संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : तारीफ बदल देती है जिंदगी, करने, और पाने वालों की भी
20-Apr-2024 4:46 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  तारीफ बदल देती है जिंदगी, करने, और पाने वालों की भी

अमरीका के एक प्रमुख विश्वविद्यालय, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक ताजा रिसर्च बताती है कि किस तरह किसी की तारीफ करने पर उन पर एक सकारात्मक असर पड़ता है, और ऐसा ही असर उन लोगों पर भी पड़ता है जो दूसरों की अच्छे कामों की तारीफ करते हैं। इस विश्वविद्यालय ने मनोविज्ञान विभाग की एक रिसर्च से पता लगता है कि तारीफ दोनों तरफ के लोगों का भला करती है। यह शोध करने वाली एक प्रोफेसर का कहना है कि तारीफ लोगों का दिन बना देती है, और करने वाले को कोई लागत भी नहीं आती है। कुछ दूसरे विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं का भी कुछ ऐसा ही सोचना है जिन्होंने तारीफ के मनोविज्ञान पर गंभीर काम किया है। उनका कहना है कि जिनके काम को दूसरे लोग भी अच्छा समझते हैं, उन्हें और अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है। इससे लोगों के मन की यह जिज्ञासा भी शांत होती है जिससे कि वे यह जानना चाहते हैं कि और लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं। हिन्दी जुबान में एक बात कई बार कही जाती है- सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग? 

यह सचमुच ही लोगों के लिए परेशानी का एक सबब होता है कि उनके किसी काम या उनकी किसी बात पर लोग क्या कहेंगे? जब लोग किसी बात की तारीफ करते हैं, तो यह एक कामयाबी रहती है, और बेहतर करने की प्रेरणा भी इससे मिलती है। घर पर अगर खाना बनाने के लिए तनख्वाह पर किसी को रखा गया है, तो उनकी तारीफ करना जरूरी नहीं रहता, लेकिन कभी उनके पकाए और खिलाए हुए की तारीफ करके देखें तो समझ आएगा कि अगली बार वे ऐसी तारीफ पाने के लिए और क्या-क्या मेहनत करेंगे। यह भी जरूरी नहीं रहता कि लोग दूर के लोगों की, और महज औपचारिकता के लिए तारीफ करें। हम पहले भी कई बार इस बात को लिख चुके हैं कि लोगों को किसी भी व्यक्ति से उनकी दिन की पहली बातचीत नकारात्मक नहीं करना चाहिए। किसी बात के लिए आलोचना भी करनी हो, तो भी पहले तारीफ के लायक कोई बात ढूंढकर चाहे मामूली ही क्यों नहीं, तारीफ करनी चाहिए, और फिर बाद में आलोचना के लायक बात छेडऩी चाहिए। अगर पहले तारीफ की बात कर ली जाए, तो लोग आलोचना को भी बेहतर तरीके से बर्दाश्त कर पाते हैं। 

तारीफ कितनी मायने रखती है, यह उन लोगों से बेहतर कोई नहीं जानते जिनकी जिंदगी में कोई अक्सर ही तारीफ करने वाले थे, और किसी वजह से अब नहीं रह गए। उनकी जिंदगी एकाएक वीरान हो जाती है, और जिंदगी से तारीफ एकाएक गायब हो जाने से, उनके काम पर बड़ा बुरा असर पड़ता है। इसलिए समझदारी इसमें है कि जिन लोगों के मन में आपके काम के लिए, आपके लिए सचमुच ही तारीफ है, उन लोगों की कद्र की जाए, उन्हें पास रखा जाए, उनके पास रहा जाए। ऐसा भी नहीं कि इस बात को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक या शोधकर्ता ही लगेंगे। आम लोग भी मामूली समझबूझ से इस बात को समझ सकते हैं कि इर्द-गिर्द के लोगों के अच्छे कामकाज के लिए उनकी तारीफ करके किस तरह उनसे बेहतर काम करवाया जा सकता है। दरअसल अधिकतर काम ऐसा रहता है जिसमें आम प्रदर्शन और खास प्रदर्शन दोनों ही एक ही किस्म के लोगों से हासिल किया जा सकता है। अगर एक ही व्यक्ति बेदिली से, अनमने ढंग से कोई काम करे, तो वह बहुत आम दर्जे का हो जाता है, और अगर उसी काम को करते हुए उसके दिमाग में यह रहे कि इसकी वजह से उसे तारीफ भी मिल सकती है, तो उसकी जरा सी अतिरिक्त दिलचस्पी उस आम काम को खास काम में तब्दील भी कर सकती है। जब आप आसपास के किसी के बेहतर काम की तारीफ करते हैं, तो भविष्य में भी उनसे वैसे ही बेहतर प्रदर्शन की एक किस्म से गारंटी भी कर लेते हैं। 

हमने पहले भी अलग-अलग कई जगहों पर इस बात को लिखा है कि लोगों को ऐसे लोगों की संगत से बचना चाहिए जिनके दिल-दिमाग में दूसरों के लिए सिर्फ नापसंदगी और आलोचना भरी हुई है, जिन्हें आसपास कुछ भी अच्छा नहीं लगता है, हर कोई बुरे लगते हैं। ऐसे लोगों के इर्द-गिर्द बने रहने से आपको भी पूरी दुनिया बुरी लगने लगती है, और किसी के अच्छे काम भी कभी तारीफ के लायक नहीं लगते हैं। जिंदगी और दुनिया तो वही रहते हैं, सिर्फ आप अपने रूख और नजरिए की वजह से इर्द-गिर्द की हकीकत की इतनी बुरी तस्वीर मन में बना लेते हैं कि पूरे वक्त आपका का बर्ताव एक निंदक का होकर रह जाता है। कबीर ने भी जब यह कहा था कि निंदक नियरे राखिए, तो यह उन लोगों के लिए कहा था जो अपने आसपास आलोचकों को बर्दाश्त करते हैं, और वे लोग अपनी गलतियां तुरंत जान जाते हैं। लेकिन कबीर ने यह बात निंदकों के भले के लिए नहीं कही थी जिन्हें पूरे वक्त किसी न किसी की निंदा सूझती है। कई लोगों का तो हाल यह रहता है कि जब तक दूसरों की निंदा न कर लें, तब तक खाना हजम नहीं होता, यह लगते रहता है कि आज का दिन बेकार गुजर रहा है कि काम की कोई बात ही नहीं हो पाई। 

कुल मिलाकर बात यह है कि जिंदगी में अगर जायज जरूरत रहने पर लोगों की आलोचना करनी है, तो वह एक सकारात्मक सुझाव की तरह अधिक रहनी चाहिए, न कि निंदा और भर्त्सना की तरह। और आसपास जाने-पहचाने, या अनजाने, जैसे भी लोग हों, उनकी कोई बात अगर अच्छी लगे, उनका कोई काम अच्छा लगे, तो उनकी तारीफ का कोई मौका नहीं छोडऩा चाहिए। हमने आज की इस चर्चा की शुरूआत तो स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के एक शोध के नतीजे से की है कि किस तरह तारीफ उसके दोनों सिरे के लोगों का भला करती है, लेकिन आगे के निष्कर्ष हमारे खुद के हैं कि लोगों को कम से कम कुछ ऐसे लोग इर्द-गिर्द जरूर रखना चाहिए जिनके मन में उनके लिए, उनके काम के लिए तारीफ है, क्योंकि ऐसे लोग जिंदगी से एकदम से चले जाने पर जिंदगी से एक प्रेरणा ही चली जाती है, और फिर उसकी जगह वैसी कोई दूसरी सकारात्मक चीज नहीं आ पाती है। ऐसे लोगों से बचकर रहें जिनकी जिंदगी का बड़ा हिस्सा ढूंढ-ढूंढकर लोगों की आलोचना करने में गुजर जाता है, तमाम वक्त ऐसी नकारात्मक बातों को सुनने के बाद आपकी अपनी जिंदगी से भी उत्साह जाने लगता है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)    

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