संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : धरती को जो बचा सकें, वैसी सिलवटें बड़ी अच्छी
13-Apr-2024 6:50 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय : धरती को जो बचा सकें, वैसी सिलवटें बड़ी अच्छी

आज हिन्दुस्तान में किसी भी व्यक्ति के सभ्य होने के पैमानों में से एक यह भी है कि उसके कपड़े कैसे हैं? कपड़े साफ-सुथरा रहना तो जरूरी है, लेकिन इसके साथ-साथ अधिकतर जगहों पर कपड़े प्रेस किए हुए भी रहने की उम्मीद की जाती है। जहां लोगों को बिजली से चलने वाली आयरन नहीं मिलती है, और जहां कोयला जलाकर गर्म की जाने वाली इस्त्री भी नहीं रहती है, वहां भी लोग किसी सपाट तले वाले लोटे में सुलगते कोयले डालकर उससे लोटा गर्म करके कपड़े प्रेस कर लेते हैं। कपड़े प्रेस करना हिन्दुस्तान में सभ्य होने का एक सुबूत माना जाता है। अब आईआईटी मुम्बई के एक प्रोफेसर चेतन सिंह चौहान ने सोशल मीडिया पर यह लिखा है कि एक जोड़ी  कपड़े प्रेस करने पर धरती पर करीब दो सौ ग्राम कार्बनडाइऑक्साइड जुड़ जाती है। ऐसे लोग अपने कपड़े तो प्रेस करते हैं, लेकिन इसके लिए बिजली या कोयला जो कुछ भी खर्च करते हैं, और धरती पर जो गर्मी पैदा करते हैं उन सबसे धरती पर प्रदूषण बढ़ता है जिसका भुगतान उनको भी करना पड़ता है जो कि अपनी पसंद से, या अपनी आर्थिक स्थिति की वजह से कपड़े प्रेस नहीं करते, या करवाते हैं। कुछ लोगों में तो कपड़े प्रेस करवाने का दीवानापन इतना रहता है कि वे पर्दे, चादर, तकियागिलाफ, और चड्डी-बनियान तक प्रेस करवाते हैं। जाहिर है कि वे धरती पर बहुत सा ऐसा कार्बन जोड़ते हैं जो गैरजरूरी है। 

जो लोग जींस या टी-शर्ट पहनते हैं, वे आमतौर पर कपड़े प्रेस करवाने से बच जाते हैं क्योंकि उन कपड़ों पर आयरन करने की जरूरत ही नहीं रहती है। वैसे तो आयरन करने की जरूरत किसी कपड़े पर नहीं रहती है, लेकिन लोग हिन्दुस्तान जैसे देश में भी ऐसे अंग्रेज बने रहना चाहते हैं कि वे दूसरे शहर सफर पर जाते हुए भी घर पर जिन कपड़ों को प्रेस करवाते हैं, दूसरे शहर पहुंचकर फिर उन्हीं कपड़ों का होटल या किसी दूसरी जगह दुबारा प्रेस करवाते हैं। बिजली की बर्बादी, और हवा में तापमान का बढऩा, ये दोनों बिना जरूरत होते रहते हैं। जींस और टी-शर्ट के साथ एक आसानी यह भी रहती है कि जींस को कुछ दिनों तक बिना धोए पहना जा सकता है, न वह आसानी से गंदी होती, न उसमें किसी सिलवट की दिक्कत रहती। हमारे सरीखे जींस पहनने वाले लोगों को तो यह सहूलियत भी रहती है कि जेब में रूमाल भी न रखा जाए, और खाने-पीने के बाद धुले हुए हाथ जींस पर ही, या उसकी जेबों में हाथ डालकर पोंछ लिए जाएं। कपड़े प्रेस करने सरीखा फैशन अंग्रेजों या दूसरे रईस लोगों ने ही शुरू किया होगा, जिनको दूसरों के शोषण पर जीने की आदत रही होगी। मेहनतकश लोग न कपड़ों पर कलफ की सोच पाते, न कपड़े प्रेस करवाने की। लोगों में इस चलन का दीवानापन इतना है कि वे जींस और टी-शर्ट भी प्रेस करवाते हैं। जींस मोटे कपड़े से बनी वह पतलून है जिसे खदान मजदूरों के लिए बनाया गया था। अब मजदूरों की पोशाक आज दुनिया की सबसे कामयाब फैशन है, और लोग उस पर प्रेस करवाने लगे हैं। 

दुनिया में लोगों को ऊर्जा और ईंधन की खपत की कमी के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए क्योंकि जब तक धरती पूरी तरह से सौर ऊर्जा या पनबिजली, पवनचक्कियों से चलने लगेगी, तब तक ही कोयले और डीजल-लकड़ी जैसे ईंधन से चलने वाले बिजलीघर, और कारखाने धरती पर प्रदूषण इतना बढ़ा चुके रहेंगे कि जलवायु परिवर्तन का खतरा बहुत कुछ तबाह कर देगा। अब पाकिस्तान जैसा देश जो कि प्रदूषण में बहुत इजाफा नहीं करता है, उसने भी साल भर पहले वहां जैसी विकराल बाढ़ देखी, और देश का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह तबाह हो गया, वह पाकिस्तान का अपना किया हुआ नहीं था, दुनिया में ऊर्जा और ईंधन का अंधाधुंध इस्तेमाल करने वाले विकसित और पश्चिमी देशों की हवस की वजह से गरीब दुनिया को भी क्लाइमेट चेंज के नुकसान झेलने पड़ रहे हैं। अफ्रीका के कई देश इतना भयानक सूखा झेल रहे हैं कि वहां इंसान और जानवर सबके लिए भुखमरी की नौबत आ गई है। सिर्फ पानी की कमी से लोगों को जानवरों सहित देश छोडक़र जाना पड़ रहा है। और यह नौबत बढ़ती ही चली जा रही है। इस बार की हिन्दुस्तानी गर्मी को लेकर मौसम विभाग की भविष्यवाणी है कि आने वाले महीनों में भयानक गर्मी वाले दिनों की संख्या खासी बढऩे जा रही है, और उन दिनों में भी सबसे अधिक तापमान खासा अधिक बढऩे जा रहा है। मौसम की सबसे बुरी मार दुनिया भर में और अधिक बुरी होती जा रही है, और वह बार-बार हो रही है। मौसम के ऐसे बदलाव के लिए जिम्मेदार इंसानी प्रदूषण में लोगों के कपड़े प्रेस करवाने के शौक की वजह से और इजाफा हो रहा है। यह सिलसिला खत्म होना चाहिए। 

आईआईटी मुम्बई के इस प्रोफेसर की पोस्ट पर किसी ने यह कुतर्क भी किया है कि कल के दिन वे कार्बन बढऩे से रोकने के लिए कपड़े पहनना बंद कर देने की भी वकालत करेंगे, तो उन्होंने यह सुझाव दिया है कि उन्हें ऊर्जा-शिक्षित होने की जरूरत है, और इसके लिए उन्हेंने एक मुफ्त का कोर्स भी डिजाइन किया है। इस वेबसाइट पर उन्होंने बिजली बचाने, कमरों में सूरज की रौशनी बढ़ाने, और मौसम के बदलाव घटाने जैसी बहुत सी बातों का खुलासा करते हुए लोगों को दुनिया को बचाने और बेहतर करने की जानकारी दी है। इस वेबसाइट को हम इस संपादकीय के आखिर में दे रहे हैं, और हम चाहेंगे कि हमारे जिम्मेदार पाठक इस पर जाकर अपनी जानकारी और समझ दोनों बढ़ा सकते हैं। हमारे नियमित पाठक जानते होंगे कि हम कार धोने, या मकान-दुकान के बाहर सडक़ धोने के खिलाफ लिखते और बोलते आए हैं। हमने लोगों के छत पर लगाए जाने वाले बगीचों के खिलाफ भी लिखा है, और बड़े-बड़े लॉन को सींचने के खिलाफ भी। हम कई बार यह वकालत भी कर चुके हैं कि लोगों को अपनी गैरजरूरी चीजें दूसरे जरूरतमंद लोगों को देना चाहिए ताकि धरती पर चीजों का उत्पादन घटे। अभी इंटरनेट पर सामानों की बिक्री वाली कुछ वेबसाइटों ने यह भी किया है कि लोग अगर अपने पुराने कपड़े इन वेबसाइटों पर बेचेंगे, तो ये वेबसाइट उन पर कम कमीशन लेगी। 

किसी की शुरू की हुई छोटी सी बात में छिपी बड़ी क्रांति की संभावना भी देखनी चाहिए। ये आईआईटी प्रोफेसर हफ्ते में एक दिन बिना प्रेस के कपड़े पहनने की वकालत कर रहे हैं, लोगों को हर दिन ऐसे ही कपड़े पहनना चाहिए, ताकि धरती बच सके। कपड़ों को प्रेस करना हर किस्म की बर्बादी है, और यह सिलसिला खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।

(https://es-pal.org/) 

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