संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक-एक करके विकसित देशों में गांजा अब कानूनी
02-Apr-2024 4:43 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : एक-एक करके विकसित देशों में गांजा अब कानूनी

ऐसा एक भी दिन नहीं गुजरता जब हिन्दुस्तान में सैकड़ों जगहों पर गांजा न पकड़ता हो। अकेले छत्तीसगढ़ में हर दिन दर्जनों जगहों पर गांजे से लदी गाडिय़ां पकड़ाती हंै जो कि ओडिशा की तरफ से आकर छत्तीसगढ़ पार करके दूसरे राज्यों तक जाती रहती हैं। गांजे की बोरियां किसी अनाज लदे ट्रक की तरह दिखती हैं, और इससे समझ पड़ता है कि कितनी बड़ी मात्रा में गांजे का बाजार है। देश के अधिकतर प्रदेशों में पुलिस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, उसके बावजूद अगर इतना गांजा पकड़ में आ रहा है तो यह जाहिर है कि इससे कई गुना अधिक गांजा रिश्वत देकर बाजार और ग्राहकों तक पहुंचता होगा। अब इस पर आगे चर्चा करने से पहले यह बात करना जरूरी है कि  क्या सचमुच ही किसी देश, प्रदेश से नशे को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है? भारत में गुजरात, बिहार, और मिजोरम जैसे प्रदेश हैं जहां शराबबंदी है, लेकिन जानकार लोग बताते हैं कि इन प्रदेशों में, खासकर गुजरात और बिहार में मनचाहा ब्रांड पा लेना बड़ा आसान है। दूसरी तरफ जब शराबबंदी या किसी और किस्म की नशाबंदी लागू की जाती है, तो ऐसे देश-प्रदेश में सरकारी अमला बुरी तरह भ्रष्ट भी हो जाता है। इसलिए किसी भी तरह के नशे को बंद करने के साथ-साथ सरकारी अमले पर उसके असर, और जनता के बीच उसके विकल्प के खतरों पर भी सोचना चाहिए।

अभी अमरीका जैसा देश इस बात से बहुत परेशान है कि फेंटानिल नाम की दवा का नशे के लिए इस्तेमाल जिस बुरी तरह बढ़ते जा रहा है, और यह अमरीका में आज सबसे अधिक बिकने और इस्तेमाल होने वाला नशा बन चुका है, और दवा की गोली जैसी शक्ल की वजह से इसकी तस्करी अधिक आसान है, और चीन जैसे देश से इस दवा को बनाने का कच्चा माल निकलता है और नशे के सौदागरों के लिए बदनाम कोलंबिया और मैक्सिको जैसे देशों के रास्ते यह अमरीका पहुंचकर वहां पूरी नौजवान पीढ़ी को बरबाद कर रहा है। ऐसे नशों से मरने वाले लोगों की संख्या हर बरस बढ़ती चली जा रही है और ताजा आंकड़ों के मुताबिक अमरीका में 2021 में 70 हजार से अधिक मौतें इस एक दवा के ओवरडोज से दर्ज हुई हैं। इंसानों की हर नई पीढ़ी, पिछली पीढ़ी के मुकाबले कुछ अधिक नशे वाला सामान जुटाती है, और ऐसे में शराब जैसा परंपरागत नशा पिछड़ जाता है। भारत में भी उत्तर पूर्व के कुछ राज्य, और पंजाब मेें नशे से नौजवान पीढ़ी के बरबाद होने का बुरा हाल है। किसी नशे पर रोकथाम का कानून बनाना आसान रहता है, लेकिन उस पर अमल करना, और उसके अधिक खतरनाक विकल्पों को रोकना अधिक मुश्किल रहता है। 

ऐसे में दुनिया के बहुत से देशों में यह बात सामने आ रही है कि गांजे का नशा कम नुकसानदेह रहता है। दुनिया के कुछ सबसे विकसित देश, कनाडा, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और अमरीका, अपने पूरे-पूरे देश में, या उसके बहुत बड़े हिस्सों में गांजे की नियंत्रित बिक्री, और उसके इस्तेमाल को जुर्म के दर्ज से बाहर कर चुके हैं। इनमें जॉर्जिया, लक्जमबर्ग, माल्टा, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, उरूग्वे जैसे कई और देश भी हैं जिन्होंने अलग-अलग शर्तों के साथ गांजे का इस्तेमाल कानूनी कर दिया है। सबसे ताजा खबर जर्मनी की है जहां सरकार ने बालिगों को 25 ग्राम गांजा रखने की छूट दे दी है, और हर बालिग को भांग के तीन पौधे उगाने की इजाजत भी। योरप में जर्मनी ऐसी मंजूरी देने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है, और कल एक अप्रैल से ही यह मंजूरी लागू हो गई है। वहां के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि गांजे के सेवन को वर्जना के दायरे से बाहर कर दिया गया है, अब इससे इसके नशे की आदत घट सकेगी। 

लोगों को याद होगा कि भारत में भी अनंतकाल से गांजे का इस्तेमाल चले आ रहा है, और हिंदू मंदिरों, तीर्थस्थानों, और कुंभ सरीखे मेलों में हिंदू साधू खुलेआम चिलम से गांजा पीते दिखते हैं। अभी हम अलग-अलग नशों के मेडिकल और आर्थिक पहलुओं की बारीकी पर जाना नहीं चाहते, लेकिन बाजार व्यवस्था में इतना तो साफ दिखता है कि हिंदुस्तान में शराब सबसे ही संगठित कारोबार है, और इसे धंधे की राजनीति पर पकड़ इतनी मजबूत है कि यह सरकारी नीतियां अपने हिसाब से बनवाते रहता है। इसलिए यह भी हो सकता है कि गांजे का नशा शराब के मुकाबले सस्ता और कम नुकसानदेह हो, लेकिन दारू कंपनियों ने यह माहौल बनाकर रखा हो कि गांजे पर रोक रहनी चाहिए। खुलेआम बिकने वाले गांजे के नशे में हिंसा और जुर्म की खबरें बहुत कम आती हैं, जबकि शराब के नशे में हर दिन कई हत्याएं होती हैं, आत्महत्याएं भी। इसलिए दुनिया के बाकी देशों के तजुर्बे का अध्ययन करके भारत में भी यह तय होना चाहिए कि क्या हिंदू धर्म में हमेशा से सामाजिक मान्यता प्राप्त गांजे को जुर्म के दायरे से बाहर निकालना चाहिए? गांजे से ही कुछ कम नशे वाला भांग अभी भी भारत में बहुत से प्रदेशों में कानूनी रूप से बेचा जाता है, और परिवारों में, मंदिरों में इस पर कोई रोक नहीं रहती है, मंदिरों में तो गांजे पर भी रोक नहीं रहती है। भारतीय परंपरा में भांग भगवान शिव को भी चढ़ाई जाती है, और इसे तनावमुक्त करने वाली चीज माना जाता है। बाद के बरसों में अंग्रेजों ने शराब को तो कानूनी रखा, लेकिन गांजा-भांग को गैरकानूनी ठहरा दिया था। भांग को भोलेबाबा का प्रसाद कहते हुए उसकी पूरी तरह से धार्मिक और सामाजिक मान्यता है। 

अब भारत को अंग्रेजी शराब के कारोबार के चंगुल से बाहर निकलकर यह सोचना चाहिए कि चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक शराब अधिक नुकसानदेह है, या कि गांजा और भांग? इसके साथ-साथ भारतीय समाज पर शराब का जो आर्थिक बोझ पड़ता है, उसके भी तुलना गांजा या भांग जैसे नशे के साथ करके देखना चाहिए। अगर नशे की इजाजत रहनी ही है, तो फिर शराब के साथ यह खास रियायत क्या इसलिए जारी है कि इसका संगठित कारोबार सरकारों के फैसलों को खरीदने की ताकत रखता है? भारत को मेडिकल, और आर्थिक, इन दोनों पैमानों पर भी गांजा-भांग के बारे में फैसला लेना चाहिए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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