संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : वैज्ञानिक समझ का खून पीकर ही पनपता है अंधविश्वास, कैसे रोकें?
07-Apr-2024 4:15 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  वैज्ञानिक समझ का खून पीकर ही पनपता है अंधविश्वास, कैसे रोकें?

एक खबर है कि एक निजी बैंक के अफसर से एक तथाकथित तांत्रिक ने श्मशान में नोटों की बारिश करवाने के नाम पर ढाई लाख रूपए ठग लिए। यह घटना एक बड़े शहर में हुई, और झांसे में आने वाला व्यक्ति बैंक का अफसर है। किसी आम व्यक्ति को नोटों की बारिश पर भरोसा हो गया होता तो भी समझ आता, बैंक अफसर का ऐसा झांसा खाना बताता है कि लोगों में वैज्ञानिक समझ किस कदर कमजोर हो चुकी है। अभी कल ही पास के एक दूसरे इलाके में झाडफ़ूंक करने वाला एक बैगा पकड़ाया जो कि एक शादीशुदा महिला को उसके घर से जबर्दस्ती ले जाकर उससे बलात्कार कर चुका था। इस तरह के लोगों के हाथों धन और तन लुटवाने वाले लोग कम नहीं रहते, बस यही रहता है कि वे पुलिस रिपोर्ट के लिए सामने नहीं आते हैं कि अब पूरी दुनिया के सामने बेवकूफ भी साबित होने का क्या फायदा? 

दुनिया कहां पहुंच चुकी है, लोग अब अपने गुजर चुके माता-पिता की आवाज के कुछ शब्दों की रिकॉर्डिंग को कम्प्यूटर के एआई एप्लीकेशन में डालकर अपनी डाली दूसरी बातें उनकी आवाज में पल भर में पा सकते हैं। इंसान को चांद पर गए 50 बरस हो चुके हैं, और हिन्दुस्तान में लोग कहीं ग्रहों के चक्कर में पड़े हैं, तो कहीं तंत्र-मंत्र के। जिस मंगल ग्रह को लेकर दुनिया भर से अलग-अलग अंतरिक्ष अभियान चल रहे हैं उस मंगल ग्रह का हिन्दुस्तान के हिन्दू समाज में इतना ही योगदान रहता है कि वह किसी लडक़ी या लडक़े के नाम के साथ चिपककर, उनके मंगली होने की चेतावनी देता है, और शादी में अड़ंगा डालता है। इतनी दूर बसा एक ग्रह हिन्दुस्तानी शादियों में सबसे बड़ा अड़ंगा बना हुआ है। अंधविश्वास लोगों के सिर चढक़र बोल रहा है, और विज्ञान और टेक्नॉलॉजी का सारा मजा लेते हुए भी लोग वैज्ञानिक सोच से दूर जा रहे हैं। 

सुनने में यह बात कुछ लोगों को बुरी लग सकती है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि हिन्दुस्तानी जिंदगी में धर्म का जो बोलबाला बढ़ा है, उसने वैज्ञानिक सोच को खोखला कर दिया है। जैसा कि किसी भी धर्म के मिजाज से जाहिर है, उसका किसी तथ्य और तर्क से कोई लेना-देना नहीं रहता है, बल्कि इन दोनों चीजों को छोड़ देने के बाद ही धर्म का काम शुरू हो पाता है। इसलिए जैसे-जैसे लोगों के दिमाग पर, उनकी जिंदगी में धर्म हावी होते जाता है, वैसे-वैसे वे तर्क, और फिर इंसाफ की बातों को भी छोडऩे लगते हैं, क्योंकि धर्म ने तो इंसाफ को छोडक़र अंधविश्वास पर चलने को ही बढ़ावा दिया जाता है। धर्म में हर किस्म के बुरे काम, और जुर्म से मुक्त हो लेने के लिए तरह-तरह के प्रायश्चित का इंतजाम किया गया है, और कमजोर तबकों को झांसा देने के लिए यह भी समझा दिया जाता है कि इस जन्म में मिल रही तकलीफें पिछले जन्म के बुरे कामों का नतीजा हैं, और इस जन्म में अच्छे काम करने से अगले जन्म में उसका फल मिलेगा। धर्म का यह सिलसिला पूरी दुनिया के तकरीबन हर धर्म में मजबूती से जमा हुआ है, और आस्था के लिए तर्कमुक्त अंधविश्वास की जो जमीन लगती है, उस जमीन पर तांत्रिक और दूसरे करिश्मे दिखाने वाले लोग भी अपनी फसल लेने लगते हैं। 

अभी दो दिन पहले ही छत्तीसगढ़ के बड़े-बड़े अखबारों में पहले पन्ने पर पूरे पेज का एक इश्तहार छपा है जिसमें एक किसी बाबा के करिश्मों का जिक्र है, और एक सार्वजनिक कार्यक्रम में सभी के दुखों और रोगों का पल भर में अंत करने का दावा किया गया है। इस बाबा ने दुनिया भर के राष्ट्र प्रमुखों की तस्वीरों को इस इश्तहार में डाल दिया है जिनका कि इस बाबा के किसी दावे से कोई लेना-देना नहीं है। भारत के भी कुछ पिछले और वर्तमान राष्ट्रपतियों के साथ इस बाबा की फोटो है, और तरह-तरह की गंभीर बीमारियों के इलाज का दावा इसमें किया गया है जो कि जादू और चमत्कार के दावों के खिलाफ बने हुए कानून के तहत एक जुर्म है। जगह-जगह विश्व स्वास्थ्य संगठन का जिक्र कर दिया गया है, और कम पढ़े-लिखे लोग, या अधिक पढऩे में दिलचस्पी नहीं रखने वाले लोग यह मान लेंगे कि डब्ल्यूएचओ भी इस बाबा को मानता है। जाहिर तौर पर ही फर्जी दावों वाले ऐसे इश्तहार को न तो छापने में बड़े-बड़े अखबारों को कोई परहेज है, और न ही शासन-प्रशासन को इस भगवा-बाबा पर कार्रवाई में दिलचस्पी है। 

धर्म कब अपनी कागजी और किताबी परिभाषा से बाहर निकलकर अंधविश्वास बन जाता है, लोगों को अंधभक्त बना देता है, और तरह-तरह से हिंसक होकर अन्याय का औजार भी बन जाता है, यह पता भी नहीं चलता।  हिन्दुस्तान में धर्म, आध्यात्म, धर्मान्धता, साम्प्रदायिकता, और अंधविश्वास के बीच कोई फासले नहीं रह गए हैं। धर्म और आध्यात्म के नाम पर लोगों को धोखा देने वाला रामदेव नाम का स्वघोषित बाबा अभी सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगते खड़ा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी वह झूठे दावों वाले इश्तहार छपवा रहा था, और बयान दे रहा था। रामदेव और उस सरीखे कई बाबा आयुर्वेद और योग के नाम को भी भुनाने में लगे रहते हैं, और भारत के इतिहास की जो गौरवशाली बातें हो सकती थीं, वे सब बेजा इस्तेमाल का सामान बन चुकी हैं। आसाराम से लेकर राम-रहीम तक अनगिनत बाबा ऐसे हैं जो कि भक्तों से बलात्कार कर रहे हैं, और उनके नाबालिग बच्चों से भी। यह बात समझने की जरूरत है कि जो आसारामों को अपने बच्चे दे देते हैं, वे आसमान से नोटों की बारिश के दावे को सच मानकर अपने लाखों रूपए भी तांत्रिक नाम के जालसाज को दे रहे हैं। यह पूरा सिलसिला देश में लोगों की तर्कशक्ति और वैज्ञानिकता के खत्म होने का एक बड़ा सुबूत है। जिस देश में धर्म ने कर्म की जगह कब्जा कर ली है, और लोगों को परिवार के खाने का इंतजाम करने के बजाय सडक़ किनारे धार्मिक शामियानों में मुफ्त खाना मिल जाना बेहतर लग रहा है, वहां पर तांत्रिक कभी बेरोजगार और भूखे नहीं रह सकते। पता नहीं यह सिलसिला और कहां तक जाएगा।   

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)        

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