विचार / लेख

गणगौर के पीछे क्या है?
14-Apr-2024 1:37 PM
गणगौर के पीछे क्या है?

जगदीश्वर चतुर्वेदी

मथुरा की खूबसूरती है कि यह शहर भारतीय संस्कारों में डूबा रहता है। उपभोक्तावाद और संस्कारों का विलक्षण संगम इस शहर की विशेषता है। कल गणगौर है।मथुरा व्यस्त है।खास तौर पर  चतुर्वेदी समाज व्यस्त है। यह टिपिकल ऐसा उत्सव, पूजा  और व्रत है जो हर उम्र की स्त्री मनाती है। अविवाहित युवा लड़कियां मनवांछित जीवन साथी पाने और विवाहित स्त्रियां पति की दीर्घायु और एकनिष्ठता के लिए यह व्रत करती हैं। एकल परिवार और एकनिष्ठता इस व्रत की धुरी है। इस व्रत में 16का अंक महत्वपूर्ण है। दीवारों पर गणगौर आंकने से लेकर, गीतों तक, पूजा और पकवान से लेकर स्त्रियों के सुंदर सजने तक इसका कैनवास फैला है। स्त्रियों में यह उत्सव के रुप में यह अभी भी जिंदा। चतुर्वेदी समाज में नए विवाहित के लिए सोलह बडे बडे लड्डू और यथाशक्ति मुद्रा लडके वाले के यहां लडक़ी वाले भिजवाते हैं।चौबों में यह रस्म लेनदेन के रूप में प्रचलन में है। पुरानी औरतें इस मौके पर अपने हाथ से लड्डू बनाती हैं और वे 16लड्डू एक धनराशि के साथ लडके वाले के घर भेजती हैं। जो युवा लड़कियां लड्डू बनाना नहीं जानतीं वे मिठाई की दुकान से खरीदकर भिजवा देती हैं। गणगौर के साथ जो जीवनमूल्य जुडा है वह हाशिए पर है इवेंट,सजना, लेन-देन आदि केन्द्र में आ गए हैं।

गणगौर का बुनियादी मूल्य है इच्छित जीवन साथी की कामना करना। इच्छित जीवन साथी कोई भी हो सकता है। इसमें जाति, गर्म, उम्र आदि की सीमाएं नहीं हैं। यह उन चंद पर्व में से एक है जिसमें स्त्री के स्वत्व, स्त्री अनुभूति और इच्छा को केन्द्र में रखा गया।कब यह पर्व शुरु हुआ नहीं कह सकते लेकिन इसके संरचनात्मक ढांचे को देखें तो पाएंगे कि यह मातृसमाज के अंतिम समय में आया होगा। हजारों साल से हिंदी भाषी क्षेत्र में इसका औरतें अपने मन की अभिव्यक्ति के लिए इस्तेमाल कर रही हैं।कालआंतर में इसमें पितृसत्ता, उपभोक्तावाद और पुंसवाद आ गया।फलत: स्त्री के वस्तुकरण के साथ इस पर्व का भी वस्तुकरण हो गया और अधिकांश औरतों ने यह पर्व अपनी गतिविधियों से निकाल दिया है।

आरंभ में गणगौर धार्मिक उत्सव नहीं था लेकिन उन्नीसवीं सदी के हिंदू पुनरुत्थानवादी दौर में इसे धर्म से जोड़ दिया गया। बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसे उपभोक्तावाद से जोड़ दिया गया। विगत तीस-चालीस साल में इसे साम्प्रदायिक-कंजरवेटिव राजनीतिक इवेंट बना दिया गया। इससे औरत हाशिए पर चली गई। अब यह पर्व बाजार,रिचुअल्स और लेनदेन का अंग है।

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