संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सरकारों को सडक़-सुरक्षा अनदेखी करने का हक है?
24-Mar-2024 3:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : सरकारों को सडक़-सुरक्षा अनदेखी करने का हक है?

देश भर में लोगों के बीच इतने तरह की हिंसा दिखाई पड़ रही है कि हैरानी होती है। दूसरी तरफ सडक़ों पर अंधाधुंध रफ्तार से गाडिय़ां चलती हैं, और चारों तरफ एक्सीडेंट हो रहे हैं, मौतें हो रही हैं। सडक़ों पर सबसे अधिक समय तक चलने वाली कारोबारी गाडिय़ों का हाल सबसे खराब रहता है, वे नियम-कानून सबसे अधिक तोड़ती हैं, और हर दिन सैकड़ों किलोमीटर चलती हैं, और एक्सीडेंट में सबसे अधिक जिम्मेदार रहती हैं, लेकिन इन पर किसी प्रदेश में सरकार का काबू नहीं दिखता, क्योंकि कारोबारी गाडिय़ां देश में अवैध वसूली का सबसे बड़ा जरिया है। लेकिन इन गाडिय़ों से सिर्फ सडक़ हादसों का नुकसान देखें, या टैक्स चोरी का नुकसान देखें तो वह जायज नहीं होता। इनसे एक दूसरा बहुत बड़ा नुकसान यह है कि सरकार के नियम-कायदे को अनदेखा करना यहां से शुरू होता है। जिस तरह लोग सडक़ों पर थूकना, सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीना करते हैं, उसी तरह सडक़ों पर ट्रैफिक के नियम तोड़ते हैं, और वहीं से देश के नियम-कायदे के खिलाफ एक हिकारत शुरू होती है जो कि कभी खत्म नहीं होती। इसलिए ट्रैफिक को बेकाबू होने देना, लोगों को अराजक बनने देना, इससे अलग-अलग कई किस्म के जुर्म के मिजाज शुरू होते हैं, और वे आगे बढक़र हर तरह के नियम तोडऩे में लोगों को हौसला देते हैं। कुछ लोगों को यह मिसाल कुछ अटपटी लग सकती है कि लोगों के बाकी जुर्मों का ट्रैफिक का भला क्या लेना-देना हो सकता है, लेकिन जुर्म के मिजाज की शुरूआत वहां से होती है, और बाद में धीरे-धीरे लोग अधिक बड़े जुर्म करने लगते हैं। सडक़ पर अगर नियम तोड़ते हुए पुलिस से एक बार वास्ता पड़ता है, जुर्माना देना पड़ता है, या सजा भुगतनी होती है, गाड़ी जब्त होती है, वकील और अदालत से साबका पड़ता है, तो लोग आगे के लिए हिचकते हैं। इसलिए सरकारों को अगर कानून लागू करना है, तो उसकी शुरूआत सडक़ों से, और ट्रैफिक से करनी चाहिए। 

दरअसल हिन्दुस्तानी सडक़ों को देखें, तो किसी भी किस्म की ताकत से लैस लोगों की बदमिजाजी उनकी गाडिय़ों के हॉर्सपावर से और अधिक बढ़ जाती है, लोगों को अपने ओहदे, अपने पैसे, अपनी राजनीतिक पहुंच का खूब अहंकार रहता है, और जब पुलिस उन्हें इस अहंकार के प्रदर्शन की छूट देती है, तो वह और बदतमीज होते चलता है। लोगों को उनकी औकात दिखाने का एक सबसे आसान जरिया सडक़ों पर उनकी बददिमागी को काबू में रखने का हो सकता है, वरना यह बददिमागी उनसे और भी कई किस्म के जुर्म करवाती रहती है। सरकारें इस चक्कर में ट्रैफिक नियमों पर कड़ाई से अमल नहीं करवाती हैं कि उससे लोग नाराज हो जाएंगे। यह सत्ता की बहुत बड़ी गलतफहमी रहती है क्योंकि आम लोग तो किसी भी चालान और जुर्माने से बचकर रहना चाहते हैं, उनकी ताकत ही नहीं रहती कि यह नुकसान झेल सकें। ट्रैफिक पुलिस की कार्रवाई से असर तो उन बददिमाग लोगों पर होता है जो कि ट्रैफिक सिपाही को धमकाते हैं कि जानते नहीं वे कौन हैं। ऐसे में हमारा ख्याल है कि जो सरकार सडक़ों पर नियम जितनी कड़ाई से लागू करवाएगी, वहां पर बाकी नियम-कानून भी अपने आप बेहतर अमल में आने लगेंगे। लोग ट्रैफिक जुर्माने को सिर्फ ट्रैफिक की तरह नहीं देखते, उनका मिजाज ही कानून के सम्मान का होने लगता है। 

हम अपने अखबार और यूट्यूब चैनल पर लगातार ट्रैफिक सुधारने के बारे में लिखते और बोलते हैं। आज यहां पर फिर उन्हीं बातों को दुहरा रहे हैं क्योंकि हमारे इर्द-गिर्द हर दिन कई दुपहिया सवार सडक़ों पर मारे जा रहे हैं, और राज्य सरकार का हाल ऐसा नर्ममिजाजी का है कि वह लोगों के सिर पर हेलमेट रखना नहीं चाहती, दुपहिया चलाते मोबाइल पर बातचीत का चालान करना नहीं चाहती, बड़ी कारोबारी गाडिय़ों पर तो संगठित भ्रष्टाचार की वजह से वैसे भी कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है। हर दिन हर राज्य की सडक़ों पर बहुत सी ऐसी मौतें होती हैं जिन्हें कि पूरी तरह रोका जा सकता था, लेकिन रोकते हुए कुछ दिनों के लिए जनता की नाराजगी का खतरा भी सरकार उठाना नहीं चाहती। सच तो यह है कि जिन शहरों या प्रदेशों में सरकार सडक़ों को सुरक्षित बनाती है वहां उसे लोगों की वाहवाही भी मिलती है। इसलिए सरकार को वोटरों से डरे बिना, और बददिमाग-ताकतवर लोगों की परवाह किए बिना सख्ती से नियम लागू करना चाहिए। इसी से सडक़ों पर बेकसूर लोगों की जिंदगी बचेगी, जो कि या तो अराजक गाडिय़ों का शिकार होकर मरते हैं, या सरकारी लापरवाही की वजह से खुद भी लापरवाह होकर जान खो बैठते हैं। सच तो यह है कि संविधान की शपथ लेकर काम करने वाली किसी सरकार को सडक़ सुरक्षा में ढील देने का कोई हक ही नहीं है, उसे जनजीवन और जनसुरक्षा के हित में नियमों को कड़ाई से लागू करना ही है, और इसमें ढील उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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