संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : भारत-पाक की सरकारें दुश्मन हैं, जनता दोस्त, फंसे लोगों को राहत मिले
17-Mar-2024 4:29 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : भारत-पाक की सरकारें दुश्मन हैं, जनता दोस्त, फंसे लोगों को राहत मिले

पाकिस्तान की एक खबर है कि वहां एक भारतीय नागरिक 2013 में गिरफ्तार किया गया, और आज से सात बरस पहले सिंध के हाईकोर्ट ने सरकार को हुक्म दिया कि इस आदमी को हिन्दुस्तान को लौटा दिया जाए, लेकिन सरकार अब तक यह कर नहीं पाई है। हाईकोर्ट ने सरकारी अफसरों पर बड़ी नाराजगी जाहिर की है, और अगली पेशी पर सरकार के किसी बड़े अफसर को जवाब देने को कहा है। हम इस मामले के अधिक खुलासे पर जाना नहीं चाहते, लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच इस तरह के बहुत से तनावों को लेकर चर्चा जरूर करना चाहते हैं। दोनों देशों के बीच एक-दूसरे के मछुवारे कई बार पकड़ाते हैं, और कभी उस वक्त के अफसरों के मन में हमदर्दी रहती है तो वे छोड़ दिए जाते हैं, या फिर उन्हें दूसरे देश की जेल में रखा जाता है जहां उन पर टोबा टेक सिंह सरीखी कहानी लिखने के लिए आज कोई मंटो भी नहीं बचे हैं। 

भारत और पाकिस्तान की सरकारें कई किस्म की ठोस वजहों से, और कई किस्म की काल्पनिक या गढ़ी हुई वजहों से भी एक-दूसरे के खिलाफ दुश्मनी के तेवर अख्तियार किए रहती हैं। इनको अपनी खुद की जमीन पर अपने लोगों को तसल्ली देने के लिए भी पड़ोसी देश को दुश्मन करार देना माकूल बैठता है। न सिर्फ चुनाव के वक्त, बल्कि किसी भी तरह की घरेलू परेशानी की तरफ से ध्यान बंटाने के लिए इन दोनों देशों में एक-दूसरे के खिलाफ फतवे जारी किए जाते हैं, और सच्ची या झूठी घटनाओं का इस्तेमाल करके लोगों का ध्यान जिंदगी की असल दिक्कतों की तरफ से हटाया जाता है। ऐसे तनावों के चलते दोनों देशों के आम लोगों की दर्दभरी कहानियों का कोई समाधान नहीं निकल पाता। दशकों से, या पीढिय़ों से बिछुड़े हुए परिवारों को मिलाना भी नहीं हो पाता, जेलों में बंद लोगों की खबर भी ठीक से नहीं मिल पाती। 

1947 में एक से दो हुए इन देशों के बीच जब दीवार उठी, तो जरूरत से काफी अधिक ऊंची उठी। लेकिन दोनों तरफ लोगों के बीच रिश्तेदारियां बहुत थीं, कारोबार और जमीन-जायदाद सरहद के दूसरे तरफ भी थे, और एक सरहद ने देशों को तो बांट दिया, समाज और परिवार को यह सरहद उस तरह से नहीं बांट पाई। आज भी हर हफ्ते या पखवाड़े में भारत-पाकिस्तान के बीच करतारपुर गलियारा नाम की जगह से ऐसी खबरें आती हैं कि दोनों तरफ से वहां पहुंचे भाई-भाई या भाई-बहन किस तरह आधी या पौन सदी बाद वहां पर मिल रहे हैं। ऐसे जर्जर हो चुके बुजुर्गों के रोते हुए वीडियो दिल हिला देते हैं। लेकिन सरकारों के बीच तल्खी इतनी है कि यह गलियारा भी किस तरह दशकों की मांग के बाद बन पाया है, इसे भी दोनों तरफ के सिक्ख ही जानते हैं। पाकिस्तान की जमीन पर इस प्रमुख गुरुद्वारे तक जाने के लिए हिन्दुस्तानी सिक्खों को भी वीजा की जरूरत नहीं पड़ती, और वहां पर दोनों देशों के लोग मिल भी सकते हैं। ऐसे में ही बिखरे हुए, या बिछुड़े हुए परिवार यहां पर एकजुट होते हैं। 

भारत और पाकिस्तान दोनों जगह कुछ संगठन और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता यह काम भी कर रहे हैं कि सरहद के पार गलती से दाखिल हो चुके लोगों को वापिस भेजने का कानूनी इंतजाम किया जाए, या एक-दूसरे की जेलों में बंद लोगों को कानूनी मदद मुहैया कराई जाए। यह काम अलोकप्रिय है क्योंकि अपनी-अपनी जमीन पर लोगों के मन में पड़ोसियों के खिलाफ नफरत बड़ी कोशिश करके ठूंसी गई है, और वैसे पड़ोसी देश के लोगों की कोई भी मदद अपने देश के खिलाफ एक भावना की तरह कही जाती है। भारत और पाकिस्तान को इस बात से उबरना चाहिए। सरकार और फौज चाहे जिन मोर्चों पर दूसरे देश की सरकार और फौज से लड़ती रहें, दोनों देशों के नागरिकों को अधिक आजादी से मिलने-जुलने देना चाहिए, दोनों तरफ खेल, कला, और फिल्म का लेन-देन अधिक होना चाहिए। राजधानियों में बैठे हुए बड़े-बड़े नेता और फौजी आला अफसर जिन बातों को नहीं सुलझा पा रहे हैं, या नहीं सुलझाना चाहते हैं, उन बातों को समाज के दूसरे तबके बेहतर तरीके से सुलझा सकते हैं, क्योंकि उन्हें हथियारों की खरीदी में दलाली नहीं लेनी है। राजधानियां दुश्मनी को फायदे का पाती हैं, क्योंकि दुश्मनी निभाने के लिए हथियारों की बड़ी खरीदी होती है, जो कि सत्ता के फायदे की रहती है। 

भारत और पाकिस्तान को कैदियों और नागरिकों की अदला-बदली का एक ऐसा आयोग बनाना चाहिए जिसमें दोनों देशों के अधिकारसंपन्न लोग रहें, और वे बैठकर बरसों से कैद या फंसे हुए लोगों के मामले सुलझाएं। हिन्दुस्तान ने अभी-अभी नागरिकता संशोधन कानून लागू किया है जिसमें पड़ोस के तीन देशों के गैरमुस्लिमों को उनके चाहने पर भारत की नागरिकता देने की बात कही है। तब तक जब तक कि भारत का सुप्रीम कोर्ट इस कानून को गैरकानूनी करार नहीं देता, तब तक यह लागू तो है ही, और चाहे यह कानून मुस्लिमों के मामलों में भेदभाव करता है, इसके तहत बाकी धर्मों के जो लोग आते हैं, उनका भला तो शुरू होना चाहिए। चाहे धार्मिक भेदभाव और प्रताडऩा की वजह से, या किसी और वजह से, जिस वजह से भी लोग दूसरे देशों में फंसे हुए हैं, उन्हें अपने देश, या मनचाहे देश जाने की आजादी मिलनी चाहिए। और जब तक कोई बिना चूक का कानून नहीं बन जाता, तब तक भी जो भी संभावनाएं जिस देश के कानून में हैं, उनके तहत आम लोगों को राहत मिलनी चाहिए। भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सरकारों के बीच ही खराब हैं, आम जनता के बीच नहीं। इसलिए आम जनता को राहत देने का जो-जो काम हो सकता है, वह करना चाहिए, और इसकी शुरूआत जेलों में बंद कैदियों से करनी चाहिए। 

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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