संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : इस घर को आग लग गई, घर के चिराग से...
05-Apr-2024 5:48 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  इस घर को आग लग गई,  घर के चिराग से...

photo : twitter

कांग्रेस पार्टी को एक-एक करके जितने लोग छोडक़र जा रहे हैं, वह डूबते जहाज को छोडक़र कूदकर जाने वाले चूहे करार दिए जा सकते हैं, लेकिन 21वीं सदी की भारतीय चुनावी राजनीति कोई सिद्धांतों का खेल तो है नहीं कि इसमें नीतियों और सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध रहा जाए। अब तो यह ऐसा चुनावी खेला हो गया है जिसमें अपने आपको महत्व की किसी जगह पर बनाए रखना ही राजनीति की प्राथमिकता हो गई है। भाजपा में इन दिनों एक लतीफा चल रहा है कि जनसंघ के समय से लगातार पार्टी में बने हुए लोग अब मांग कर रहे हैं कि उम्मीदवार बनाने में उनके लिए एक जनसंघी-आरक्षण कोटा तय किया जाए, क्योंकि अब पार्टी में आधे उम्मीदवार तो कांग्रेस से आए, या लाए हुए लोग दिख रहे हैं। एक खबर में छपा है कि हरियाणा में नवीन जिंदल सहित भाजपा के जो दस उम्मीदवार हैं उनमें से छह पहले कांग्रेस में रहे हुए हैं, और नवीन जिंदल तो शायद उम्मीदवार घोषित होने के 24 घंटे पहले तक कांग्रेस में थे। वैसे कई लोगों का यह भी कहना है कि भाजपा बहुत चतुराई से अपनी पार्टी के सैद्धांतिक मुद्दों को संवैधानिक अमल में लाने के लिए केन्द्र और राज्यों में हर जगह अपनी सरकार बनाने के लिए चुनावी उम्मीदवारों के मामले में सिद्धांतों को किनारे रख रही है। यह बड़ी जंग जीतने के लिए एक छोटी शिकस्त सरीखा मामला है। इसलिए भाजपा आज कांग्रेस से छांट-छांटकर हर ऐसे व्यक्ति को ला रही है जो कि किसी संसदीय सीट को जीतने में पार्टी के काम आए। 

लेकिन हमारी आज की बात जहाज छोडक़र कूदने वाले ऐसे लोगों के बारे में नहीं है, और न ही हम डूबते जहाज को छोडक़र कूदने वाले चूहों को गलत मानते, हर किसी को अपनी आत्मरक्षा का न सिर्फ हक रहता है, बल्कि आत्मरक्षा उनकी जिम्मेदारी भी रहती है। आज इस मुद्दे पर लिखने की एक दूसरी ही वजह आ गई है, प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा का एक बयान सामने आया है जिसमें वो कह रहे हैं कि अमेठी के लोग चाहते हैं कि वे वहां से राजनीति शुरू करके संसद पहुंचें। पिछले आम चुनाव में अमेठी से राहुल को भाजपा की स्मृति ईरानी ने 55 हजार से अधिक वोटों से हराया था, और अभी भाजपा ने फिर उन्हें उम्मीदवार बनाया है। राहुल गांधी ने केरल के वायनाड से फिर फॉर्म भरा है जहां से वे पिछली बार जीतने की वजह से संसद पहुंच पाए थे। दूसरी तरफ सोनिया गांधी ने लोकसभा चुनाव से सन्यास घोषित कर दिया है, और वे राजस्थान के रास्ते राज्यसभा पहुंच गई है। इस तरह अभी अमेठी और रायबरेली, इन दोनों संसदीय सीटों पर कांग्रेस के कोई उम्मीदवार तय नहीं किए गए हैं, और माना जा रहा है कि सोनिया गांधी की जगह प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव लड़ सकती हैं। और अगर राहुल गांधी अमेठी से भी नामांकन नहीं भरते हैं, तो फिर उस एक सीट को लेकर रॉबर्ट वाड्रा का जुबानी जमाखर्च कुछ मायने रख सकता है। उनका यह कहना कि पार्टी अगर चाहे तो वे अमेठी से चुनाव लड़ सकते हैं, और वे चाहते हैं कि पहले प्रियंका सांसद बने, और फिर वे भी आ सकते हैं। 

देश में कुनबापरस्ती की अनगिनत तोहमतें झेलने वाला सोनिया-परिवार आज अगर कोई और नुकसान पा सकता है, तो उसका नाम रॉबर्ट वाड्रा है। एक बार पहले भी सोनिया के इस दामाद ने एक बयान दिया था जिसमें कहा था कि पहले प्रियंका राजनीति में आएंगी, फिर वे भी आएंगे, और फिर उन्होंने शायद अपने बच्चों का भी नाम लिया था। कांग्रेस संगठन में रॉबर्ट वाड्रा की कोई औपचारिक जगह तो नहीं है, लेकिन पार्टी के तीन सबसे ताकतवर लोगों के सबसे करीबी रिश्तेदार होने के नाते उनकी कही बात का वजन कम नहीं आंका जा सकता। कांग्रेस संगठन की राजनीति के अंदरुनी जानकार लोग संगठन के जटिल मामलों में प्रियंका के साथ-साथ रॉबर्ट वाड्रा का भी नाम लेते हैं। कई प्रदेशों में जमीनों के संदिग्ध बड़े-बड़े कारोबार में रॉबर्ट का नाम लंबे समय से घिरा हुआ है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि उन्हें लेकर कांग्रेस और सोनिया परिवार पर गंभीर आरोप लगाने वाली बीजेपी भी यह नहीं चाहती है कि रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ मामलों की जांच पूरी हो जाए। जब तक ऐसी जांच चल रही हैं, तभी तक तोहमतों की संभावनाएं बनी रहती हैं, और रविशंकर प्रसाद की पत्रकारवार्ताओं में जान बाकी रहती है। अब रॉबर्ट वाड्रा मानो इस चुनाव के एक पखवाड़े पहले अपनी राजनीतिक हसरत उजागर करके भाजपा के चेहरे पर मुस्कुराहट ला रहे हैं। परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाकर चल रही भाजपा को दामाद बाबू का आज बड़ा सहारा मिल रहा है। 

रॉबर्ट वाड्रा की इस बयानबाजी से एक पुरानी कहानी याद आती है जिसमें तीन तोतले नौजवानों की शादी न हो पाने से परेशान बाप उन्हें चेतावनी देता है कि तीन लड़कियों का एक पिता उन्हें देखने आ रहा है, और उसके सामने उन्हें विनम्र बने रहना है, मुंह भी नहीं खोलना है, जो बात करनी है वह पिता ही कर लेगा। लड़कियों के पिता के आने पर लडक़ों का पिता अपने बेटों को खूब विनम्र बताता है, और कहता है कि उसकी मौजूदगी में बेटे मुंह भी नहीं खोलते। लड़कियों का पिता बड़ा प्रभावित होता है, लेकिन तभी थाली के पास चूहा दिखता है, और एक लडक़ा उस चूहे के बारे में तुतलाते हुए बोल पड़ता है। दूसरा बेटा बाप को बताने लगता है कि उनके कहे के खिलाफ भाई बोल पड़ा है। और तीसरा बेटा बोल पड़ता है कि दोनों भाई बोल पड़े हैं लेकिन वह अब तक चुप बैठा है। कांग्रेस पार्टी के दामाद का यह बयान कुछ बरस पहले भी आत्मघाती था, आज भी आत्मघाती है। उसके कारोबार से पार्टी को पहले भी कोई साख नहीं मिली, और आज भी पार्टी उसकी तोहमत ही झेलती है। लेकिन जैसा कि किसी भी आम भारतीय परिवार में होता है, दामाद की गलतियों और गलत कामों को ससुराल पक्ष अपने सिर-माथे पर मंजूर कर लेता है, कुछ वैसा ही रॉबर्ट वाड्रा के बयानों से हो रहा है। बाकी लोगों ने तो पार्टी छोडक़र कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है, सोनिया परिवार का दामाद तो पार्टी और घर में बैठे-बैठे ही अपने धंधे, और अपने बयान, दोनों से पार्टी का नुकसान कर रहा है। पता नहीं क्यों उस कहानी के तीन भाईयों की तरह हर किसी को बेमौके पर बेतुकी बात करने का शौक रहता है, अब कांग्रेस पार्टी इस अकेले बयान का पता नहीं कितना नुकसान झेलेगी।   (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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