संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अपने एक-एक नागरिक की मौत से विचलित बड़े-बड़े देश, और फिलीस्तीनी लाशों के ढेर
03-Apr-2024 12:39 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : अपने एक-एक नागरिक की मौत से विचलित बड़े-बड़े देश, और फिलीस्तीनी लाशों के ढेर

फिलीस्तीन के गाजा पर इजराइली फौजी हमलों को लेकर पूरी दुनिया और संयुक्त राष्ट्र संघ सभी फिक्रमंद हैं, लेकिन अमरीकी शह पर इजराइल की बमबारी जारी है। अस्पतालों को खंडहर बना दिया गया है, और लाशें बिखरी पड़ी हैं। 32 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, और शायद एक लाख बच्चे जख्मी पड़े हैं। पिछली आधी सदी की यह दुनिया की अपने किस्म की सबसे बड़ी और सबसे बुरी त्रासदी है जिसे इजराइल और अमरीका ने मिलकर खड़ा किया है। अब तक इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहने वाला हिन्दुस्तान भी अब इस बात को बोलने से नहीं बच पाया कि फिलीस्तीनियों को उनकी अपनी जमीन पर हक नहीं दिया जा रहा है, बेदखल किया जा रहा है। भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने अभी मलेशिया में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा कि इजराइल-फिलीस्तीन मुद्दे के और चाहे जो सही या गलत पहलू हों, सबसे नीचे यह बात कायम है कि फिलीस्तीनियों को उनकी मातृभूमि के हक से वंचित किया जा रहा है। 

लेकिन आज हम इस व्यापक मुद्दे पर बात करने के बजाय कल की ताजा घटना पर बात करना चाहते हैं जिसमें गाजा में मानवीय मदद पहुंचा रहे अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवकों पर इजराइली बमबारी में 7 विदेशी वालंटियर मारे गए हैं। इंटरनेशनल फूड चैरिटी संस्था, वल्र्ड सेंट्रल किचन, ने इजराइली सेना को अपना सारा कार्यक्रम बताकर, समय और जगह भी बताकर काम करना शुरू किया था, और वे एक गोदाम से भूखों के लिए खाना लेकर निकल रहे थे, कि इस संस्था के निशान लगी गाडिय़ों पर हमला किया गया, और तीनों गाडिय़ां तबाह कर दी गईं, सात स्वयंसेवकों की लाशें मिल गई हैं। इजराइली प्रधानमंत्री ने भी यह माना है कि उनकी सेना ने बेकसूर लोगों पर हमला किया। इनमें अलग-अलग देशों के लोग हैं, और उनके देशों के प्रधानमंत्रियों ने इस हमले पर बड़ा अफसोस जाहिर किया है। ऑस्ट्रेलिया, पोलैंड, और ब्रिटेन ने इजराइल से फौरन पारदर्शी जांच मांगी है। यह एक अमरीकी स्वयंसेवी संस्था है जो किसी भी तरह की आपदा में लोगों को खाना मुहैया कराती है,  और उसने पिछले छह महीनों में गाजा में 4 करोड़ से अधिक फूड पैकेट बांटे हैं, लेकिन अब वह काम जारी रखने के बारे में दुबारा सोच-विचार कर रही है। 

यह अमरीकी संस्था है, और अलग-अलग पश्चिमी और यूरोपीय देशों के लोग इसमें काम भी कर रहे थे, इसलिए इन देशों ने अपने एक-एक नागरिक की मौत पर प्रधानमंत्री के स्तर पर बयान जारी किए हैं, और जांच मांगी है। दूसरी तरफ यह समझने की जरूरत है कि छोटे से फिलीस्तीन के एक शहर गाजा में 32 हजार से अधिक लोगों को मार डाला गया है, लेकिन अमरीका जैसा देश इजराइल को बमों और बॉम्बर विमानों की सप्लाई करते ही जा रहा है। यह सिलसिला बताता है कि किस तरह पश्चिमी, गोरे, या विकसित देशों के लिए अपने एक-एक नागरिक की जान कितनी कीमती होती है, और वह अपने देश में कितने राजनीतिक महत्व की भी होती है। दूसरी तरफ फिलीस्तीनियों की पूरी नस्ल ही खत्म की जा रही है, उनके देश को, उनकी मातृभूमि को बमों से मलबे में तब्दील कर दिया गया है, और मलबे के इस ढेर पर शायद गाजा दुबारा कोई शहर बन भी न पाए। 

इसी दुनिया में एक आजाद देश फिलीस्तीन को गुलाम बनाकर उसके लोगों की आवाजाही भी इजराइली बंदूकों से काबू की जा रही है, वे दूसरे-तीसरे या चौथे दर्जे के भी नागरिक नहीं रह गए हैं, और बाकी दुनिया अफसोस के जुबानी जमा-खर्च करते हुए अपने काम से लगी हुई है। किस तरह चमड़ी के रंग, धर्म, और राष्ट्रीयता की वजह से एक जिंदगी की कीमत हीरे सरीखी हो जाती है, और दूसरी जिंदगी की कीमत कचरे के एक टुकड़े की तरह! आज अपने एक नागरिक की मौत पर इन बड़े-बड़े देशों के प्रधानमंत्री जांच की मांग कर रहे हैं, और दूसरी तरफ दसियों हजार लोगों को इजराइली बमों और मिसाइलों ने इन कुछ महीनों में मार डाला है, और संयुक्त राष्ट्र यह कह रहा है कि फिलीस्तीन में भुखमरी की नौबत है, लोग खाना न मिलने से मरने के करीब हैं, और इजराइल मदद की रसद की गाडिय़ों को वहां जाने नहीं दे रहा है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ गाजा की भुखमरी के अपने अंदाज को लगातार दुहराने के बाद भी कर कुछ भी नहीं पा रहा है। किस तरह कहने के लिए यह दुनिया सभ्य कहलाती है, और पश्चिम के बड़े-बड़े देश अपने आपको लोकतंत्र कहते हैं, लेकिन क्या लोकतंत्र अपनी जमीन पर अपनी सरकार को चुन लेने भर का नाम रहता है, या कि दुनिया में कहीं और परले दर्जे के जुल्म होने पर उसकी अनदेखी करने का नाम भी लोकतंत्र है? अपने एक नागरिक की मौत पर जिन देशों के प्रधानमंत्री इतने विचलित हो सकते हैं, उन्हें फिलीस्तीन में एक-एक दिन में सैकड़ों मौतों के बारे में भी सोचना चाहिए कि इजराइल को किस कीमत पर इस अंतरराष्ट्रीय गुंडागर्दी की छूट दी जा रही है! 

हमारा यह साफ मानना है कि जो देश इजराइल की आलोचना कर रहे हैं, उन तमाम लोगों को इजराइल का आर्थिक बहिष्कार करना चाहिए। यह देश निर्यात पर जिंदा देश है, और अभी कुछ वक्त पहले तक के आंकड़े तो यही बताते थे कि इजराइल के कुल निर्यात का आधे से अधिक आयात अकेला हिन्दुस्तान करता है। आज दुनिया के लोगों को, सरकारों को, और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इजराइल के बहिष्कार के साथ-साथ उस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने का फैसला लेना चाहिए। यूक्रेन पर हमला करने वाले रूस पर तो तुरंत ही नाटो देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए, लेकिन इजराइल के बारे में इनमें से कोई देश ऐसी जुबान भी नहीं खोल रहे हैं। यह दुनिया में अपने आपका बड़ा लोकतांत्रिक देश होने का दावा करने वाले देशों का पाखंड है जो कि फिलीस्तीन में गिरती हर लाश के साथ और अधिक साबित होते चल रहा है। इन देशों के जो वालंटियर फिलीस्तीन जाकर काम कर रहे थे, वे एक व्यक्ति के रूप में भी अपने देशों की सरकारों से अधिक जिम्मेदार थे जो कि फिलीस्तीनियों की मदद के लिए अपनी जिंदगी खतरे में डालकर काम कर रहे थे। अब इन स्वयंसेवकों की शहादत पर इनकी सरकारें रो रही हैं जो कि 30 हजार फिलीस्तीनियों के बिछ जाने के बाद भी नहीं रो रही थीं। इन सरकारों को अपने इन शहीद हुए नागरिकों से सबक लेना चाहिए, और इजराइल की आर्थिक नाकेबंदी करनी चाहिए। आज दुनिया में दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील सरीखे देश खुलकर इजराइल के खिलाफ खड़े हुए हैं, लेकिन भारत सहित दर्जनों विकसित देश मजे में इजराइल के साथ कारोबार कर रहे हैं, और अमरीका तो फिलीस्तीनियों को थोक में मारने के लिए बम और बमवर्षक विमान भी इजराइल भेज रहा है। 

अमरीका के साथ खड़े हुए, या मुंह सिलकर बैठे हुए बड़े-बड़े देशों के नागरिकों को चाहिए कि अपनी सरकारों को झकझोरें कि हर दिन मारे जा रहे दर्जनों फिलीस्तीनी भी उसी तरह इंसान हैं जिस तरह हिटलर के हाथों मारे गए यहूदी इंसान थे। इजराइल यहूदी नस्ल का देश है, उसने खुद ने अभी ताजा इतिहास में हिटलर के हाथों अपने दसियों लाख लोगों को खोया था, लेकिन इन जख्मों से उबरकर आज वह फिलीस्तीन पर हिटलर की तरह के जुल्म कर रहा है, जो कि परले दर्जे की शर्मनाक बात है। इजराइल को धिक्कारने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को न सिर्फ अपनी चुप्पी तोडऩी पड़ेगी, बल्कि उसे इस गुंडा देश का आर्थिक बहिष्कार भी करना होगा।    (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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