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क्या अमेरिका के दबाव के कारण इसराइल हमास के बीच गाजा में थमेगी जंग
12-Apr-2024 2:02 PM
क्या अमेरिका के दबाव के कारण इसराइल  हमास के बीच गाजा में थमेगी जंग

‘ये स्पष्ट नहीं है कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू इस डील के लिए तैयार हैं या नहीं। ये भी साफ़ नहीं है कि हमास के राजनीतिक नेता याह्या सिनवार भी समझौते के लिए राज़ी हैं या नहीं। लेकिन जब ये दोनों तैयार होंगे तो संभव है कि कोई बीच का रास्ता निकालना जाए।’

ह्यूगो बाचेगा

इसराइल और फ़लस्तीनी सशस्त्र गुट हमास के बीच संघर्षविराम आसान नहीं रहने वाला था।

हफ्तों की बातचीत किसी भी तरह के समझौते तक पहुंचने में नाकाम रही। लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।

इस कड़ी में सबसे बड़ा संकेत बाइडन प्रशासन की ओर से सीआईए के चीफ विलियम बर्नस को ताजा बातचीत के लिए काहिरा भेजना है।

वहीं, हमास कम से कम सार्वजनिक तौर पर स्थाई सीजफायर, इसराइली सेना की पूरी तरह से वापसी और विस्थापित फलस्तीनियों को बेरोकटोक लौटने देने की अपनी शुरुआती मांगों पर अड़ा हुआ है।

इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू हालांकि हमास के पूरी तरह से सफाए और बंदी बनाए गए इसराइली नागरिकों की रिहाई तक लड़ाई जारी रखने का दावा कर रहे हैं।

अमेरिकी प्रेशर

साल 2011 में इसराइली सैनिक गिलाड शालित की रिहाई के लिए हमास से बातचीत की पहल करने वाले गेरशोन बास्किन कहते हैं, ‘इसराइल के ऊपर अमेरिका का दबाव है। मिस्र और क़तर हमास पर दबाव डालेंगे। ये साफ़ तौर पर जाहिर है।’

गेरशोन बास्किन ने आगे कहा, ‘सच तो ये है कि सीआईए प्रमुख वहां मौजूद थे। इससे वार्ता में भाग ले रहे सभी आला अधिकारियों को इसमें भाग लेना पड़ा। यह अमेरिका की तरफ से बढ़ रहे प्रेशर का संकेत देता है।’ लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बातचीत किसी समझौते तक पहुंच गई है।

अमेरिका समेत इसराइल के प्रमुख सहयोगी देशों के बीच बढ़ती निराशा के बीच इसराइली अधिकारियों ने कुछ मामलों में रियायत बरतने का संकेत दिया है।

इस हफ्ते की शुरुआत में इसराइल के रक्षा मंत्री योएव गैलेंट ने कहा था कि यह संघर्षविराम का सही वक्त है।

संघर्ष विराम

किसी भी डील में हमास द्वारा बंदी बनाए गए कुछ इसराइली नागरिकों की रिहाई के बदले में इसराइली जेलों में बंद फ़लस्तीनी कैदियों को छोडऩे की उम्मीद की जा रही है।

नवंबर में किया गया अस्थाई युद्ध विराम का समझौता इसी बुनियाद पर टिका था।

इसराइली अधिकारियों के अनुसार, गाजा में अभी भी उसके 133 लोग बंदी हैं। हालांकि हमास ने जितने लोगों को अगवा किया था, उनमें कम से कम 30 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है।

अमेरिकी प्रस्ताव के तहत, छह हफ़्तों के संघर्ष विराम के शुरुआती चरण में हमास 40 बंधकों को रिहा करेगा जिनमें महिला, सैनिकों और किसी बीमारी से जूझ रहे 50 साल से अधिक उम्र के पुरुष बंधकों को प्राथमिकता दी जाएगी।

इसके बाद इसराइल कम से कम 700 फलस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा जिनमें इसराइली नागरिकों की हत्या के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे सौ कैदी भी होंगे। अतीत में इसराइल में इस तरह का फैसला विवादास्पद साबित हुआ है।

बंधकों की वापसी

लेकिन हमास ने कथित रूप से वार्ताकारों से कहा है कि उसे रिहाई के लिए जिन बंधकों को प्राथमिकता देने के लिए कहा जा रहा है, उसके पास उस कैटगिरी के 40 बंधक नहीं हैं।

इससे इस बात की आशंकाएं बढ़ गई हैं कि मारे गए बंधकों के बारे में पहले जो अनुमान लगाए गए थे, उससे अधिक संख्या में लोग मारे गए हैं या पिर उन्हें फ़लस्तीनी इस्लामिक जिहाद जैसे अन्य सशस्त्र गुटों को सौंप दिया गया है।

इसराइल में समाज और राजनीति के अलग-अलग धड़ों के दबाव की वजह से प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के पास किसी तरह की रणनीति अपनाने के लिए ज़्यादा गुंजाइश नहीं दिखाई देती है।

ज़्यादातर इसराइली लोग युद्ध के समर्थन में हैं लेकिन उन पर बंधक बनाए गए नागरिकों की रिहाई के लिए समझौता करने का दबाव भी है।

हमास के हाथों के अगवा किए गए बंधकों के परिजन बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। वे प्रधानमंत्री पर ये आरोप लगा रहे हैं कि बंधकों की वापसी को प्राथमिकता देने के बजाय वे अपने राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अधिक फिक्रमंद हैं।

नेतन्याहू के इस्तीफे की मांग भी लगातार बढ़ रही है।

नेतन्याहू की गठबंधन सरकार

नेतन्याहू की गठबंधन सरकार में भी विभाजन दिखना शुरू हो गया है। उनके गठबंधन में धुर दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी पार्टियां हैं जो हमास को हरगिज बख्शने के लिए तैयार नहीं है। ये पार्टियां किसी भी कीमत पर युद्ध जारी रखना चाहती हैं।

इसराइल के वित्त मंत्री बेज़ालेल स्मोत्रिच ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू से कहा है कि बंधकों को छुड़ाने का एकमात्र रास्ता हमास पर लगातार हमले करके उसकी तबाही है।

उधर, इसराइल के सिक्योरिटी मंत्री बेन ग्वीर ने कहा है कि अगर सेना अपने वादे के मुताबिक रफाह पर हमला नहीं बोलती है तो नेतन्याहू को पद से हट जाना चाहिए।

इसराइली अधिकारियों का कहना है कि रफाह पर हमला जरूरी है क्योंकि वहां हमास के चार ब्रिगेड और कई वरिष्ठ नेता छिपे हो सकते हैं।

लेकिन इसराइल के बाहर हर देश रफाह पर हमले के खिलाफ है।

रफाह ऑपरेशन

रफाह में 15 लाख फलस्तीनी शरण लिए हुए हैं। ये सब लोग टेंटो में खस्ताहाल जिंदगी बिता रहे हैं। रफाह पर किसी भी हमले के परिणाम इन लोगों के लिए गंभीर हो सकते हैं। घरेलू मोर्चे पर आलोचना से बचने के लिए नेतन्याहू ने सोमवार को ही कह दिया था कि रफाह ऑपरेशन के लिए तारीख निर्धारित कर दी गई है।

बास्किन कहते हैं, ‘इस वक्त इसराइल की सरकार के भीतर विद्रोह चल रहा है। ये विद्रोह ख़ुद प्रधानमंत्री की लिकुड पार्टी के भीतर भी छिड़ चुका है ताकि वो ऐसी कोई डील न करें जो उन्हें मंज़ूर न हो।’

वे कहते हैं, ‘नेतन्याहू निर्णय करने के लिए स्वतंत्र नहीं बचे हैं। वे अपनी सरकार के बंधक बन चुके हैं।’

ताजा प्रस्ताव पर हमास ने अभी तक कोई औपचारिक जवाब नहीं दिया है लेकिन कहा है कि वो ऐसे किसी समझौते के लिए तैयार है जिसकी वजह से ‘हमारे लोगों पर ज़्यादतियां रुक जाएं’ और जो प्रस्ताव दिया गया है उससे इस उद्देश्य की पूर्ति होते हुए नहीं दिख रही है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर

हमास ने एक बयान जारी कर कहा, ‘इसराइल की पोजिशन अब भी हठ वाली है।’ अमेरिका ने हमास के बयान को ‘अधिक उत्साहित न करने वाला’ बताया है।

हमास की ओर से अंतिम निर्णय याह्या सिनवार लेगें। माना जाता है कि हमास के ये शीर्ष नेता गाजा की सुरंगों में छिपा हुआ है और बंधक भी उसी के साथ हैं। लेकिन उनतक पहुँचना बहुत ही कठिन है।

बास्किन कहते हैं कि हमास इसराइली जेलों में बंद फलस्तीनियों की रिहाई पर भी बात करना चाहता है। हमास चाहता है कि जेल से रिहा होने वाले फलस्तीनियों को किसी दूसरे मुल्क में न भेजा जाए।

हमास का मानना है कि बिना गारंटी के स्थाई युद्धविराम मुमकिन नहीं है क्योंकि जैसे ही बंधक रिहा किए जाएंगे, इसराइल अपने हमले दोबारा शुरू कर देगा।

हाल के दिनों में हमास के नेतृत्व ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसराइल की कड़ी आलोचना होते हुए देखी है। गजा में भारी पैमाने पर तबाही के बावजूद उन्हें लगता है कि हालात उनके पक्ष में आ रहे हैं।

याह्या सिनवार

सात अक्तूबर को इसराइल पर हमले में 1200 लोग मारे गए थे। फलस्तीनी के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक उस हमले के बाद इसराइली सेना की कार्रवाई में 33,000 फलस्तीनी मारे गए हैं।

इसके अलावा गज़़ा का अधिकतर हिस्सा ज़मींदोज़ हो चुका है और कई लोग अकाल की कगार पर पहुँच चुके हैं।

बास्किन कहते हैं, ‘ऐसे स्थितियों से निपटने के तज़ुर्बे के आधार पर कह सकता हूं कि मुख्य चुनौती ये है कि क्या दोनों तरफ़ निर्णय लेने वाले व्यक्ति इस डील के लिए तैयार हैं भी या नहीं?’

‘ये स्पष्ट नहीं है कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू इस डील के लिए तैयार हैं या नहीं। ये भी सा़ नहीं है कि हमास के राजनीतिक नेता याह्या सिनवार भी समझौते के लिए राजी हैं या नहीं। लेकिन जब ये दोनों तैयार होंगे तो संभव है कि कोई बीच का रास्ता निकालना जाए।’

नेतन्याहू की वार्ताओं के प्रति गंभीरता की ओर ध्यान खींचते हुए हमास के एक प्रवक्ता ने कहा कि वो तो रफ़ाह पर हमले के तैयारी में दिख रहे हैं।

(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूजरूम की ओर से प्रकाशित) (bbc.com/hindi)

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