संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धरती नाम के इस गोले पर लाशों के ढेर पर खुश देश!
21-Mar-2024 4:23 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : धरती नाम के इस गोले पर लाशों के ढेर पर खुश देश!

कीर्तिश भट्ट का कार्टून बीबीसी पर


कल अंतरराष्ट्रीय डे ऑफ हैप्पीनेस के मौके पर कुछ शोध संस्थानों की एक मिली हुई सालाना रिपोर्ट जारी की गई जिसमें अलग-अलग देशों में लोगों के खुश रहने, या न रहने के आंकड़े बताए गए हैं। यह इन देशों में किए गए सर्वे के आधार पर है जिनमें अलग-अलग तबकों के लोगों से बात की जाती है, और उन्हें 143 देशों के इस वैश्विक प्रसन्नता सूचकांक में जगह मिलती है। 2012 से आने वाली इस रिपोर्ट में फिनलैंड लगातार सातवीं बार दुनिया का सबसे खुशहाल देश पाया गया है। और भारत 125 देशों के नीचे, 126वीं स्थान पर है, और भारत से कम खुशहाल दुनिया में 20 देश भी नहीं है। तालिबानों के कब्जे वाले अफगानिस्तान में लोग सबसे अधिक नाखुश हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पाकिस्तान 108वीं जगह पर, जो कि भारत से काफी अधिक खुशहाल आबादी बताता है। भारत के बारे में अलग से जो आंकड़े आए हैं उनके मुताबिक यहां नौजवान सबसे अधिक खुश हैं, और निम्न-मध्यमवर्ग के लोग सबसे कम खुश हैं। भारत में बुजुर्ग मर्द बुजुर्ग औरतों के मुकाबले अधिक संतुष्ट हैं, लेकिन कुछ दूसरे पैमानों पर यह मामला उल्टा भी है। भारत में पढ़े-लिखे, उच्च जातियों के लोग अनपढ़ एसटी-एससी के मुकाबले अधिक संतुष्ट हैं। 

हम आंकड़ों में बहुत अधिक उलझे बिना एक व्यापक मुद्दे पर बात करना चाहते हैं कि जिस वक्त दुनिया के लोगों के खुश रहने या न रहने के बारे में ऐसी रिपोर्ट आ रही है, उस वक्त दुनिया के अलग-अलग देशों का क्या हाल है? फिलीस्तीन पर लगातार हमले करके दसियों हजार लोगों को मार डालने वाला इजराइल इस हैप्पीनेस इंडेक्स में पांचवें नंबर का सबसे खुश बताया जा रहा है। एक हत्यारे देश के लोग अगर सबसे खुश हैं, और उनके ठीक पड़ोस में मलबा बन चुके गाजा में लाशों के बीच लोग भूख से मर रहे हैं, और कुछ किलोमीटर दूर इजराइली अगर दुनिया में ऐसे पांच महीनों के बाद भी दुनिया में पांचवे सबसे खुश व्यक्ति हैं, तो हत्यारे देश के नागरिकों की इस खुशी को क्या माना जाए? अमरीका के लोग अगर दुनिया में 23वें नंबर के सबसे खुश लोग हैं, और अमरीकी मदद से, और उसके वीटो की मेहरबानी से अगर इजराइल यह सामूहिक जनसंहार कर रहा है, तो अमरीकियों की ऐसी खुशी बताती है कि उनके सामाजिक सरोकार क्या हैं? जिस हिन्दुस्तान में आर्थिक कामयाबी का जलसा मनाया जा रहा है, वहां गरीबों और अमीरों के बीच फासला कैसा भयानक है, यह भी देखने की जरूरत है। कल ही वल्र्ड इन इक्विटी लैब की दुनिया में आर्थिक असमानता की रिपोर्ट आई है जिसके मुताबिक हिन्दुस्तान की सबसे अमीर एक फीसदी आबादी की राष्ट्रीय कमाई में हिस्सेदारी बढ़ गई है, और देश की संपत्ति में भी। यह रिपोर्ट बताती है कि पिछले सौ साल में पहली बार ऐसा हुआ है। रिपोर्ट का नाम ही 1922-2023 : अरबपति राज का उदय रखा गया है। इसमें बताया गया है कि पिछले एक दशक में देश में यह फासला बहुत तेजी से बढ़ा है। 

लेकिन हम आंकड़ों में अधिक उलझना नहीं चाहते हैं, और यह देखना चाहते हैं कि देश की एक व्यापक तस्वीर क्या बन रही है? दुनिया में आज यूक्रेन के लोग एक तरफ रूसी हमले से मारे जा रहे हैं, दूसरी तरफ अमरीका और योरप के फौजी संगठन नाटो की तरफ से यूक्रेन को लगातार दी जा रही फौजी मदद की वजह से रूस के मोर्चे पर बड़ी संख्या में यूक्रेनी मारे जा रहे हैं, और कुछ लोगों का यह भी मानना है कि नाटो और पश्चिमी देश यूक्रेन में एक प्रॉक्सी वॉर लड़ रहे हैं, और वे यूक्रेन के कंधों पर बंदूक रखकर रूस को खोखला कर रहे हैं, अपने किन्हीं सैनिकों का लहू बहाए बिना। अब रूस के साथ यह लड़ाई नाटो देशों की परदे के पीछे की लड़ाई ही क्यों न हों, हर दिन यूक्रेन और अधिक खोखला हो रहा है, और पश्चिम की फौजी रणनीति के मुताबिक रूसी सेनाएं भी हर दिन नुकसान उठा रही हैं। क्या यह नाटो की रूस को खोखला करने की एक योजना है जिसमें कई किस्म की मदद देकर यूक्रेन की कुर्बानी दी जा रही है?

इससे परे अगर देखें तो 20 बरस राज के बाद अमरीका जिस तरह से अफगानिस्तान को बेसहारा छोडक़र निकला है, तो वहां पर तालिबानी राज में महिलाओं की हालत 20 बरस पहले के मुकाबले अधिक खराब है, और अमरीका अपनी फौजी नाकामयाबी के बाद वहां से मुंह चुराकर भाग निकला है। दूसरी तरफ सीरिया, इराक, जैसे बहुत से देश हैं जो लगातार अमरीकी हमलों के शिकार रहे, और ऐसे देशों के लोग योरप में शरण पाने के लिए लाखों की संख्या में इन बरसों में निकले हैं, और उनमें से दसियों हजार लोग समंदर में डूबकर मारे गए हैं। किसी देश पर जंग या हमले को थोप देना, और फिर वहां के लोगों को भूखों मरने के लिए छोड़ देना, या कि आतंकियों के रहमोकरम पर छोड़ देना, अगर ऐसे मुजरिम देशों के लोग भी अपने देशों में खुश हैं, और हैप्पीनेस इंडेक्स में ऊपर हैं, तो जाहिर है कि उनकी खुशियों में तथाकथित इंसानियत का कोई योगदान नहीं है। 

हम दुनिया की आर्थिक असमानता की रिपोर्ट, और हैप्पीनेस इंडेक्स को मिलाकर देखते हैं तो लगता है कि तथाकथित इंसानियत का जमाना खत्म हो चुका है, और अब लोग अपने देश के भीतर एक अलग किस्म के मूल्यों को लेकर खुशहाल हैं, और बाकी दुनिया से उनके सरोकार नहीं दिखते हैं। आज की ही रिपोर्ट है कि सूडान बहुत बुरी तरह भुखमरी से घिर गया है, और जिस तरह फिलीस्तान के गाजा में खाने को कुछ नहीं रह गया है, और दसियों लाख लोग भुखमरी की कगार पर है, उसी तरह सूडान में भी चल रहे घरेलू संघर्ष की वजह से वहां दुनिया की सबसे बड़ी भुखमरी की नौबत है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि हाल के बरसों में सूडान दुनिया में भुखमरी का सबसे बड़ा उदाहरण बन रहा है, और वहां पर पौने दो करोड़ से अधिक लोग खाने की कमी से गुजर रहे हैं क्योंकि साल भर से वहां गृहयुद्ध चल रहा है। इसके अलावा अफगानिस्तान, कांगो, इथियोपिया, पाकिस्तान, सोमालिया, सीरिया, और यमन में भुखमरी की नौबत है। 

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जहां लोगों के पास अगला खाना नहीं, बल्कि पिछले कई खाने नहीं रह गए हैं, भूख की थप्पी बनती चली जा रही है, वहां का हाल देखते हुए यह अंदाज लगाना मुश्किल पड़ता है कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में लोग खुशहाली के इंडेक्स पर लगातार बने रहने की खुशियां मना रहे हैं। यहां पर हम सबसे खुशहाल देशों के लोगों की खुशी के पीछे की एक वजह पर चर्चा करना चाहते हैं, कि वहां के कम से कम एक देश के लोग अपनी खुशियों को बांटने में अधिक खुशी पा रहे हैं। दुनिया को यह समझना चाहिए कि धरती के इस गोले की सतह पर अलग-अलग हिस्सों में बसे हुए एक ही किस्म के इंसान अगर भूख से मर रहे हैं, फौजी हमलों में बदनों के टुकड़े हो रहे हैं, पूरे के पूरे देश को खत्म कर दिया जा रहा है, तो ऐसे गोले पर दूसरे हिस्सों में कुछ देश अगर खुशियों और संपन्नता का जलसा मनाते हैं, तो फिर धरती नाम का यह गोला दूसरे ग्रह के लोगों के हमलों के लायक है, दूसरे ग्रह के उन प्राणियों में हो सकता है कि धरती के इंसानों के मुकाबले इंसानियत कुछ अधिक हो। दसियों हजार फिलीस्तीनी लाशों के बगल में अगर इजराइली जनता दुनिया में पांचवें नंबर की सबसे खुश है, तो फिर एक वक्त इन्हीं यहूदियों की नस्ल को खत्म करने के लिए दसियों लाख कत्ल करने वाले हिटलर की खुशी को भी इतिहास में देखना चाहिए, हालांकि उसके वक्त हैप्पीनेस इंडेक्स बना नहीं था। 

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