संपादकीय
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में कल तीन बरस की एक बच्ची से उसके मकान मालिक के 14-15 बरस के नाबालिग बेटे ने घर के बाथरूम में ही बलात्कार किया, और इसकी खबर लगने पर जब बच्ची के परिवार ने जाकर बाथरूम का दरवाजा पीटा तो उसने भीतर से दरवाजा खोला नहीं। दरवाजा तोडऩे पर यह बच्ची खून से लथपथ मिली, बलात्कार के अलावा उसके बदन पर काटने के निशान भी मिले, बच्ची को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया जहां उसे मृत पाया गया। मकान मालिक का नाबालिग बेटा फरार है, और बिलासपुर शहर इस घटना को लेकर जाहिर है कि बहुत विचलित है। अपने ही घर के आसपास खेल रही तीन साल की बच्ची इस कदर असुरक्षित हो सकती है, यह किसने सोचा था? और जिस अंदाज में यह पूरी घटना हुई है, उसमें कौन अड़ोस-पड़ोस पर भरोसा कर सकते हैं?
हिन्दुस्तानी समाज में बलात्कार के अधिकतर मामलों में लडक़ी या महिला को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। जिस देश में बड़े-बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे हुए नेता ऐसे बयान देते हैं कि लड़कियों के जींस पहनने से, या शाम-रात अकेले बाहर घूमने से वे बलात्कार के खतरे में पड़ती हैं। कुछ सत्तारूढ़ नेता तो ऐसे भी रहे हैं जो कि नूडल्स खाने से लोग बलात्कारी हो रहे हैं जैसी बातें भी कह चुके हैं। मुलायम सिंह यादव जैसे देश के एक सबसे बड़े नेता रहे व्यक्ति बलात्कार की घटनाओं पर सार्वजनिक रूप से यह बोलते दर्ज हुए हैं कि लडक़े रहते हैं, उनसे गलतियां हो जाती हैं। सपा के ही आजम खां से लेकर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी तक बलात्कार की शिकायतों को राजनीतिक साजिश बताने में पल भर का वक्त नहीं लगाते। यह देश बलात्कार को लडक़ी या महिला की इज्जत लुटना बताता है, मानो उसने कोई जुर्म किया हो। बलात्कार के समाचारों में बड़े-बड़े अखबारों से लेकर समाचार चैनलों तक यही जुबान इस्तेमाल होती है, और समाज की पूरी भाषा और सोच बलात्कारी की मर्दानगी की हिफाजत करने में जुट जाती है। जब पूरे देश की सोच यही हो, तो मकान मालिक के नाबालिग बेटे ने अगर किराएदार की तीन साल की बेटी को बलात्कार के लायक मान लिया, तो इसके पीछे धीरे-धीरे पनपी उसकी सोच भी जिम्मेदार है कि लड़कियां और महिलाएं हिंसा झेलने की ही हकदार होती हैं।
अब इससे परे एक बिल्कुल अलग पहलू यह भी है कि मोबाइल फोन और इंटरनेट की मेहरबानी से अब देश के छोटे-छोटे बच्चों की पहुंच भी परले दर्जे के हिंसक पोर्नो वीडियो तक हो गई है, और ऐसे बहुत से वीडियो मौजूद हैं जो कि छोटे बच्चों के साथ सेक्स दिखाते हैं। ऐसे में इस नाबालिग लडक़े ने इनमें से किसी चीज से यह हौसला पाया हो, और यह हिंसा की हो, तो भी हमें हैरानी नहीं होगी। आज ही छत्तीसगढ़ के ही जशपुर इलाके की एक दूसरी खबर है कि वहां एक नाबालिग स्कूली छात्र ने एक दूसरे स्कूल की नाबालिग छात्रा से बलात्कार किया, और इस मामले का खुलासा तब हुआ जब छात्रा गर्भवती हो गई। अब पुलिस में रिपोर्ट हुई है, और बलात्कारी लडक़े को हिरासत में लिया गया है। ऐसी घटनाएं महज बच्चे कर रहे हों ऐसा भी नहीं है, पिछले कुछ दिनों में ही छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों के स्कूली शिक्षक और हेडमास्टर तक छात्राओं का यौन शोषण करते पकड़ाए हैं, उनमें से कुछ तो नाबालिग लड़कियों को मोबाइल पर पोर्नो वीडियो दिखाते थे, और उनके बदन का शोषण करते थे। दर्जन-दर्जन भर लड़कियों ने जब इसकी शिकायत की, तब जाकर कार्रवाई हुई है।
समाज की जब ऐसी नौबत है, और जब नाबालिग ही दूसरे नाबालिग से बलात्कार करने लगें, तो उसे रोक पाना पुलिस के लिए मुमकिन नहीं होता है। सरकार और समाज के लिए यही सबसे सहूलियत की बात होती है कि इन घटनाओं को पुलिस, अदालत, और जेल या सुधारगृह का मामला बताकर अपने हाथ झाड़ लिए जाएं। लेकिन ऐसी घटनाएं साबित करती हैं कि सरकार और समाज को लोगों को शिक्षित करने की अपनी जो जिम्मेदारी पूरी करनी थी, वह पूरी नहीं हो पाई है, पूरी होना तो दूर, उस तरफ कोई शुरूआत भी नहीं हो पाई है। स्कूली बच्चों को अच्छे और बुरे स्पर्श की समझ देना अभी भी इस समाज में पश्चिमी संस्कृति मान लिया जाएगा, मानो हिन्दुस्तान में बलात्कार अंग्रेज लेकर आए थे। हिन्दुस्तान की पौराणिक और धार्मिक कहानियां बलात्कार की घटनाओं से भरी हुई हैं, और अब तो 21वीं सदी का भारत सेक्स की चर्चा को भी, बदन की जानकारी को भी बच्चों को देने से जिस कदर मुंह चुराता है, उसका मतलब यही है कि वह ऐसे खतरे में पडऩे के लिए रोज और अधिक तैयार होता है। जब तक जिम्मेदारी से बचा जाएगा, तब तक यह सिलसिला जारी रहेगा, और बढ़ते भी चलेगा। छोटे और बड़े बच्चों को, समाज के बाकी लोगों को बचपन से ही महिलाओं और लड़कियों का सम्मान सिखाने की जरूरत है, और हर तबके को सेक्स के जुर्म से बचना सिखाने की भी। सरकार और समाज इन बातों को अनदेखा करके, मुंह मोडक़र इनसे नहीं बच सकते, इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से जागरूकता लाने की जरूरत है। पन्द्रह बरस के लडक़े को अगर तीन बरस की बच्ची से बलात्कार सूझ रहा है, और उसे एक लंबी सजा का भी डर नहीं है, पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाने का डर नहीं है, एक मासूम को मार डालने से भी जिसे हिचक नहीं है, तो उसे और उसकी पीढ़ी के दूसरे लोगों को मनोवैज्ञानिक परामर्श की जरूरत है।
हम पहले भी इस बात को लिख चुके हैं कि प्रदेश के विश्वविद्यालयों में मनोवैज्ञानिक परामर्श के कोर्स शुरू किए जाने चाहिए, और अगर चल रहे हैं तो उनकी सीटें लगातार बढ़ानी चाहिए, ताकि प्रदेश के हर कस्बे तक किसी न किसी ऐसे शिक्षित-प्रशिक्षित शिक्षक की तैनाती हो सके, और ऐसे लोग बच्चों को जुर्म करने से, या जुर्म का शिकार होने से सावधान रखते चलें। अगर सरकार गिरफ्तारी और सजा को ही पर्याप्त मान रही है, तो उससे ऐसे जुर्म कम नहीं होने हैं। इन्हें मनोवैज्ञानिक सलाह-मशविरे से ही घटाया जा सकता है। कहने के लिए राज्य सरकार में महिला और बाल विकास विभाग है, लेकिन उसके कामकाज में कहीं भी इनकी रक्षा करने की ऐसी योजना नहीं है जो कि इन्हें बलात्कार से बचा सके।
ऐसी घटनाएं अगर हमें सजग नहीं कर पाती हैं, अगर सरकारें इन्हें सजा दिलाकर उसे काफी मान लेती हैं, तो कोई भी बच्चे महफूज नहीं हैं।