संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के खतरे और संभावनाएं अपार
12-Mar-2024 4:11 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के खतरे और संभावनाएं अपार

ब्रिटेन के एक प्रतिष्ठित अखबार, गॉर्डियन, की एक खोजी रिपोर्ट में एक ऐसे एआई एप्लीकेशन को बनाने वाले को तलाशा गया है जिससे कि लोग स्कूली लड़कियों की आम तस्वीरों को लेकर ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से उनको नग्न तस्वीरों में बदल दे रहे हैं। इसकी वजह से स्पेन की कई स्कूलों में तबाही सरीखी आ गई है, और अब वहां की पुलिस भी इस उलझन में है कि ऐसी तस्वीरें गढऩे वाले सहपाठी लडक़ों पर कितनी कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए। ये तस्वीरें एकदम असली दिखती हैं, और पल भर को भी यह नहीं लग सकता कि उन्हें किसी तकनीक से गढ़ा गया है। जब इस एप्लीकेशन को बनाने वाले को तलाश कर उससे बात की गई, तो उसने बदली हुई आवाज में दिए गए जवाबों में यह कहा कि उसने इसे इसलिए बनाया है कि लोग अपने बदन के साथ चैन से रह सकें। अब हालत यह है कि ये तस्वीरें पोर्न वेबसाइटों पर पहुंच गई हैं, और इनके असली दिखने की वजह से वे लोग बहुत मानसिक यातना से गुजर रहे हैं जिनके चेहरे इन पर लगे हैं। अब डीपफेक कही जाने वाली एक तकनीक के इस्तेमाल से हर दिन ऐसी तस्वीरें और ऐसे वीडियो गढऩा आसान होते चले जा रहा है, और इनसे पैदा होने वाली मानसिक यातना और सामाजिक प्रताडऩा से हो सकता है कि बहुत से लोग अपनी जिंदगी देने लगें। क्लोथ्सऑफ नाम के इस एआई एप्लीकेशन को बनाने वाली कंपनी की जड़ें बेलारूस, रूस से होते हुए योरप के कई देशों से गुजरकर लंदन में गॉर्डियन में ऑफिस के पास में ही निकली। इस वेबसाइट पर लोगों को न्यौता दिया जाता है कि वे एआई का इस्तेमाल करके किसी के भी कपड़े उतार सकते हैं, और हजार रूपए से कम की फीस में वे ऐसी 25 तस्वीरें बना सकती हैं। एक भाई-बहन ने मिलकर यह एप्लीकेशन बनाया है, और वे अपनी पहचान छुपाने के साथ-साथ मीडिया की नजरों से दूर-दूर भी चल रहे हैं।

जब योरप जैसी उदार जीवन संस्कृति के देशों में ऐसे ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस औजार से इस तरह की तबाही आ सकती है तो बाकी देशों के बारे में अंदाज लगाया जा सकता है जहां पर लोग अधिक दकियानूसी या तंगदिल हैं। अभी तक हम रिवेंज पोर्न नाम के ऐसे नग्न या अश्लील वीडियो और फोटो देखते हैं जो कि भूतपूर्व प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे के खिलाफ सोशल मीडिया या पोर्न वेबसाइट पर बदला निकालने के लिए पोस्ट करते हैं। हम अपने इस कॉलम में लोगों को यह सावधानी भी सुझाते आए हैं कि किसी अच्छे वक्त में भी लोगों को ऐसे फोटो-वीडियो से बचना चाहिए। लेकिन अब अगर एकदम असली जैसी दिखने वाले फोटो और वीडियो गढऩा आसान हो गया है तो किसी को भी बदनाम करने के लिए इंटरनेट पर मौजूद ऐसी सस्ती तकनीक का कैसा-कैसा बेजा इस्तेमाल नहीं हो सकता? फिर यह भी है कि पोर्नो से परे भी ऐसी तकनीक के हजार किस्म के दूसरे इस्तेमाल हैं जो कि लोकतंत्र और चुनाव को प्रभावित करने के लिए शुरू हो चुके हैं। अभी अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार शुरू भी नहीं हुआ है, और अमरीका के काले लोग ट्रंप के पक्ष में बातें कर रहे हैं, उनका समर्थन कर रहे हैं, ऐसे फोटो और वीडियो सामने आ गए हैं। लोग यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि इससे कैसे निपटा जा सकेगा? 

एआई के सबसे बड़े खतरों में से एक यह भी है कि इससे जनमत की पहचान करके, अलग-अलग लोगों के राजनीतिक या सामाजिक, साम्प्रदायिक या आर्थिक रूझान का हिसाब लगाकर उन्हें प्रभावित करने के लिए अलग-अलग किस्म से कोशिश की जा सकती है। इसे एआई का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है कि यह जनमत को प्रभावित कर सकता है, और उस तरह से यह चुनाव और लोकतंत्र पर कुछ चुनिंदा ताकतों को ला सकता है, वहां बनाए रख सकता है। दुनिया के बहुत से कम्प्यूटर-संबंधित कारोबारी भी ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के आगे के विकास पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि यह विकसित होते-होते कब और कितना विनाशकारी हो जाएगा, कब इंसानों से बेकाबू हो जाएगा, इसका अंदाज लगाना मुमकिन नहीं है। कई महीने हो चुके हैं जब एक टेक्नॉलॉजी-पत्रकार ने एक ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित चैटबॉट के बारे में लिखा था कि उसने इस पत्रकार को बातें करते-करते आत्महत्या के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया था। और यह तो महज शुरूआत थी, बहुत से लोग आज असल जिंदगी के संबंधों से डरने लगे हैं, और ऐसे लोग ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर आधारित कृत्रिम किरदारों से भावनात्मक संबंध बनाना अधिक आसान और महफूज मान सकते हैं। ऐसे किरदार आगे चलकर लोगों की जिंदगी में इंसानी संबंधों का विकल्प बन सकते हैं, और जिंदा इंसानों की सोच बदल सकते हैं। यह पूरा सिलसिला इंसानों के सामाजिक ताने-बाने को एक बिल्कुल ही नई शक्ल दे सकता है, और आज भी बहुत से भविष्य-विज्ञानी इस बात का अंदाज लगा रहे हैं कि अगले 25-30 बरस में इंसान रोबो से शादी कर सकते हैं। 

आज किसी चेहरे के साथ बाकी बदन की एक तस्वीर गढ़ देने वाला ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस कुछ बरस के भीतर ऐसे बदनों के थ्रीडी मॉडल बनाने लगेगा, और आज भी काम कर रहे थ्रीडी प्रिंटर उस दिन असली से लगने वाले बदन तैयार करने लगेंगे, और ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस उन बदनों के भीतर दिल-दिमाग और भावनाएं भर देंगे, और इंसानों को वे दूसरे इंसानों के बजाय अधिक आसान और सहूलियत वाले जीवनसाथी लगने लगेंगे। एक तरफ तो ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से दुनिया भर में आतंकी हमले, साइबर क्राइम, और जनमत प्रभावित करने के खतरे दिख ही रहे हैं, और दुनिया के कई देशों में बुरी तरह घटती हुई आबादी में हो सकता है कि कृत्रिम जीवनसाथी और गिरावट ला दें। इसलिए ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की संभावनाओं और इसके खतरों पर नजर रखना जरूरी है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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