संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : मुफ्त और रियायती बिजली पर काबू करने की जरूरत..
01-Apr-2024 6:23 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  मुफ्त और रियायती बिजली  पर काबू करने की जरूरत..

कुछ अलग-अलग खबरों को मिलाकर देखने की जरूरत रहती है। अभी पिछले महीने ही दुनिया के एक सबसे बड़े कारोबारी, एलन मस्क ने एक चेतावनी दी कि आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का इस्तेमाल जितना बढ़ रहा है, वह रफ्तार आज तक किसी भी टेक्नॉलॉजी की नहीं रही है, और इसकी वजह से दुनिया में बिजली और ट्रांसफार्मरों की कमी अगले बरस, 2025 में ही बहुत बुरी तरह सामने आ जाएगी। एलन मस्क इलेक्ट्रिक कारों की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी के मालिक भी हैं, और उनसे यह उम्मीद तो की जा सकती है कि वे एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जो बात बोल रहे हैं, उसे सोच-समझकर ही सामने रख रहे हैं। अब दूसरी खबर यह है कि छत्तीसगढ़ जिसे कि देश का सबसे बड़ा कोयला सप्लायर माना जाता है, और जहां केन्द्र, राज्य, और निजी कंपनियों के बहुत से बिजलीघर हैं, वहां भी इस प्रदेश का काम अपनी बिजली से पूरा नहीं पड़ रहा है, और उनसे बहुत सारी बिजली दूसरे राज्यों से खरीदनी पड़ रही है। और यह हालत अभी पहली अप्रैल की ही है, और आने वाले कई महीने गर्मियों के रहने वाले हैं, या उमस की वजह से एसी का अधिक इस्तेमाल होना हैं। अब तीसरी बात देश के एक प्रमुख आर्थिक लेखक स्वामीनाथन अंकलेसरिया अय्यर का ताजा कॉलम है जिसमें उन्होंने लिखा है कि ग्रामीण इलाकों में मुफ्त की बिजली के सरकारी वायदे अब खत्म करने का समय आ गया है क्योंकि जैसे-जैसे देश में बैटरी से चलने वाली गाडिय़ां बढ़ेंगी, वैसे-वैसे राज्यों की बिजली खपत बढ़ेगी, और दूसरी तरफ पेट्रोल और डीजल की खपत घटने से सरकार के टैक्स का बड़ा नुकसान भी होगा। ऐसे में मुफ्त बिजली की सोच को खत्म करने का समय उन्होंने बताया है। उन्होंने पंजाब की मिसाल देते हुए लिखा है कि वहां कर्ज का 80 फीसदी हिस्सा जनता को मुफ्त बिजली देने की वजह से है। उन्होंने बैटरी-इलेक्ट्रिक से चलने वाली गाडिय़ों को गिनाया है कि किस तरह वे पेट्रोल-डीजल इस्तेमाल नहीं करतीं, और टैक्स नहीं देतीं, दूसरी तरफ वे बिजली का इस्तेमाल करती हैं जिससे कि इसकी खपत बढ़ते चले जाना है। इसलिए उन्होंने यह सुझाव दिया है कि केन्द्र और राज्य सरकारों को बिजली पर रियायत, या मुफ्त बिजली देना बंद करना चाहिए, वरना हर सरकार दीवालिया होती चली जाएगी। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में कुछ अरसा पहले तक यह मान लिया गया था कि यह जरूरत से अधिक बिजली पैदा करने वाला राज्य है, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि दूसरे राज्यों और निजी कंपनियों से इसे महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। और बिजली-वितरण की जानकारी रखने वाले यह जानते हैं कि किस तरह एक चौथाई से एक तिहाई तक बिजली या तो चोरी हो जाती है, या किसी और तरह से बर्बाद होती है, जिसका कि कोई बिल नहीं बन सकता। 

कुछ अरसा पहले छत्तीसगढ़ के कुछ पत्रकारों के साथ बातचीत में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के सामने यह बात रखी गई थी कि चूंकि राजनीतिक मुकाबले के तहत कांग्रेस और भाजपा दोनों ही किसानों से बहुत ऊंचे दामों पर तकरीबन तमाम धान खरीद रही हैं, इसलिए इस प्रदेश के किसान और किसी फसल के बारे में सोच भी नहीं सकते, और धान के फसल में अंधाधुंध पानी लगता है, और किसानों को मिलने वाली मुफ्त बिजली की वजह से रात-दिन पंप चलाकर किसान खेतों को तालाब की तरह लबालब रखते हैं। इससे एक तरफ तो फसल की विविधता खत्म हो रही है, और फसल पर आधारित कीट-पतंगों से लेकर दूसरे प्राणियों तक की जैविक विविधता भी खत्म हो रही है। इसलिए सिर्फ धान केन्द्रित खेती न तो इस प्रदेश की अर्थव्यवस्था के लिए ठीक है, न जमीन के नीचे के पानी के लिए, और न ही जैव विविधता के लिए। किसान भी आज पूरी तरह सरकारी खरीद के मोहताज हो गए हैं, जो कि उनके लिए भी अच्छी नौबत नहीं है। 

सरकारों को यह समझना होगा कि बिजली के उत्पादन को अंतहीन मान लेना ठीक नहीं है, इसी तरह धरती के नीचे के पानी को भी अंतहीन मानना गलत होगा। इसलिए आने वाले वक्त में गाडिय़ों की बैटरियां चार्ज करने बिजली अधिक से अधिक लगेगी, एलन मस्क जैसी भविष्यवाणी को देखें तो एआई के इस्तेमाल से बढऩे वाली बिजली की खपत का तो हिन्दुस्तान में आज किसी को अंदाज भी नहीं है। और चुनावी मुकाबलों में जब राजनीतिक दल एक-दूसरे से आगे बढक़र बिजली की अधिक यूनिटें कोटे में देने की बोली लगाती हैं, तो जाहिर है कि खपत भी बढ़ेगी, और कमाई तो खत्म हो ही जाएगी। भारत सहित दुनिया के अधिकतर देशों में इलेक्ट्रिक-गाडिय़ां बढ़ती चल रही हैं, जैसे-जैसे सार्वजनिक जगहों पर चार्जिंग स्टेशन बढ़ेंगे, इन गाडिय़ों का इस्तेमाल भी बढ़ते रहेगा। इससे प्रदूषण भी कम हो रहा है, इसलिए सरकारें इन पर टैक्स की छूट भी दे रही हैं, और इस वजह से भी इलेक्ट्रिक गाडिय़ां बढ़ती चली जानी है। दूसरी तरफ भारत के संपन्न तबके में संपन्नता बढ़ती जाने से एयरकंडीशनरों का इस्तेमाल बढ़ रहा है जो कि बिजली को प्यासे ऊंट की तरह पीते हैं। अभी कल ही बीबीसी पर एक रिपोर्ट है कि चौथाई सदी बाद दुनिया की 70 फीसदी आबादी शहरों में रहने लगेगी, और जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी को बर्दाश्त करना मुश्किल और महंगा होगा, और इमारतों को ठंडा रखने के लिए बिजली की खपत बढ़ेगी। अब अगर शहरीकरण और बिजली-खपत का लगातार बढऩा दिख रहा है, तो यह भी समझने की जरूरत है कि यह बिजली आएगी कहां से, और किस तरह लोगों की मुफ्त की बिजली के इस्तेमाल की आदत को घटाना जरूरी होते चले जाएगा। आज जब इस बरस दुनिया के 60 देशों में चुनाव होने हैं, तो यह सवाल बड़ा नाजायज लग सकता है, और राजनीतिक दलों को यह माकूल नहीं बैठेगा कि वे लुभावनी बातों से परे कुछ और करें। लेकिन अगर सिर्फ अगले चुनाव की सोचकर ही नेता और पार्टियां फैसले लेंगे, तो देश का भविष्य एक गहरे गड्ढे में और नीचे जाते रहेगा। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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