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मानव विकास सूचकांक: 134वें पायदान पर भारत, जीवन प्रत्याशा में गिरावट
04-Apr-2024 3:45 PM
मानव विकास सूचकांक: 134वें पायदान पर भारत, जीवन प्रत्याशा में गिरावट

ललित मौर्य

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नवीनतम मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स) में भारत को 193 देशों की सूची में 134वें पायदान पर रखा गया है। सूचकांक वर्ष 2022 के आंकड़ों पर आधारित है। इस सूचकांक में भारत को कुल 0.644 अंक दिए गए हैं। जो भारत को मध्यम मानव विकास वाले देशों की श्रेणी में रखता है। वहीं दूसरी तरफ स्विटजरलैंड को इस इंडेक्स में 0.967 अंकों के साथ पहले स्थान पर रखा गया है।

इससे पहले 2022 में जारी मानव विकास सूचकांक में भारत को 0.633 अंकों के साथ 132वें पायदान पर जगह दी गई थी। मतलब की इस बार भारत दो पायदान नीचे आ गया है। वहीं यदि अंकों के लिहाज से देखें तो भारत के स्कोर में 2021 के मुकाबले 0.011 अंकों का सुधार आया है। 2022 में, भारत का लैंगिक असमानता सूचकांक (जीआईआई) 0.437 रहा, इस इंडेक्स में भारत ने प्रगति दर्ज की है। यदि वैश्विक औसत 0.462 और दक्षिण एशियाई औसत 0.478 से तुलना करें तो भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। बता दें कि इस इंडेक्स का कम मान इस बात का सूचक है कि महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता कम है।

वहीं यदि 2019 की तुलना में देखें तो भारत ने मानव विकास में उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है। जहां 1990 के बाद से देश में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में 9.1 वर्षों का इजाफा हुआ है। इसी तरह स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों में 4.6 वर्ष की वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं इस दौरान स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में भी 3.8 वर्ष की वृद्धि दर्ज की गई है।

गौरतलब है कि इससे पहले 2019 के लिए जारी मानव विकास सूचकांक (ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स) में भारत को 189 देशों की लिस्ट में 131वें स्थान पर रखा गया था। वहीं पिछले वर्ष भारत इस लिस्ट में 130वें पायदान पर था। कहीं न कहीं यह इस बात को भी दर्शाता है कि भारत इस लिस्ट में लगातार नीचे आ रहा है।

यह मानव विकास सूचकांक, मानव विकास के तीन प्रमुख आयामों स्वस्थ लंबा जीवन, शिक्षा तक पहुंच और जीवन गुणवत्ता को मापता है। इनकी गणना चार प्रमुख संकेतकों जीवन प्रत्याशा, औसत स्कूली शिक्षा, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय पर आधारित है।

2019 की तुलना में जीवन प्रत्याशा में आई गिरावट

आंकड़ों के अनुसार जहां वैश्विक स्तर पर 2022 में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 67.7 वर्ष दर्ज की गई थी। वहीं 2019 में यह आंकड़ा 70.9 वर्ष जबकि 2021 में 67.2 वर्ष दर्ज की गई थी। ऐसे में यदि 2019 से तुलना करें तो देश में औसत जीवन प्रत्याशा में 3.2 वर्षों की गिरावट आई है।

देखा जाए तो जीवन प्रत्याशा के मामले में जो रुझान वैश्विक स्तर पर सामने आए थे उन्हें भारत से जुड़े आंकड़ों में भी स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। इसके लिए कहीं न कहीं कोरोना जिम्मेवार था, जिसने देश में जीवन प्रत्याशा पर गहरा आघात किया है।

आंकड़ों के मुताबिक देश में शिक्षा प्राप्ति के औसत वर्षों को देखें तो वो 2022 में 6.57 वर्ष दर्ज की गई थी। बता दें कि 2021 में यह आंकड़ा 6.7 वर्ष दर्ज किया गया था। हालांकि देश में स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों में इजाफा दर्ज किया गया है जो 2021 में 11.9 वर्ष से बढक़र 2022 में 12.6 वर्षों पर पहुंच गया।

इसी तरह देश में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वो 6,951 डॉलर दर्ज की गई है। वहीं 2021 में यह 6,590 डॉलर दर्ज की गई थी। मतलब की इसमें पिछले वर्ष की तुलना में इजाफा दर्ज किया गया है। आंकड़ों के मुताबिक यदि 1990 से 2022 के बीच, भारत के मानव विकास सूचकांक के मूल्यों को देखें तो वो 0.434 से बढक़र 0.644 पर पहुंच गया है। मतलब की इन तीन दशकों में इसमें 48.4 फीसदी का बदलाव आया है।

समृद्ध और वंचित समुदायों के बीच बढ़ रही असमानता की खाई

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूनीडीपी) ने जो नई रिपोर्ट ‘ब्रेकिंग द ग्रिडलॉक’ जारी की है, उसके मुताबिक यह सही है कि जहां 2020, 2021 में कोरोना महामारी के कारण मानव विकास की राह में बड़ी गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन अब 2023 में गाड़ी दोबारा पटरी पर लौट रही है। यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर मानव विकास अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है,

लेकिन साथ ही समृद्ध और वंचित समुदायों के बीच असमानता की खाई और गहरी हुई है।

एक तरफ जहां समृद्ध देशों में अभूतपूर्व विकास हुआ है, वहीं दुनिया के सबसे कमजोर देशों में से करीब आधे देश, विकास की राह में कोविड संकट से पहले के स्तर से भी नीचे चले गए हैं।

बता दें कि 2020 या 2021 में अपने मानव विकास सूचकांक में गिरावट दर्ज करने वाले 35 सबसे कमजोर देशों में से 18 अभी 2019 के स्तर पर नहीं लौट पाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार विकास की राह में मौजूद इस विषमता के चलते सबसे कमजोर देश पीछे छूट रहे हैं। इससे असमानताएं बढ़ रही हैं और राजनैतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिल रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक एक तरफ जहां स्विटजरलैंड , नॉर्वे और आइसलैंड जैसे देश राष्ट्रीय स्तर पर मानव विकास सूचकों में सबसे आगे हैं। वहीं सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, दक्षिण सूडान, सोमालिया, नाइजर, चाड, माली, बुरुंडी, यमन, बुर्किना फासो जैसे देश अभी भी बेहद पीछे हैं। कुल मिलकर देखें तो अफ्रीकी देशों में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।

वहीं यदि ओईसीडी के सभी 38 देशों की बात करें तो इन सभी ने 2023 में 2019 की तुलना में मानव विकास सूचकांक में बेहतर प्रदर्शन किया है। मानव विकास को सबसे अधिक हानि अफगानिस्तान व यूक्रेन में हुई है। अफगानिस्तान में ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स 10 वर्ष पहले के स्तर पर पहुंच गया है, जबकि यूक्रेन में यह 2004 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर है।

वहीं सभी विकासशील क्षेत्र 2019 से पहले के मानव विकास सूचकांक के रुझानों के अनुसार अपनी सम्भावनाओं को पूरा नहीं कर पाए हैं, और भविष्य में भी उनकी विकास प्रक्रिया को झटका लगने का खतरा है।  

रिपोर्ट की मानें तो इसके लिए कोविड-19, यूक्रेन में जारी युद्ध और जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े कारक जिम्मेवार हैं। इन सबने मिलकर लोगों के जीवन पर व्यापक असर डाला है, राजनैतिक, वित्तीय और जलवायु से जुड़े संकटों ने कोरोना की मार झेल रही आबादी को संभलने का मौका ही नहीं दिया। (डाऊन टू अर्थ)

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