संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक आग ने सरकारी क्षमता की कमी उजागर कर दी...
06-Apr-2024 4:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : एक आग ने सरकारी क्षमता की कमी उजागर कर दी...

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कल राज्य की सरकारी बिजली कंपनी के खुले गोदाम में रखे हजारों ट्रांसफार्मरों और दूसरे उपकरणों में आग लग गई। इनमें तेल भी भरा रहता है, इसलिए यह आग बहुत भयानक रही, और आसानी से काबू में नहीं आ पाई। इससे लगा हुआ बहुत बड़ा रिहायशी इलाका भी था, और वहां के लोगों को हटाना पड़ा क्योंकि तेल की इस आग का धुआं इतना भयानक था कि उसके बादलों ने दूर-दूर तक इलाकों को ढंक लिया था। जिस तरह कल दोपहर से आज सुबह तक लगातार आग बुझाना जारी रहा, उससे कई सवाल खड़े होते हैं। और चूंकि यह हाल राजधानी रायपुर का है, और एक सरकारी कंपनी के अपने गोदाम का है, इसलिए इसे एक मिसाल मानकर भविष्य के खतरों के बारे में सोचना चाहिए। 

अभी कुछ ही दिन हुए हैं कि फायर ब्रिगेड के मुखिया, प्रदेश के एक सबसे वरिष्ठ आईपीएस अफसर से किसी अखबार ने फायर ब्रिगेड की क्षमता के बारे में पूछा था तो उनका जवाब था कि यहां कर्मचारी नियुक्त करने के लिए राज्य शासन को लिखा गया है, लेकिन अभी तक मंजूरी मिली नहीं है। कुछ अरसा पहले तक फायर ब्रिगेड को नगर निगम चलाती थी, और खबरें बताती हैं कि इनके लिए पर्याप्त कर्मचारी कभी नहीं रहते थे, दमकल के साथ चलने वाले लोग बुजुर्ग हो गए थे, उन्हें ठीक से दिखता नहीं था, फायर ब्रिगेड पुलिस के मातहत करने के बाद भी उसकी क्षमता में कोई इजाफा सरकार ने नहीं किया क्योंकि इसकी जरूरत मुसीबत के वक्त ही पड़ती है, और इससे कोई वोट नहीं मिलते। जिस तरह सरकारों के खुफिया विभाग की नाकामी किसी आतंकी हमले के बाद ही समझ आती है, उसी तरह फायर ब्रिगेड की जरूरत किसी बड़ी अग्नि दुर्घटना के बाद ही समझ आती है। कल तो राजधानी की अपनी दमकल-क्षमता से परे और जगहों की दमकलें भी झोंक दी गई थीं, लेकिन शायद 20 घंटे बाद भी वहां पानी डाला जा रहा था। 

अब यह समझने की जरूरत है कि जब कोई शहर 10-20 मंजिला इमारतों वाला होने लगता है, और जिसकी लंबाई-चौड़ाई 10-20 किलोमीटर से ज्यादा फैल जाती है, आबादी 25 लाख से अधिक होने लगती है, जब कोई शहर उद्योग और कारोबार का केन्द्र हो जाता है, और इन वजहों से वहां हजारों बड़े गोदाम हो जाते हैं, तो वहां शहर के अग्नि दुर्घटना के खतरे का अंदाज लगाना, और फिर उसी हिसाब से बचाव की तैयारी करना जरूरी हो जाता है। क्या यह कल्पना की जा सकती है कि कल जब ट्रांसफार्मरों के इस गोदाम में आग लगी, उसी वक्त शहर के किसी दूसरे सिरे पर कोई और बड़ी आग लग गई होती, तो क्या होता? अफसरों ने चारों तरफ से इंतजाम करके इस आग पर तो काबू पा लिया, लेकिन इसके साथ ही दमकल-क्षमता का खोखलापन भी उजागर हो गया। 

अब जरा शहर की योजना के बारे में भी बात कर ली जाए। जहां पर तेल से भरे हुए हजारों ट्रांसफार्मर रखे थे, उसके चारों तरफ आबादी बस चुकी है, और ऐसे किसी भी खतरे की नौबत में इन सबकी जिंदगी, या उनकी सेहत खतरे में पडऩी ही थी। इसलिए किसी एक जगह पर इतने अधिक ट्रांसफार्मर रखना भी ठीक नहीं था। सरकारी विभागों को तो कम से कम अपनी नागरिक जिम्मेदारी समझना चाहिए, और ऐसे गोदाम शहर से कुछ दूर बनाने चाहिए थे, और वहां आग बुझाने का अपना इंतजाम भी होना चाहिए था। हमारा ख्याल है कि म्युनिसिपल अपने प्रॉपट्री टैक्स से या राज्य सरकार उद्योगों और कारोबारों से मिलने वाले टैक्स का एक हिस्सा शहर के ट्रैफिक के इंतजाम के लिए दें, एक हिस्सा आग बुझाने की क्षमता बढ़ाने के लिए दें, और शायद उस टैक्स का कुछ हिस्सा जख्मियों को अस्पताल पहुंचाने के लिए भी रखा जाए। वैसे भी जो राज्य खूब कमा रहा है, और खूब खर्च कर रहा है, तो उसमें आपदा प्रबंधन पर खर्च में कटौती नहीं करना चाहिए। इस एक हादसे को लेकर सरकार को अपने खुद के पूरे ढांचे का सुरक्षा ऑडिट करना चाहिए, और प्रदेश के तमाम शहरों के लिए, औद्योगिक क्षेत्रों के लिए आपदा प्रबंधन क्षमता विकसित करनी चाहिए। 

आज शहरी विकास और औद्योगिकीकरण के साथ-साथ कई किस्म के खतरे एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं। बड़ी होटलों या मॉल के तहखानों में सैकड़ों गाडिय़ां इकट्ठी रहती हैं, और उनमें अगर आग लग जाए, तो वह अधिक बड़ी तबाही ला सकती है। इसलिए सरकारी हों, या निजी, तमाम किस्म के ढंाचों और एक जगह इकट्ठा लोगों, गाडिय़ों, के लिए हिफाजत के अतिरिक्त इंतजाम करने चाहिए। हम जो कह रहे हैं इसमें कोई अनोखी बात नहीं है, और साधारण शहरी योजना में इन सारी सावधानियों का जिक्र रहता है, लेकिन जब प्रशासन और स्थानीय संस्थाओं पर राजनीतिक दबाव रहता है, तो फिर सारे सुरक्षा-इंतजाम धरे रह जाते हैं। अगर शहरीकरण की योजनाओं पर नियमों को ईमानदारी से लागू किया जाता, तो ऐसे ज्वलनशील ट्रांसफार्मरों का इतना बड़ा जमावड़ा आबादी के इतने बगल में नहीं हो सकता था। अब भी समय है, और इस गोदाम में लोग नहीं थे, आसपास के इलाकों तक भी आग रिहायशी इमारतों तक नहीं पहुंची थी, इसलिए लोगों को नुकसान नहीं हुआ। लेकिन आगे जाकर ऐसा नहीं होगा, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। इसलिए राज्य सरकार को राज्य स्तर पर सभी सुरक्षा पैमानों पर जांच करनी चाहिए, और जहां पर ऐसे खतरे दिखें, उन्हें दूर भी करना चाहिए। पहली बार लगी ठोकर लापरवाही से भी हो सकती है, लेकिन पहली ठोकर से सबक लेकर कोई कार्रवाई न की जाए, और ऐसी ही अगली ठोकर लगे तो वह गैरजिम्मेदारी का नतीजा ही कहलाती है। सरकार को जनजीवन पर खतरा मंडराने के पहले प्रदेश की सुरक्षा जांच लेनी चाहिए।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)  

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