संपादकीय
बिहार में कल भूतपूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव के एक सहयोगी पर ईडी का छापा पड़ा, और उसके घर से दो करोड़ नगदी के अलावा बड़ी जायदाद के कागज मिलने का दावा किया गया है, उसे रेत कारोबार से जुड़ा बताया गया है, और गिरफ्तार किया गया। सुभाष यादव नाम का यह आदमी 2019 में आरजेडी की टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ चुका है, उसके खिलाफ पहले भी रेत के अवैध कारोबार के छापे पड़ चुके हैं, और मामले दर्ज हैं। इस बार फिर इसके लोकसभा चुनाव लडऩे की तैयारी बताई जा रही थी। शायद इसी मामले को लेकर पटना में कल केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि जमीन और रेत माफिया को उल्टा लटकाकर हम सीधा कर देंगे। रेत को लेकर देश के बहुत से प्रदेशों में माफिया-कारोबार चलता है। कई जगह सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को रेत माफिया अपनी गाडिय़ों से कुचलकर मार डालता है। और छत्तीसगढ़ में भी रेत माफिया की ताकत इतनी है कि गैरकानूनी तरीके से बड़ी-बड़ी मशीनें लगाकर नदियों से अवैध रेत खुदाई की जाती है, और जहां पर रेत खदान नहीं मिली है, वहां पर खुदाई और अधिक की जाती है। आज ही रेत ढोने वाले ट्रांसपोर्टरों के संघ ने कहा है कि प्रदेश में 222 रेत खदानों की नीलामी हुई है लेकिन अब तक 20 खदानें भी शुरू नहीं हुई हैं। उनका कहना है कि खदानों से ही चार-पांच गुना दाम पर रेत दी जा रही है, इसलिए बाजार में रेत महंगी है। यह भी याद रखने की जरूरत है कि पिछले दिनों विधानसभा में सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक धर्मजीत सिंह ने दावे के साथ यह कहा था कि प्रदेश की नदियों में दो सौ से अधिक पोकलैंड मशीनें रेत की अवैध खुदाई कर रही हैं। उन्होंने कहा कि जांच में अगर मशीनें इससे कम मिले, तो वे विधानसभा से इस्तीफा दे देंगे। सत्तारूढ़ विधायक की यह छोटी चुनौती नहीं थी।
दरअसल पिछले पांच बरस से छत्तीसगढ़ में रेत का जो अवैध कारोबार चल रहा है, उसमें नेता, अफसर, और ठेकेदार का एक माफिया बना डाला है। किसी भी जिले में अफसरों को लाखों रूपए की रिश्वत दिए बिना रेत खदान की लीज पर दस्तखत नहीं होते। इसके अलावा हर जगह लॉटरी से खदान पाने वाले लोगों पर प्रशासन की तरफ से यह दबाव डाला गया कि वे किसी सत्तारूढ़ नेता को अघोषित भागीदार बनाएं तभी वे खदान चला पाएंगे। यह दादागिरी पूरे प्रदेश में पूरे पांच बरस चली, और इन्हीं सब वजहों से रेत के दाम न सिर्फ आसमान पर रहे, बल्कि छत्तीसगढ़ से पड़ोस के प्रदेशों में हर दिन हजारों ट्रक रेत की तस्करी भी होती रही। पूरे प्रदेश में खनिज विभाग एक तरफ तो कोयला-रंगदारी वसूलने में लगे रहा, जिसकी वजह से आज ढेर सारे जिला खनिज अधिकारी जेल में पड़े हैं, और जब किसी अफसर को एक जुर्म में शामिल किया जाता है, तो फिर उन्हें बाकी किसी जुर्म से भी परहेज नहीं रह जाता। इस तरह कोयला, रेत, आयरन ओर, सभी तरह की अवैध उगाही, और अवैध कारोबार में जिला प्रशासन का औजार बना हुआ खनिज विभाग लगे रहा। फिर सत्ता के बड़े-बड़े ताकतवर लोगों को अघोषित भागीदार बनाने के लिए कलेक्टरों ने गुंडों की तरह काम किया। नतीजा यह हुआ कि आज भाजपा की सरकार आने के बाद भी पिछले बरसों में अवैध कमाई से भारी बाहुबल पाने वाले रेत माफिया का अवैध कारोबार जारी है, और लोगों को रेत महंगी मिल रही है।
जब किसी कारोबार में लोगों को बरसों तक अंधाधुंध कमाई होती है, तो वे इतना बाहुबल बना लेते हैं कि वे नई सरकार की नई नीति, या नए नियम-कायदों को नाकामयाब साबित करने के लिए कारोबार को ठप्प करने की हरकत भी करते हैं, ताकि लोगों के बीच बेचैनी फैले, और सरकार उन्हें पुराने ढर्रे पर जुर्म करने की छूट दे। ऐसे माफिया की कमर एक बार तोडऩा जरूरी है। दिक्कत यह होती है कि अवैध कमाई का ढांचा बनाने वाले अधिकारी माफिया-कारोबारियों के साथ मिलकर नए सत्तारूढ़ नेताओं को रिझाने की कोशिश में लग जाते हैं, और कार्रवाई दिखावे के लिए शुरू होती है, और फिर थम जाती है।
हम रेत माफिया के तौर-तरीकों से जनता की खदानों की लूट से परे भी इस मुद्दे पर बात करना चाहते हैं। नदियों से रेत की अंधाधुंध और अवैध खुदाई जब गैरकानूनी मशीनों को लगाकर की जाती है, तो नदियों का और पर्यावरण का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। जहां से सहूलियत अधिक रहती है, वहां पर खाई बना दी जाती है, और रेतघाट के ठेकेदारों का पर्यावरण से कुछ लेना-देना नहीं रहता। जब कलेक्टर की कुर्सियों पर बैठे लोग हर ट्रक पीछे अपना हिस्सा बांध लें, और जब मंत्री या विधायक धंधे में हिस्सेदार हो जाएं, तो फिर कार्रवाई कौन कर सकते हैं? पिछले पूरे पांच बरस इसी अंदाज में काम चला, और अब नई सरकार को शायद कार्रवाई करने में दिक्कत भी हो रही है, क्योंकि सारा सरकारी अमला बुरी तरह भ्रष्ट हो चुका है। अगर नदियों से अंधाधुंध रेत उगाही चलती रही, तो नदियों के बहाव में फर्क पड़ेगा, हो सकता है कि उनमें गाद भरती जाए, और जैसा कि कुछ अरसा पहले बिलासपुर की अरपा नदी में सामने आया है, अवैध खुदाई की वजह से बने गड्ढों में डूबकर बच्चे मारे भी गए।
हमारी सलाह है कि सरकार इस पूरे अवैध कारोबार को पूरी कड़ाई से बंद करवाए, और जितनी गाडिय़ां जब्त हो रही हैं, उनको राजसात किया जाना चाहिए, या फिर उनसे अधिकतम संभव जुर्माना वसूलना चाहिए। रेत खदानों को मुरम या पत्थर खदानों के मुकाबले अधिक नाजुक मामला मानना चाहिए क्योंकि वह नदियों से जुड़ा हुआ मुद्दा है। सरकार की अगर इच्छाशक्ति होगी, तो इस माफिया-कारोबार को बंद करवाना अधिक मुश्किल बात नहीं है। पिछली कांग्रेस सरकार अगर चुनाव हारी थी, तो उसके पीछे जनता को रेत के अंधाधुंध दाम देना भी एक छोटी वजह रही होगी, और ऐसी वजह हमेशा ही चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को नुकसान पहुंचाएगी। अभी तुरंत ही लोकसभा के चुनाव सामने हैं, और उसके कुछ महीनों बाद पंचायत और म्युनिसिपल के चुनाव रहेंगे जिनमें स्थानीय मुद्दे सबसे अधिक हावी रहेंगे। शराब और रेत, पटवारी और तहसील, ये आम जनता को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले होते हैं।