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जब राहुल सांकृत्यायन ने रायपुर आकर कहा था ‘छत्तीसगढ़ के अलग होने की भावना स्वाभाविक’
09-Apr-2024 2:47 PM
जब राहुल सांकृत्यायन ने रायपुर आकर कहा था ‘छत्तीसगढ़ के अलग होने की भावना स्वाभाविक’

अपूर्व गर्ग

मेरे छत्तीसगढ़ की तरफ से 9 अप्रैल को राहुल सांकृत्यायन जी को जन्मदिन मुबारक, नमन ।

मेरे छत्तीसगढ़ को खासतौर पर रायपुर को पता होना चाहिए छत्तीसगढ़ एक अलग प्रदेश क्यों बने इस पर 75 बरस पहले राहुल जी छत्तीसगढ़ एक अलग प्रदेश बने, इसे छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए जरूरी ही नहीं उनकी भावनाएं भी समझते थे।

रायपुर और छत्तीसगढ़ को पता होना चाहिए कितने दूरदर्शी थे राहुल जी और छत्तीसगढ़ पर अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणी वो रूस या कालिंपोंग या मसूरी में बैठकर नहीं लिखते बल्कि आजादी के तुरंत बाद रायपुर आते हैं और यहाँ लोगों की भावनाओं को समझने के बाद जनभावनाओं को समझते हैं फिर लिखते हैं।

आजादी से पहले पंडित सुंदर लाल शर्मा और ठाकुर प्यारे लाल सिंह एक अलग छत्तीसगढ़ राज्य की चर्चा करते रहे बाद में इन सभी और डॉ खूबचंद बघेल ने छत्तीसगढ़ अलग प्रदेश को लेकर मुहीम छेड़ी।

गौरतलब है आजादी के बाद मध्यप्रदेश जिसमें छत्तीसगढ़ भी शामिल था, इसके पहले मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल रायपुर से और गवर्नर ई। राघवेंद्र राव भी छत्तीसगढ़ बिलासपुर से थे फिर भी अलग छत्तीसगढ़ प्रदेश की मांग उठ चुकी थी।

ठीक इसी दौरान महापंडित राहुल सांकृत्यायन 2 जनवरी 1948 को बाबा नागार्जुन के साथ बम्बई से बम्बई मेल से चलकर 3 जनवरी 1948 को रायपुर आते हैं।

राहुल जी छत्तीसगढ़ पर महत्वपूर्ण टिप्पणी दर्ज करते हैं। छत्तीसगढ़ के घने जंगलों , 50 इंच बारिश, खनिजों के अथाह भण्डार के साथ छत्तीसगढ़ की पोटेंशियलइटी का जिक्र कर खासतौर पर वो रेखांकित करते हैं-

‘ छत्तीसगढ़ की जनसँख्या 45 लाख से ऊपर है । मध्यप्रदेश का यह पिछड़ा हुआ भाग है। यद्दपि वहां के मुख्यमंत्री यहीं के हैं। पिछड़े और उपेक्षित होने से लोगों में छत्तीसगढ़ के अलग प्रदेश होने की भावना स्वाभाविक है...’

राहुल जी को उस दौर के छत्तीसगढ़ विद्यार्थी फेडरेशन ने आमंत्रित किया था।

4 जनवरी 1948, शनिवार को ये गोष्ठी आयोजित की गई थी। इस गोष्ठी में बड़ी मात्रा में सोशलिस्ट और किसानों ने भी भाग लिया था।

चूँकि राहुल जी उसी दौरान सोवियत रूस के अपने लम्बे प्रवास के बाद आये थे इसलिए गोष्ठी में मौजूद लोगों ने उनसे खासकर सोवियत व्यवस्था के बारे में बहुत कुछ जानना चाहा। इसके बाद राहुल जी ने रायपुर की इस गोष्ठी में आये लोगों से मिलने के बाद ये दर्ज किया था-‘रायपुर में हिंदी के महान कवि पद्माकर की संतानों से मिलकर बड़ी प्रसन्नता हुई। और इसने बतला दिया कि हिंदी के निर्माण में छत्तीसगढ़-प्राचीन दक्षिण कोसल-किसी से पीछे नहीं रहा।’

5 जनवरी, रविवार 1948 को वे रायपुर से बिलासपुर गाड़ी बदलते हुए प्रयाग की ओर रवाना हो जाते हैं ।

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