकरी पाना बेहतर समझ रही हैं। ब्रिटेन ने वैसे तो दुनिया के कम विकसित देशों से प्रशिक्षित नर्सों को लेने की सीमा बांध रखी है, ताकि इन देशों की स्थानीय जरूरतें बुरी तरह प्रभावित न हों, लेकिन ऐसा हो रहा है। एक तीसरी खबर है कि जर्मनी में लोग पढ़ाई बीच में छोड़ दे रहे हैं, और वहां कामगारों की कमी हो रही है। दक्षिण कोरिया की खबर है कि वहां जन्म दर दुनिया में सबसे कम हो चुकी है, जिसके बढऩे का कोई आसार भी नहीं है, और आने वाले बरसों में वहां सिर्फ बुजुर्गों का अनुपात बढ़ते चले जाएगा, और कामगार लोग घटते चले जाएंगे। दक्षिण कोरिया की जन्म दर 0.72 बच्चे प्रति महिला हो गई है, जबकि जनसंख्या को बनाए रखने के लिए 2.1 की जन्म दर जरूरी होती है। जापान सहित कई दूसरे देशों में भी जन्म दर गिरती जा रही है, और बूढ़ी आबादी की सेवा के लिए कामकाजी लोगों की जरूरत अधिक पडऩे वाली है। जापान में औसत उम्र 84 बरस है। इनमें भी महिलाओं की औसत उम्र 87 बरस है। जाहिर है कि इतनी अधिक उम्र तक लोगों को कई किस्म के कामगारों की जरूरत पड़ेगी, जिसमें जाहिर तौर पर नर्सों की जरूरत भी अधिक रहेगी।
इसके साथ-साथ भारत की एक खबर को भी देखने की जरूरत है जिसे देश की एक उपलब्धि माना जा रहा है। दुनिया में गरीबी का सर्वे करने वाली एक संस्था का वर्ल्ड पावर्टी क्लॉक के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल भरत में 4.6 करोड़ लोग अत्यधिक गरीब थे, और अब उसमें से घटकर कुल 3.4 करोड़ लोग इस वर्ग में रह गए हैं, जिसका मतलब यह है कि यह आबादी रोजाना 159 रूपए से कम कमा रही है। यह भारत के लिए एक कामयाबी की बात हो सकती है, लेकिन दूसरी तरफ यह एक बड़ी संभावना की बात भी है। जब देश की आबादी का एक हिस्सा इतनी कम कमाई वाला है, तो जाहिर है कि आबादी का और दूसरा हिस्सा भी बहुत अधिक कमाई वाला नहीं होगा। ऐसे में इस देश के कामगारों का बेहतर प्रशिक्षण करके उन्हें दुनिया के उन देशों में काम के लायक बनाया जा सकता है जहां पर स्थानीय कामगारों की कमी है। भारत और कनाडा के बीच पिछले कुछ अरसे से चले आ रहे तनाव को अगर छोड़ दें, तो हर बरस भारत से लाखों कामगार कनाडा में काम पा रहे थे, जा रहे थे, और वहां बस भी रहे थे। लाखों छात्र हर बरस कनाडा पढऩे जाते थे क्योंकि पढ़ाई के बाद वहां उन्हें काम मिलने की गुंजाइश अधिक थी।
ऐसे बहुत से देश हैं। खाड़ी के देशों में भारत से तकनीकी कामों के लिए लाखों लोग बसे हुए हैं, और केरल के लोगों की बड़ी संख्या इनमें है। पंजाब के लोग कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और ब्रिटेन से अपने परिवारों और प्रदेशों को खासी कमाई भेजते हैं। आन्ध्र-तेलंगाना के अधिक पढ़े-लिखे लोग अमरीका जैसे देश में सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के काम में बड़ी संख्या में लगे हुए हैं। भारत के आईआईटी से निकले हुए अधिकतर लोगों को विकसित देशों में काम मिल जाता है, या मिल सकता है, जिसे छोडक़र उनमें से कुछ देश में ही रहना पसंद करते हैं। दुनिया की बड़ी-बड़ी टेक्नॉलॉजी कंपनियों में भारतवंशी मुखिया हैं, और बाकी जगहों पर तो वे हैं ही।
दुनिया की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए भारत जैसे बहुत से देश ऐसे हो सकते हैं जो कि तरह-तरह के हुनर के प्रशिक्षण देकर, अलग-अलग देशों की भाषाएं सिखाकर, और वहां की संस्कृति की जानकारी देकर लोगों को उन देशों के लिए तैयार कर सकते हैं। आज भी काम की तलाश में जंग में फंसे हुए यूक्रेन में हिन्दुस्तानी जाकर काम करने लगे हैं, और उन्हें जो बताया गया था, उसके खिलाफ उन्हें रूस के जंग के मोर्चे पर लगा दिया गया है। दूसरी तरफ पिछले कुछ महीनों से भारत में यह बात भी एक विवाद बनी हुई है कि इजराइल में खतरों के बीच भी निर्माण मजदूरी के काम में कामगारों की बहुत जरूरत है, और उसके लिए हिन्दुस्तान में सरकार के स्तर पर लोगों की भर्ती की जा रही है। आमतौर पर जब किसी देश में जंग या टकराव का खतरा रहता है, तो वहां पर से देश अपने-अपने लोगों को निकालने का काम करते हैं, भारत में भी कई जगहों से ऐसा किया है, लेकिन आज इजराइल के कामगार फौज में शामिल होकर फिलीस्तीनियों को मारने में जुटे हैं, और ऐसे देश के लिए भारत अपने मजदूरों को भर्ती करके वहां भेज रहा है। खैर, इस विरोधाभास पर हम आज की बाकी बातचीत को झोंकना नहीं चाहते, क्योंकि एक व्यापक मुद्दा चर्चा मांगता है।
भारत को अपने घरेलू कामगार बाजार से परे देखना चाहिए। इस देश में कॉलेज पढक़र निकले बेरोजगारों की फौज को बढ़ाना बंद करना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे स्कूल की पढ़ाई के बीच से ही लोगों को छांटकर प्रशिक्षण की तरफ मोड़ें। जो किताबी पढ़ाई में बहुत अच्छे नहीं हैं, उन्हें मिडिल स्कूल तक की पढ़ाई के बाद, हुनर वाली ट्रेनिंग में डालना चाहिए, ताकि वे बालिग होने तक अच्छी तरह सीखकर कमाऊ हो सकें। फिर सरकारों को यह भी देखना चाहिए कि अगले दस-बीस बरस दुनिया में कौन-कौन से हुनर की अधिक जरूरत रहनी है। बूढ़ी होती विदेशी आबादी की निजी देखरेख की जरूरत बढ़ती चली जानी है, और उस तरह के कामगार जो देश-प्रदेश तैयार करेंगे, वे अपने लोगों को विकसित देशों में भेज भी सकेंगे, और जैसा कि आमतौर पर होता है ऐसे लोग अपनी अगली पीढिय़ों को वहां और आगे बढ़ा सकेंगे। भारत में आज मां-बाप और सरकार के पैसों से पूरी तरह फिजूल की पढ़ाई करके लोग बेरोजगारों में अपनी गिनती बढ़ाते हैं, और यह सिलसिला पूरी तरह खत्म होना चाहिए। इस देश को पूरी दुनिया की संभावनाओं को देखते हुए अपनी अगली पीढ़ी को तैयार करना चाहिए।
दुनिया के अलग-अलग देशों की संपन्नता, उनकी गिरती आबादी के आंकड़े, वहां पर बूढ़ी होती आबादी का अनुमान, वहां की जरूरतों का अंदाज, यह सब मुश्किल नहीं है। भारत सरकार को बाकी देशों के साथ बात करके आपसी संभावनाओं पर काम करना चाहिए। देश के बाहर निकले हुए लोग आमतौर पर देश में अपनी बराबरी के रह गए लोगों के मुकाबले आगे बढ़ते हैं। इस हकीकत को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार, और अलग-अलग प्रदेशों को अपनी नौजवान पीढ़ी पर जमकर मेहनत करनी चाहिए, इससे देश के भीतर भी रोजगार देने का दबाव घटेगा।
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