संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : यह जूता नमाजी के पिछवाड़े नहीं, लोकतंत्र के मुंह पर है
09-Mar-2024 3:51 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : यह जूता नमाजी के पिछवाड़े नहीं, लोकतंत्र के मुंह पर है

फोटो : सोशल मीडिया

दिल्ली में कल एक सडक़ पर नमाज पढ़ रहे नमाजियों को जूतों से धक्के मारकर हटाने वाले एक पुलिस अफसर को निलंबित तो कर दिया गया है, लेकिन इसका वीडियो एक अफसर और एक निलंबन से अधिक दहशत पैदा कर रहा है। यह दहशत सिर्फ गरीब नमाजियों के मन में नहीं है, जिनके लिए आसपास कोई मस्जिद नहीं है, और जो कुछ मिनटों की नमाज पढऩे के लिए बहुत से शहरों में मैदान, बगीचे, सडक़ की कुछ चौड़ाई, और रेलवे प्लेटफॉर्म जैसी जगहों का इस्तेमाल करते हैं। जाहिर तौर पर यह सार्वजनिक जगह पर कुछ मिनटों की असुविधा हो सकती है, लेकिन एक लोकतंत्र में क्या किसी एक चुनिंदा धर्म के लिए इस तरह से ऐसी सजा तय की जा सकती है? दिल्ली में इस घटना के दौरान के जो वीडियो सामने आए हैं वे बताते हैं कि सडक़ के किनारे में पढ़ी जा रही नमाज से बाकी सडक़ पर आवाजाही में रूकावट नहीं आ रही थी। खबरें बताती हैं कि वहां की मस्जिद पूरी भर गई थी इसलिए कुछ लोग बाहर बैठे थे। 

खैर, हम बहुत बारीकी वजहों पर जाना नहीं चाहते, और देश में आज मोटेतौर पर जो माहौल बना है, उस पर बात करना चाहते हैं। इस वीडियो के पहले भी कई लोगों ने हैदराबाद के एक भाजपा विधायक के वीडियो देखे होंगे जिनमें वह भारी भीड़ के बीच एक मंच के ऊपर से माईक पर धर्मों के भेदभाव की बात करते हुए मां-बहन की गालियां बकता है, और बकते ही चले जाता है। इसे आज देश में आक्रामक हिन्दुत्व का ध्वजवाहक माना जा रहा है। इसी तरह का माहौल बहुत से प्रदेशों में बना हुआ है, और किसी भी किस्म के छोटे-बड़े जुर्म में शामिल होने के आरोप में जिन लोगों के मकान, दुकान बुलडोजर से गिराए जा रहे हैं, वे तकरीबन तमाम ही मुस्लिम हैं। बहुत से ऐसे मामले हैं जिनमें आतंक के जुर्म में बंद मुस्लिम 20-25 बरस बाद अदालत से बरी हो रहे हैं, तब तक उनकी खुद की, और परिवार की जिंदगी तकरीबन खत्म हो चुकी रहती है। 

अब अगर सडक़ किनारे नमाज पढ़ते लोगों को पुलिस बूट से मारा जाना है, तो फिर इस धर्मनिरपेक्ष देश में बाकी धर्मों के साथ जो सुलूक होता है, उसे भी समझने की जरूरत है। मुस्लिमों की ऐसी नमाज तो शायद हफ्ते में एक दिन कुछ मिनटों की रहती है, और उससे हो सकता है कहीं-कहीं मामूली सी दिक्कत भी होती हो। लेकिन दूसरे धर्मों के धार्मिक जुलूस जिस तरह कई-कई दिनों तक निकलते हैं, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के शोरगुल-विरोधी फैसलों के खिलाफ पूरी दबंगई से निकलते हैं, क्या उनसे लोगों को असुविधा नहीं होती? प्रतिमाओं को स्थापित करने ले जाने, और फिर उन्हें विसर्जन के लिए ले जाने का सिलसिला हर शहर में कई दिन चलता है, और वहां पर लाउडस्पीकर का हाल यह रहता है कि आसपास लोगों की मौत भी दर्ज हो चुकी है। मस्जिदों पर हर दिन कुछ बार कुछ-कुछ मिनट के लिए बजने वाले लाउडस्पीकर को उतरवाने की बहुत बात होती है, लेकिन मंदिरों पर लगे लाउडस्पीकर तो कुछ-कुछ मिनटों के लिए नहीं बजते, वे तो घंटों तक बजते हैं, और त्यौहारों के वक्त तो वे लगातार कई दिन बज सकते हैं, बजते हैं। दूसरे धर्मों के जुलूस और लाउडस्पीकर भी इसी तरह रहते हैं, कई धर्मों के लोग हथियार लिए हुए सडक़ों पर चलते हैं, और ऐसे तमाम धार्मिक जुलूसों से बंद सडक़ों पर पुलिस ही जुलूस की हिफाजत करते चलती है। बीते बरसों में लगातार यह बात सामने आई है कि किस तरह कांवर यात्राओं के दौरान सडक़ों पर अराजकता और हिंसा होती है, किस तरह खानपान के ठेलों को बंद करवाया जाता है, ट्रैफिक तो मनचाहे तरीके से रोक ही दिया जाता है। लेकिन उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में राज्य के पुलिस प्रमुख हेलीकॉप्टर से जाकर कांवरियों पर फूल बरसाते हैं। और इधर मुस्लिमों की नमाज के दौरान नमाजियों के पिछवाड़े पर बूट पहनी पुलिस लात मार रही है। 

देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को खत्म करने के अलावा जगह-जगह पुलिस एक दूसरा काम भी कर रही है, वह नागरिकों के बुनियादी अधिकार भी अपने बूट से कुचल रही है, और लोकतंत्र को भी जूते तले कुचल रही है। कल का यह जूता एक पुलिसवाले का जूता नहीं था, वह सत्ता की सोच का एक सुबूत था, और वह किसी नमाजी के पिछवाड़े पर नहीं मारा गया था, वह लोकतंत्र के मुंह पर मारा गया था, और उसी दिल्ली में बैठे हुए सुप्रीम कोर्ट का मुंह चिढ़ाते हुए उसकी मौन-औकात बताते हुए मारा गया था। यह सिलसिला भयानक है। वीडियो तो आधे मिनट का है, लेकिन यह पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान को विश्वगुरू के किसी भी संभावित, काल्पनिक, और स्वघोषित तमगे से दूर धकेल देता है, और यह बताता है कि ऐसी हरकतों के चलते हुए विश्वगुरू रहने और बनने का दंभ अपने मुंह एक पाखंडी दावा करने से अधिक कुछ नहीं है। दिल्ली की पुलिस केन्द्र सरकार के मातहत काम करती है, और हम उम्मीद करते थे कि महज पुलिस अफसर से ऊपर के कोई अधिक महत्वपूर्ण लोग इस पर कुछ बोलेंगे। आज पूरे देश में जिस तरह का माहौल मुस्लिमों और बाकी गैरहिन्दुओं के खिलाफ बना हुआ है, वह इस देश की हर किस्म की संभावनाओं को भी प्रभावित करता है। देश की गैरबहुसंख्यक आबादी को कुचलकर, उसके पिछवाड़े बूट मारकर देश का भला नहीं किया जा सकता। जब आबादी के एक हिस्से को नीचा दिखाकर ही बड़े हिस्से को गर्व का अहसास कराया जाए, तो फिर उसे जिंदगी में असली गर्व के लायक कुछ करने की जरूरत ही नहीं रहेगी। जब गैरहिन्दुओं का अपमान ही हिन्दू अपना सम्मान मान लेंगे, तो फिर वे जिंदगी में असल सम्मान पाने लायक काम क्यों करेंगे?
 
देश में धार्मिक नफरत, साम्प्रदायिक हिंसा, जातिवाद, धर्मान्धता जैसी बातें देश के लोगों में वैज्ञानिक नजरिए को पूरी तरह खत्म कर रही है, और इसके साथ-साथ ही खत्म हो रही हैं देश की संभावनाएं।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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